उसे उतार कर विनय की गाड़ी तेजी से निकल गई. अपने कमरे में आ कर ग्रीष्मा सोचने लगी कि कितने सुलझे इंसान हैं सर. अपने बारे में उन की साफगोई ने उसे अंदर तक प्रभावित कर दिया था… और एक रवींद्र. उस के बारे में सोचते ही उस का मन वितृष्णा से भर उठा. न जाने विनय सर में ऐसा क्या था कि उन से बात करना, मिलना उसे अच्छा लगा था. विनय सर के बारे में सोचतेसोचते ही उस की आंख लग गई.
एक दिन जैसे ही ग्रीष्मा स्कूल पहुंची, चपरासी आ कर बोला, ‘‘मैम, आप को सर बुला रहे हैं.’’ जब वह प्रिंसिपल कक्ष में पहुंची तो विनय सर बोले, ‘‘मैम, बालिका शिक्षा पर कल एक सेमिनार में जाना है…आप जा सकेंगी.’’
‘‘जी सर,’’ उस ने सकुंचाते स्वर में कहा. ‘‘चिंता मत करिए मैं भी चलूंगा साथ में,’’ विनय सर ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा.
‘‘जी सर,’’ कह कर वह जैसे ही कक्ष से बाहर जाने लगी तो विनय सर फिर बोले, ‘‘कल सुबह 10 बजे यहीं से मेरे साथ चलिएगा.’’ ‘‘जी,’’ कह कर वह प्रिंसिपल के कक्ष से बाहर आ गई.
अपनी कक्षा में सीट पर आ कर बैठी तो उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. विनय सर के साथ जाने की कल्पना मात्र से ही वह रोमांचित हो उठी थी. उसे लगने लगा जैसे उस के दिल और दिमाग में एकसाथ अनेक घंटियां बजने लगी हों. फिर अचानक वह तंद्रा से जागी और सोचने लगी कि वह यह नवयुवतियों जैसा क्यों सोच रही है. तभी लंच समाप्त होने की घंटी बज गई और क्लास में बच्चे आ जाने से उस के सोचने पर विराम लग गया. अगले दिन सुबह चंपई रंग की साड़ी पहन, माथे पर छोटी सी बिंदी लगा कर और बालों की ढीली सी चोटी बना कर वह जैसे ही स्कूल पहुंची तो विनय सर उसे बाहर ही मिल गए. उसे देखते ही एकदम बोल पड़े, ‘‘मैडम, आज तो आप बहुत स्मार्ट दिख रही हैं.’’
वह शर्म से लजा गई. सेमिनार के बाद घर पहुंच कर उस ने एक बार नहीं कई बार अपनेआप को आईने में निहारा. सर के एक वाक्य ने उस के दिलदिमाग में प्रेमरस का तूफान जो ला दिया था. अगले दिन सुबह कुणाल के स्कूल में पीटीएम थी. सो जैसे ही तैयार हो कर वह कमरे से बाहर आई तो उसे देखते ही कुणाल बोला, ‘‘मां, कितने दिनों बाद आज आप ने अच्छी साड़ी पहनी है. आप बहुत अच्छी लग रही हो.’’ ‘‘हां बेटा सच में तू आज अच्छी लग रही है,’’ सासूमां ने भी कहा तो उसे सहसा अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ और फिर सोचने लगी कि क्या सारे जमाने को विनय सर की हवा लग गई है जो सब को वह सुंदर लग रही है.
सासूमां की बात सुन कर वह दूसरी बार चौंकी और अंदर जा कर एक बार फिर आईने में खुद को देखा कि कहीं चेहरे पर तो ऐसा कुछ नहीं है जिस से सब को वह सुंदर नजर आ रही है पर अब न जाने क्यों सुबह स्कूल जाते समय अच्छे से तैयार होने का उस का मन करता. विनय सर और उन की बातों से उस के सुसुप्त मन में प्रेमरस की लहरें हिलोरे लेने लगी थीं. विवाह के बाद सजनेसंवरने और प्रेमरस में डूबे रहने की जो भावनाएं रवींद्र के शुष्क व्यवहार के कारण कभी जन्म ही नहीं ले पाई उन के अंकुर अब फूटने लगे थे. इधर वह नोटिस कर रही थी कि विनय सर भी किसी न किसी बहाने से उसे लगभग रोज अपने कैबिन में बुला ही लेते.
एक दिन जब ग्रीष्मा एक छात्र के सिलसिले में विनय सर से मिलने गई तो बोली, ‘‘सर, यह बच्चा पिछले माह से स्कूल नहीं आ रहा है? क्या करूं?’’
