बेटी को स्कूल भेज कर नलिनी जल्दीजल्दी तैयार होने लगी. साड़ी को अच्छी तरह से पिनअप कर वह लिपस्टिक लगाने के लिए डै्रसिंग टेबल के करीब आई तो शीशे में अपने पीछे खड़ी मां पर उस की नजर पड़ी. एक बार पलट कर उस ने मां की तरफ देखा, फिर होंठों पर करीने से लिपस्टिक लगाने लगी. उस का संतुलित व्यवहार, आत्मविश्वास से लबरेज उस की भावभंगिमा देख कर सावित्री ठगी सी खड़ी रह गईं.

आज उन की बेटी कोर्ट में तलाक लेने जा रही है. पिछले लगभग डेढ़ साल से तलाक के लिए कोर्ट में केस चल रहा था. आज फैसला होना है. 9 साल पहले उन की बेटी जिस बंधन में अपनी इच्छा से बंधी थी आज उसी बंधन से अपनी इच्छा से हमेशाहमेशा के लिए आजाद हो जाएगी. कितने दुख की बात है. पति से संबंध विच्छेद होना एक पत्नी के लिए पीड़ा की बात है. सावित्री सारी रात सो नहीं पाई थीं और अब बेटी को देख कर उन की अक्ल काम नहीं कर रही थी. कितनी आश्वस्त और संतुलित दिख रही थी नलिनी. इतनी खुश तो वह पति से रिश्ता जोड़ने पर भी नहीं थी, शायद जितना आज रिश्ता टूटने की उम्मीद से दिख रही है. डेढ़ साल पहले जब नलिनी अपनी 7 साल की बेटी का हाथ पकड़ कर उन के घर आई थी तो वे बहुत खुश  थीं. नौकरी और घरपरिवार के चलते महानगरों में रहने वाले उन के तीनों बच्चे जैसे अब सपना हो गए थे उन के लिए. पिछले हफ्ते जब नलिनी ने फोन पर अपने आने की सूचना दी तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा. बहुत दिनों के बाद आ रही बेटी और नातिन के लिए उन्होेंने तरहतरह के पकवान बनाने शुरू कर दिए थे. लेकिन जब नलिनी ने बताया कि वह हमेशा के लिए पति का घर छोड़ आई है तो उन के पैरों तले जमीन खिसक गई.

‘‘तू ने यह ठीक नहीं किया, बेटा.’’

‘‘नहीं मां, मेरे लिए अब राहुल को बरदाश्त करना इंपौसिबल हो गया है. मुझे पता है कि ये रिश्ते इतनी आसानी से नहीं तोड़े जाते, लेकिन पिछले 3 सालों से मैं ने जो सहा है, उसे शायद ही कोई और सह सकता था.’’

पिछले 3 सालों से राहुल का अपनी किसी कलीग के साथ अफेयर चल रहा था. नलिनी ने पहले उसे बहुत समझाया, अपनी बड़ी होती बेटी का वास्ता दिया. किसी स्त्री के लिए इस से अधिक अपमानजनक और पीड़ादायक क्या हो सकता है कि उसे प्यार करने वाला पति एक दिन उस की अस्मिता को सिरे से नकार दे. उस का अधिकार किसी दूसरी औरत को दे दे. ठीक है, वजह चाहे कोई भी हो, लेकिन पत्नी की गरिमा को तारतार करने के लिए इस तरह के संबंध ही काफी होते हैं. फिर भी नलिनी ने सब कुछ बरदाश्त किया तो सिर्फ अपनी बेटी के लिए. लेकिन जब राहुल उस औरत को ले कर घर पर आने लगा तो नलिनी का सब्र जवाब दे गया. क्या असर पड़ेगा उस की बेटी पर? छि: अब वह नहीं सह पाएगी.

सावित्री को तो जैसे काठ मार गया.

7 साल की इतनी प्यारी सी मासूम बेटी पर भी तरस नहीं आया इन लोगों को.

‘‘उस घिनौने माहौल में मैं अपनी बेटी की परवरिश कैसे कर पाऊंगी, मां?’’

‘‘लेकिन बेटी, पति से अलग, अकेली औरत के लिए भी तो अपनी संतान पालना आसान नहीं है. बिना बाप की परवरिश, लोगों के सौ तरह के सवालों का सामना कर पाएगी यह नन्ही सी जान?’’

‘‘वह सब मैं देख लूंगी, मां. नालायक बाप होने से बाप का न होना ही बच्चे के लिए अच्छा है. अभी यह छोटी है. मैं इसे अपनी तरह से संभाल लूंगी. मेरे यहां रहने पर तुम्हें कोई ओब्जेक्शन हो तो बता दो, मैं कहीं और इंतजाम कर लूंगी. वैसे मैं ने यहां की ब्रांच में ट्रांसफर के लिए अपनी कंपनी में एप्लीकेशन दे रखी है. मुझे कंपनी की तरफ से मकान भी मिल जाएगा. तुम चाहोगी तो कुछ दिन बाद मैं वहीं शिफ्ट हो जाऊंगी.’’

‘‘तू क्या कह रही है, नीलू. इतना बड़ा घर, मैं अकेली जान. तू मेरे पास रहेगी तो इस बुढ़ापे में कितना सहारा रहेगा, बेटी. तेरे पापा के जाने के बाद मैं कितनी अकेली हो गई हूं.’’

‘‘अकेले तो हम सभी हैं, मां. बस, कोई थोड़ा कम अकेला है, कोई ज्यादा अकेला है.’’

