माहभर बाद जब ग्रीष्मा अपने स्कूल पहुंची तो पता चला कि पुराने प्रिंसिपल सर का तबादला हो गया है और नए प्रिंसिपल ने 2 दिन पहले ही जौइन किया है. जैसे ही उस ने स्टाफरूम में प्रवेश किया सभी सहकर्मी उस के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए बोले, ‘‘ग्रीष्मा अच्छा हुआ जो तुम ने स्कूल जौइन कर लिया. कम से कम उस माहौल से कुछ देर के लिए ही सही दूर रह कर तुम खुद को तनावमुक्त तो रख पाओगी. आज ही प्रिंसिपल सर ने पूरे स्टाफ से मुलाकात हेतु एक मीटिंग रखी है. तुम भी मिल लोगी वरना बाद में तुम्हें अकेले ही मिलने जाना पड़ता.’’ प्रेयर के बाद अपनी कक्षा में जाते समय जब ग्रीष्मा प्रिंसिपल के कक्ष के सामने से गुजरी तो उन की नेमप्लेट पर नजर पड़ी. लिखा था- ‘‘प्रिंसिपल विनय कुमार.’’
शाम की औपचारिक बैठक के बाद घर जाते समय आज इतने दिनों के बाद ग्रीष्मा का मन थोड़ा हलका महसूस कर रहा था वरना वही बातें… सुनसुन कर उस की तो जीने की इच्छा ही समाप्त होने लगी थी. नए सर अपने नाम के अनुकूल शांत और सौम्य हैं. सोचतेसोचते वह कब घर पहुंच गई उसे पता ही न चला. रवींद्र की अचानक हुई मौत के बाद अब जिंदगी धीरेधीरे अपने ढर्रे पर आने लगी थी. रवींद्र के साथ उस का 10 साल का वैवाहिक जीवन किसी सजा से कम न था. अपने मातापिता की इकलौती नाजों से पलीबढ़ी ग्रीष्मा का जब रवींद्र से विवाह हुआ तो सभी लड़कियों की भांति वह भी बहुत खुश थी. परंतु शीघ्र ही रवींद्र का शराबी और बिगड़ैल स्वभाव उस के सामने उजागर हो गया.
रवींद्र का कपड़ों का पुश्तैनी व्यवसाय था. मातापिता की इकलौती बिगड़ैल संतान थी. शराब ही उस की जिंदगी थी. उस के बिना एक दिन भी नहीं रह पाता था. ग्रीष्मा ने शुरू में बहुत कोशिश की कि रवींद्र की शराब की लत छूट जाए पर बरसों की पड़ी लत उस की जरूरत नहीं जिंदगी बन चुकी थी. अपने तरीके से जीना उस की आदत थी. दुकान बंद कर के देर रात तक यारदोस्तों के साथ मस्ती कर के शराब के नशे में धुत्त हो कर घर लौटना और बिस्तर पर ग्रीष्मा के शरीर के साथ अठखेलियां करना उस का प्रिय शौक था. यदि कभी ग्रीष्मा नानुकुर करती तो मार खानी पड़ती थी.
ऐसे ही 1 माह पूर्व शराब के नशे में एक रात घर लौटते समय रवींद्र की बाइक एक कार से टकरा गई और वह अपने प्राणों से हाथ धो बैठा. उस की मृत्यु से ग्रीष्मा सहित उस के सासससुर पर जैसे गाज गिर गई. इकलौते बेटे की मृत्यु से उन का खानापीना सब छूट गया. नातेरिश्तेदार अपना शोक जता कर 13 दिनों के बाद 1-1 कर के चले गए. रवींद्र के जाने के बाद ग्रीष्मा ने अपने बिखरे परिवार को संभालने में पूरी ताकत लगा दी. मातापिता के लिए इकलौते बेटे का गम भुलाना आसान नहीं होता. संतान जिस दिन जन्म लेती है मातापिता उसी दिन से उस के साथ रोना, हंसना और जीना सीख लेते हैं और उस के साथ भविष्य के सुनहरे सपने बुनने लगते हैं पर जब जीवन के एक सुखद मोड़ पर अचानक वही संतान साथ छोड़ देती है तो मातापिता तो जीतेजी ही मर जाते हैं.