‘‘अरे मैडम उस की समस्या मैं हल कर दूंगा. उस के घर का फोन नंबर दीजिए पर यह बताइए आप हमेशा इतनी गुमसुम सी क्यों रहती हैं… जिंदगी एक बार मिलती है उसे खुश हो कर जीएं. जो हो गया है उसे भूल जाइए और आगे बढि़ए. चलिए आज शाम को मेरे साथ कौफी पीजिए. ‘‘मैं… नहींनहीं सर, ये सब ठीक नहीं है… मैं कैसे जा पाऊंगी? आप ही चले जाइएगा.’’
ग्रीष्मा को तो कुछ जवाब ही नहीं सूझ रहा था… जो मन में आया कह कर बाहर जाने के लिए कैबिन का दरवाजा खोला ही था कि विनय सर की आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘मैं बगल वाले इंडियन कौफी हाउस में शाम 7 बजे आप का इंतजार करूंगा. आना न आना आप की मरजी?’’
इस अनापेक्षित प्रस्ताव से उस की सांसें तेजतेज चलने लगीं. वह तो अच्छा था कि गेम्स का पीरियड होने के कारण बच्चे खेलने गए थे वरना उस की हालत देख कर बच्चे क्या सोचते? बारबार विनय सर के शब्द उस के कानों में गूंज रहे थे. दूसरी ओर मन में अंतर्द्वंद भी था कि यह उसे क्या हो रहा है. जो भावना कभी रवींद्र के लिए भी नहीं जागी वह विनय सर के लिए… विनय सर शाम को इंतजार करेंगे. जाऊं या न जाऊं… वह इसी ऊहापोह में थी कि छुट्टी की घंटी बज गई.
घर आ कर सब को चाय बना कर पिलाई. घड़ी देखी तो 6 बज रहे थे. फिर वह सोचने लगी कि कैसे जाऊं…,मांबाबूजी से क्या कहूं…पर सर…ग्रीष्मा को सोच में बैठा देख कर ससुर बोले, ‘‘क्या बात है बहू क्या सोच रही है?’’ वह हड़बड़ा गई जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. फिर कुछ संयत हो कर बोली. ‘‘कुछ नहीं पिताजी एक सहेली के बेटे का जन्मदिन है. वहां जाना था सो सोच रही थी कि जाऊं या नहीं, क्योंकि लौटतेलौटते देर हो जाएगी.’’
‘‘जा बेटा तेरा भी थोड़ा मन बहलेगा…बस, जल्दी आने की कोशिश करना.’’ ‘‘ठीक है, मैं जल्दी आ जाऊंगी,’’ कह कर उस ने अपना पर्स उठाया और फिर स्कूटी स्टार्ट कर चल दी. स्कूटी चलातेचलाते उसे खुद पर हंसी आने लगी कि कैसे कुंआरी लड़कियों की तरह वह भाग ली. विनय सर का जनून उस पर इस कदर हावी था कि आज पहली बार उस ने कितनी सफाई से ससुर से झूठ बोल दिया.
जैसे ही ग्रीष्मा ने कौफी हाउस में प्रवेश किया विनय सर सामने एक टेबल पर बैठे इंतजार करते मिले. उसे देखते ही बोले, ‘‘मुझे पता था कि आप जरूर आएंगी.’’ ‘‘कैसे?’’
‘‘बस पता था,’’ कुछ रोमांटिक अंदाज में विनय सर बोले, ‘‘बताइए क्या लेंगी कोल्ड या हौट.’’ ‘‘हौट ही ठीक रहेगा,’’ उस ने सकुचाते हुए कहा. ‘‘आप बिलकुल आराम से बैठिए यहां. भूल जाइए कि मैं आप का बौस हूं. यहां हम सिर्फ 2 इंसान हैं. वैसे आप आज भी बहुत सुंदर लग रही. आप इतनी खूबसूरत हैं, योग्य हैं और सब से बड़ी बात आप अपने पति के मातापिता को अपने मातापिता सा मान देती हैं. जो हो गया उसे भूल जाइए और खुल कर बिंदास हो कर जीना सीखिए.’’ ‘‘सर आप को पता नहीं है मेरे पति… और मेरा अतीत…’’ उस ने अपनी ओर से सफाई देनी चाही. ‘‘ग्रीष्मा प्रथम तो तुम्हारा अतीत मुझे पता है. स्टाफ ने मुझे सब बताया है. दूसरे मुझे उस से कोई फर्क नहीं पड़ता… कब तक आप अतीत को अपने से चिपका कर बैठी रहेंगी. अतीत की कड़वी यादों के साए से अपने वर्तमान को क्यों बिगाड़ रही हैं? जब वर्तमान में प्रसन्न रहेंगी तभी तो आप अपने भविष्य को भी बेहतर बना पाएंगी… मेरी बातों पर विचार करिए और अपने जीने के अंदाज को थोड़ा बदलने की कोशिश करिए.’’
विनय सर ने पहली बार उसे उस के नाम से पुकारा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि सर उसे क्या कहने की कोशिश कर रहे हैं.
आगे पढें- अचानक ग्रीष्मा ने घड़ी पर नजर डाली…