परसों ही मेरी बड़ी बहन 10 दिन रहने को कह कर आई थीं और अभी कुछ ही देर पहले चली गई हैं. मुझ से नाराज हो कर अपना सामान बांधा और चल दीं. गुस्से में अपना सामान भी ठीक तरह से नहीं संभाल पाईं. इधरउधर पड़ी रह गई चीजें इस बात का प्रमाण हैं कि वे इस घर से जल्दी से जल्दी जाना चाहती थीं. कितनी दुखी हूं मैं उन के इस तरह अचानक चले जाने से. उन्हें समझा कर हार गई लेकिन दीदी ने कभी किसी को सोचनेसमझाने का प्रयत्न ही कहां किया है? उन का स्वभाव मैं अच्छी तरह जानती हूं. बचपन से ही झगड़ालू किस्म की रही हैं. क्या घर में, क्या स्कूलकालेज में, क्या पासपड़ोस में, मजाल है उन्हें जरा भी कोई कुछ कह जाए. हर बात का जवाब दे देना उन की आदत है.

अचानक परसों रात 10 बजे के करीब दीदी ट्रेन से आई थीं, उसी शाम सुबोध मुझे पर खूब बिगड़ चुके थे. हर घटना को तूल दे देना व उस के लिए मुझे ही दोषी ठहराना इन की आदत है. घर में कुछ जरा सा भी अवांछित घट जाए, ये मुझे ही उस के लिए दोषी ठहराते हैं. रिषी को जरा सी ठंड लग जाए या उस से कुछ टूट जाए, इन के मुंह से यही निकलेगा, ‘‘सब तुम्हारी लापरवाही के कारण हुआ है. ठीक है नौकरी कर रही हो पर फिर भी एक बच्चे की देखभाल तो करनी ही है. मुझे फोन कर देती कि आया से नहीं संभल रहा तो मैं छुट्टी ले कर आ जाता.’’

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