कहने के लिए तो रवींद्र उस का पति था, परंतु रवींद्र के दुर्व्यवहार के कारण उस के प्रति प्रेम जैसी भावना कभी जन्म ही नहीं ले पाई. रवींद्र से अधिक तो उसे अपने सासससुर से प्यार था. उन्होंने उसे सदैव बहू नहीं, बल्कि एक बेटी सा प्यार दिया. अपने बेटे रवींद्र के आचरण का वे भले ही प्रत्यक्ष विरोध न कर पाते थे, परंतु जानते सब थे और इसीलिए सदैव मन ही मन अपराधबोध से ग्रस्त हो कर अपने प्यार से उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी. इसलिए रवींद्र के जाने के बाद अब वे उस की ही जिम्मेदारी थे. बड़ी मुश्किल से पोते कुणाल का वास्ता देदे कर उस ने उन्हें फिर से जीना सिखाया.
रवींद्र की मृत्यु के बाद आज पहली बार वह स्कूल गई थी. सासससुर ने ही उस से कहा, ‘‘बेटा, घर में रहने से काम नहीं चलेगा… जाने वाला तो चला गया अब तू ही हमारा बेटा, बेटी, और बहू है. तू अपनी नौकरी जौइन कर ले. दुकान तो हम दोनों संभाल लेंगे.’’ ग्रीष्मा विवाह से पहले एक स्कूल में पढ़ा रही थी और पति ने उसे रोका नहीं था. किचन का काम समाप्त कर के वह जब बिस्तर पर लेटी तो बारबार मन सुबह की मीटिंग में हुई प्रिंसिपल सर की बातों पर चला गया. न जाने क्या था उन के व्यक्तित्व में कि ग्रीष्मा का मन उन के बारे में सोच कर ही प्रफुल्लित हो उठता.
एक दिन स्कूल से घर के लिए निकली ही थी कि झमाझम बारिश शुरू हो गई. स्कूटी खराब होने के कारण वह उस दिन रिकशे से ही आई थी. बारिश रुकने के इंतजार में वह एक पेड़ के नीचे खड़ी हो गई. तभी विनय सर की गाड़ी उस के पास आ कर रुकी, ‘‘मैडम, आइए मैं आप को घर छोड़ देता हूं,’’ कह कर उन्होंने अपनी गाड़ी का दरवाजा खोल दिया.
‘‘नहींनहीं सर मैं चली जाऊंगी. आप परेशान न हों,’’ कह कर ग्रीष्मा ने उन्हें टालने की कोशिश की.
मगर वे फिर बोले, ‘‘मान भी जाइए मैडम, बारिश बहुत तेज है. आप भीग कर बीमार हो जाएंगी और फिर कल लीव की ऐप्लिकेशन भेज देंगी.’’ ग्रीष्मा चुपचाप गाड़ी में बैठ गई.
गाड़ी में पसरे मौन को तोड़ते हुए विनय सर ने कहा, ‘‘मैडम, आप कहां रहती हैं? कौनकौन हैं आप के घर में?’’
‘‘सर यहीं अरेरा कालोनी में अपने सासससुर और एक 10 वर्षीय बेटे के साथ रहती हूं.’’ ‘‘आप के पति?’’
‘‘सर अभी 1 माह पूर्व ही उन का देहांत हो गया,’’ ग्रीष्मा ने दबे स्वर में कहा. यह सुन विनय सर लगभग हड़बड़ाते हुए बोले, ‘‘ओह सौरी… आई एम वैरी सौरी.’’
‘‘अरे नहींनहीं सर इस में सौरी की क्या बात है… आप को तो पता नहीं था न, तो पूछना जायज ही है. सर… आप के परिवार में… कहतेकहते ग्रीष्मा रुक गई.’’ ‘‘मैडम मैं तो अकेला फक्कड़ इंसान हूं. विवाह हुआ नहीं और मातापिता एक दुर्घटना में गुजर गए. बस अब मैं और मेरी तन्हाई,’’ कह कर विनय सर एकदम शांत हो गए.
‘‘जी सर…बसबस सर यहीं उतार दीजिए. वह सामने मेरा घर है,’’ सामने दिख रहे घर की ओर इशारा करते हुए ग्रीष्मा ने कहा.
आगे पढ़ें- एक दिन जैसे ही ग्रीष्मा स्कूल पहुंची, चपरासी…