बेटी का दर्शन सावित्री के पल्ले नहीं पड़ रहा था. उन्हें तो बस, यही बात खाए जा रही थी कि बेटी तलाक की जिद पर अड़ी थी. अपनी कमाई की गरमी ने आजकल की लड़कियों का दिमाग खराब कर रखा है. माना उस की आमदनी पति से कम नहीं है लेकिन पत्नी का दर्जा तो पति से नीचे ही होता है. फिर ऐसा भी क्या गजब हो गया? मर्दों की तो फितरत ही ऐसी होती है. अभी जवानी का उबाल है, कुछ दिनों बाद ठंडा पड़ जाएगा तो फिर वही बीवी, वही बच्चे. औरतों को तो बहुत कुछ सहना पड़ता है. अपने आपे से बाहर जाती हुई बेटी को समझाने की हिम्मत जुटाती सावित्री बोलीं, ‘‘फिर भी नीलू, मैं तो यही कहूंगी कि तू ने तलाक की बात सोच कर अच्छा नहीं किया, बेटी. दामादजी को एक और मौका तो देना चाहिए. तुझे भी थोड़ा इंतजार करना चाहिए. कभीकभी समय सब कुछ ठीक कर देता है.’’

‘‘मैं ने पूरे 3 साल तक इंतजार ही तो किया है, मां. तुम लोगों को कभी कुछ नहीं बताया. मेरी अपनी प्रौब्लम थी. इसलिए मैं ने दीदी और भैया से भी कभी प्रौब्लम शेयर नहीं की. लेकिन अब पानी सिर से ऊपर गुजर चुका है. और मां, एक छोटी सी जिंदगी मिली है. उसे सिर्फ उम्मीद और इंतजार के सहारे गुजार देना कम से कम मुझे तो गवारा नहीं.’’

बेटी का तमतमाया चेहरा देख कर सावित्री सहम गईं. आजकल का खून बड़ी जल्दी गरम हो जाता है. पर नीलू से अपने पापा के कारनामे भी तो छिपे नहीं हैं. हालांकि तब वह बहुत छोटी थी. लेकिन दोनों बड़े बच्चों ने तो अपनी मां को तिलतिल कर जलते देखा है. बड़े होने पर नीलू को सब पता चल गया था. लेकिन तब तक वे लकवे से पीडि़त हो कर बिस्तर पकड़ चुके थे. फिर कुछ दिन तक असहनीय यंत्रणा झेलने के बाद उन्हें मुक्ति मिल गई.

सावित्री ने इतने सालों तक जो दंश सहा उस की पीड़ा आज भी कम नहीं है. उस पर अब बेटी के ये तेवर. उसे अपनी जिद छोड़ने के लिए उन्होंने आखिरी पासा फेंका. नजरें चुराती सी बोलीं, ‘‘तुम्हारे पापा 25 सालों तक लाल कोठी की उस विधवा कश्मीरन के इशारों पर नाचते रहे. इतने सालों तक मैं ने कलेजे पर पत्थर रख कर सब कुछ बरदाश्त किया तो सिर्फ अपने तीनों बच्चों की खातिर. कितना अपमान, कितना तिरस्कार झेला मैं ने, फिर भी तुम लोगों को सीने से चिपकाए तुम्हारे पापा की चौखट पर पड़ी रही. अगर मैं भी तुम्हारी तरह धीरज खो देती, मानसम्मान के मुद्दे को ले कर घर छोड़ देती तो आज तुम सब बिखर गए होते. मैं ने सहन किया, त्याग किया तो सिर्फ अपने बच्चों की खातिर ही न. औरत को तो…’’

‘‘बस करो, मां, तुम जो अपने त्याग और सहनशीलता की दुहाई दे रही हो न वह सब सिर्फ एक छलावा है, जो तुम आज तक अपनेआप से करती आई हो. तुम ने पापा को इसलिए नहीं बरदाश्त किया कि तुम बहुत सहनशील थीं और तुम्हें अपने बच्चों की बहुत परवाह थी. तुम ने वह सब कुछ इसलिए सहा, क्योंकि तुम्हारे पास इस के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था.’’

सावित्री को तो जैसे किसी ने अंगारों पर धकेल दिया. वह कड़वा सच, जिसे झुठला कर वे आज तक अपनेआप को धोखा देती आई थीं, उन की बेटी ने कितनी बेबाकी  से उगल दिया.

सच! अगर वे भी अपने दम पर अपने बच्चों की परवरिश करने के योग्य होतीं तो

क्या अपनी जिंदगी के खूबसूरत 25 साल उस नारकीय यंत्रणा को झेलने में गंवा देतीं. न जाने कितनी सूनी रातों में उन की पारंपरिक सोच विद्रोही बन कर उन्हें बरगलाती. लेकिन अपनी लाचारी उन्हें फिर लौट कर उसी चारदीवारी में कैद कर देती. अपनेआप को टटोलती हैं तो पाती हैं कि आत्मसम्मान और खुद्दारी उन में भी कम नहीं थी. तभी तो आज इस उम्र में भी अपने बच्चों के भरोसे न रह कर खुद अपने दम पर अकेली जिंदगी जी रही हैं. लेकिन तब उन के पास अगर कोई दूसरा विकल्प होता तो क्या वे 25 साल तक यों ही गीली लकड़ी की तरह सुलगतीं?

अचानक बेटी के स्पर्श से वे चौंकी. नीलू उन के पैरों पर झुकती हुई बोली, ‘‘आशीर्वाद दो, मां, तुम्हारी बेटी आज इस कैद से हमेशा के लिए आजाद हो जाए.’’

अपनी स्वाभिमानी बेटी के सिर पर हाथ रख कर सावित्री मन ही मन बोली, ‘जा बेटी, अपनी मां के अभिशापित जीवन की पुनरावृत्ति से भी तुझे मुक्ति मिले.

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