Best Family Drama : उस दिन सोशल नैटवर्किंग साइट पर जन्मदिन का केक काटती हुई प्रज्ञा और कुसुम का अपनी मां के साथ फोटो देख कर मुझे बड़ा सुकून मिला. नीचे फटाफट कमैंट डाल दिया मैं ने, ‘‘आंटी को स्वस्थ देख कर बहुत अच्छा लगा.’’ सालभर पहले कुसुम अपने पति के लखनऊ से दिल्ली स्थानांतरण के समय जिस प्रकार अपनी मां को ऐंबुलैंस में ले कर गई थी, उसे देख कर तो यही लग रहा था कि वे माह या 2 माह से ज्यादा नहीं बचेंगी. दिल्ली में उस की बड़ी बहन (Best Family Drama) प्रज्ञा पहले से अपनी ससुराल वालों के साथ पुश्तैनी घर में रह कर अपनी गृहस्थी संभाल रही थी.
जब कुसुम के पति का भी दिल्ली का ट्रांसफर और्डर आया तो 6 माह से बिस्तर पर पड़ी मां को ले कर वह भी चल पड़ी. यहां लखनऊ में अपनी 2 छोटी बेटियों के साथ बीमार मां की जिम्मेदारी वह अकेले कैसे उठाती. बड़ी बहन का भी बारबार छुट्टी ले कर लखनऊ आना मुश्किल हो रहा था.
प्रज्ञा और कुसुम दोनों जब हमारे घर के बगल में खाली पड़े प्लौट में मकान बनवाने आईं तभी उन से परिचय हुआ था. उन के पिता का निधन हुए तब 2 वर्ष हो गए थे. उन की मां हमारे ही घर बैठ कर बरामदे से मजदूरों को देखा करतीं और शाम को पास ही में अपने किराए के मकान में लौट जातीं. वे अकसर अपने पति को याद कर रो पड़तीं. उन्हीं से पता चला था कि बड़ी बेटी प्रज्ञा 12वीं में और छोटी बेटी कुसुम छठवीं कक्षा में ही थी जब उन के पति को दिल का दौरा पड़ा. जिसे वे एंग्जाइटी समझ कर रातभर घरेलू उपचार करती रहीं और सुबह तक सही उपचार के अभाव में उन की मौत हो गई.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
- 2000+ फूड रेसिपीज
- 6000+ कहानियां
- 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
- 2000+ फूड रेसिपीज
- 6000+ कहानियां
- 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
- 24 प्रिंट मैगजीन