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फोन की घंटी लगातार बज रही थी, किचन में काम करतेकरते उमा झुंझला उठी थी, ‘फोन उठाने भी कोई नहीं आएगा, एक पैर पर खड़ी मैं इधर भी देखूं, उधर भी देखूं-..’ गैस का रेगुलेटर कम कर के वह दौड़ी

और रिसीवर उठाया, हैलो– कहते ही सुमित की आवाज सुनाई पड़ी, जो बहुत खुश हो कर कह रहा था, ममा, आप के आशीर्वाद से मेरा भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन हो गया है- मैरिट सूची में नाम ऊपर होने के कारण आशा है कि मुख्य सेवा में मेरा नाम आ जाएगा- मैं 1-2 दिन में घर पहुंचूंगा-

उमा कुछ कहती कि फोन कट गया-

उमा ने सोचा कार्तिकेय को जा कर खुशखबरी सुना दूं, शयनकक्ष में गई तो देखा कार्तिकेय गहरी नींद में सोए हुए हैं- कल रात 1 बजे, 3 दिन के टूर के बाद लौटे थे- थके होंगे वरना 6 बजे के बाद तो बिस्तर पर रह ही नहीं सकते- साढे़ 6 से 7 बजे तक उन का ‘योगा’ करने का समय है और 7 बजे से आसपास के एरिया की फोन के द्वारा जानकारी हासिल करने का, क्योंकि सभी एरिया के स्टाफ अफसरों को नित्य अपने एरिया के कामों की जानकारी देने के निर्देश दिए हुए हैं, ताकि कहीं कोई समस्या होने पर तुरंत उस का समाधान किया जा सके- एक पब्लिक अंडरटेकिंग कंपनी में चीफ इंजीनियर जो हैं-

अनुज ट्यूशन गया है और पिताजी सुबह की सैर के लिए- सन, सन की आवाज आई तो, याद आया कि गैस पर, दही जमाने के लिए दूध गरम करने के लिए रखा था- दोपहर के खाने में सब को खाने के साथ ताजा दही चाहिए इसलिए रोजाना सुबह उठ कर पहले यही काम करना पड़ता है- जल्दी से जा कर गैस का रेगुलेटर बंद किया- अनुज ने आज नाश्ते में आलू के परांठे खाने की फरमाइश की थी इसलिए कुकर में आलू रख कर आटा गूंधने लगी.

उसे याद आया, पिताजी ने उसे एक बार समझाते हुए कहा था, ‘उमा, तुझ में धैर्य क्यों नहीं है? जीवन में प्रत्येक वस्तु, पलक झपकते ही हासिल नहीं हो जाती बल्कि उस के लिए धीरज के साथ प्रयत्न करना पड़ता है- यह बात और है कि किसीकिसी को अपने मकसद में सफलता कम प्रयास करने पर ही मिल जाती है और किसी को बहुत ज्यादा मेहनत करने के बाद, लेकिन सच्ची लगन, धैर्य और विश्वास हो तो कोई वजह नहीं कि मानव अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर पाए- पता नहीं इनसान जरा सी असफलता से बेकार ही इतना विचलित क्यों हो उठता है.?’ और आज सचमुच पिताजी की कही बात सत्य सिद्ध हुई थी, बेवजह ही इतने मानसिक तनाव झेलने के बाद यह खुशी का क्षण आ ही गया— हाथ आटा गूंध रहे थे किंतु अनायास ही दिमाग में आज से 6 साल पहले का दिन चलचित्र की भांति मंडराने लगा.

उस दिन सुबह से ही मन बेचैन था, 12वीं का परीक्षाफल निकलने वाला था- सुमित शुरू से ही पढ़ाई में अच्छा था- हमेशा ही कक्षा में प्रथम आता था, अतः सभी शिक्षक उसे प्यार करते थे और उस से बहुत खुश रहते थे- 10वीं की बोर्ड की परीक्षा में मैरिट सूची में आ कर उस ने न केवल अपना बल्कि अपने स्कूल का नाम भी रोशन किया था और इस साल भी सभी उस से यही आशा कर रहे थे.

महाराष्ट में तो प्रवेश परीक्षा होती नहीं है, केवल 12वीं कक्षा के अंकों के आधार पर ही मेडिकल और इंजीनियरिंग कालिज में एडमीशन मिल जाता है, इसलिए शहर के नामी कालिज में सुमित का दाखिला करा कर हम भविष्य के लिए आश्वस्त हो गए थे.

सुमित के मौसा, दिवाकर काफी दिनों से बीमार चल रहे थे. बेचारी अनिला 2 छोटेछोटे बच्चों के साथ परेशान थी. दिवाकर अपने मातापिता की एकलौती संतान थे, इसलिए अनिला को ससुराल पक्ष से भी कोई मदद नहीं मिल पाती थी- सुमित को अपने मौसामौसी से बेहद लगाव था इसलिए उस ने स्वयं ही दिल्ली मौसी के पास जाने की इच्छा जताई तो उमा ने थोड़ी हिचकिचाहट के साथ जाने की आज्ञादे दी. वैसे उमा ने कभी बच्चों को अकेले नहीं भेजा था, इसलिए वह थोड़ी झिझक रही थी, किंतु कार्तिकेय का विचार था कि एक उम्र के पश्चात बच्चों को स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता आनी चाहिए और यह तभी संभव है जब बच्चों को अकेले रहने और आनेजाने की आदत डाली जाए.

1-2 दिन में सुमित आने वाला था. 10वीं का परीक्षाफल निकलने से पहले जब वह सुमित से बारबार पूछती कि क्या तुम पास हो जाओगे, तो एक दिन वह झुंझला कर बोला था, ‘ममा, आप मुझे किसी से कम क्यों आंक रही हैं. मैं मैरिट में अवश्य आ जाऊंगा.’

सचमुच मैरिट लिस्ट में उस का नाम देख कर घर भर की छाती गर्व से फूल उठी थी. वह सब की आशाओं का केंद्र बिंदु बन बैठा था. दादी कहतीं, ‘डाक्टर बनाऊंगी अपने पोते को, कम से कम बुढ़ापे में मेरी सेवा तो करेगा. दूसरों के पास तो दिखाने नहीं जाना पड़ेगा— उन का वश चले तो एक ही बार में मरीज का खून चूस लें.’

दादा कहते, ‘डाक्टर नहीं, मैं अपने पोते को अपनी तरह कलक्टर बनाऊंगा ताकि वह समाज में फैले भ्रष्टाचार को दूर करने में सहायक बन कर समाज के उत्थान हेतु काम कर सके.’

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