प्राची अपने कमरे में बैठी मैथ्यू आरनल्ड की कविता ‘फोरसेकन मरमैन’ पढ़ रही थी. कविता को पढ़ कर प्राची का मन बच्चों के प्रति घोर अशांति से भर उठा. उस के मन में सवाल उठा कि क्या कोई मां इतनी पत्थर दिल भी हो सकती है. वह सोचने लगी कि यदि धर्म का नशा वास्तव में इतना शक्तिशाली है तो उस का तो हंसताखेलता परिवार ही उजड़ जाएगा.

‘नहीं, वह अपने जीतेजी ऐसा कदापि नहीं होने देगी,’ प्राची ने मन ही मन यह फैसला किया कि धर्म के दलदल में फंसे पति को जैसे भी होगा वह वापस निकाल कर लाएगी.

पिछले कुछ महीनों से प्राची को अपने पति साहिल के व्यवहार में बदलाव नजर आने लगा था. कल तक उसे अपनी बांहों में भर कर जो साहिल जीवन के सच को उस की घनी जुल्फों के साए में ढूंढ़ता था आज वह उस से भागाभागा फिरता है.

साहिल अपने दोस्त सुधीर के गुरुजी के प्रवचनों से बेहद प्रभावित था. रहीसही कसर टेलीविजन चैनलों पर दिखाए जाने वाले उपदेशकों के प्रवचनों से पूरी हो गई थी. अब तो साहिल को एक ही धुन सवार थी कि किसी तरह स्वामीजी से दीक्षा ली जाए और इस के लिए साहिल आफिस से निकलते ही सीधा स्वामीजी के पास चला जाता. वहां से आने के बाद वह प्राची सेयह तक नहीं पूछता कि तुम कैसी हो या बेटा अक्षय कैसा है.

रोज की तरह साहिल उस दिन भी रात को 9 बजे घर आया. खाना खाने के बाद सीधे सोने की तैयारी करने लगा. एक सुंदर सी बीवी भी घर में है, इस का उसे कोई एहसास ही नहीं था.

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