मैंने पकौड़ा खा कर चाय का पहला घूंट भरा ही था कि बाहर से शबनम की किसी पर बिगड़ने की तेज आवाज सुनाई दी. वह लगातार किसी को डांटे जा रही थी. उत्सुकतावश मैं बाहर निकली तो देखा कि वह गार्ड से उलझ रही है.
एक घायल लड़के को अपने कंधे पर एक तरह से लादे हुए वह अंदर दाखिल होने की कोशिश में थी और गार्ड लड़के को अंदर ले जाने से मना कर रहा था.
‘‘भैया, होस्टल के नियम तो तुम मुझे सिखाओ मत. कोई सड़क पर मर रहा है, तो क्या उसे मर जाने दूं? क्या होस्टल प्रशासन आएगा उसे बचाने? नहीं न. अरे, इंसानियत की तो बात ही छोड़ दो, यह बताओ किस कानून में लिखा है कि एक घायल को होस्टल में ला कर दवा लगाना मना है? मैं इसे कमरे में तो ले जा नहीं रही. बाहर ग्राउंड में जो बैंच है, उसी पर लिटाऊंगी. फिर तुम्हें क्या प्रौब्लम हो रही है? लड़कियां अपने बौयफ्रैंड को ले कर अंदर घुसती हैं तब तो तुम से कुछ बोला नहीं जाता,’’ शबनम झल्लाती हुई कह रही थी.
गार्ड ने झेंपते हुए दरवाजा खोल दिया और शबनम बड़बड़ाती हुई अंदर दाखिल हुई. उस ने किसी तरह लड़के को बैंच पर लिटाया और जोर से चीखी, ‘‘अरे, कोई है? ओ बाजी, देख क्या रही हो? जाओ, जरा पानी ले कर आओ.’’ फिर मुझ पर नजर पड़ते ही उस ने कहा, ‘‘नेहा, प्लीज डिटोल ला देना. इस के घाव पोंछ दूं और हां, कौटन भी लेती आना.’’
मैं ने अपनी अलमारी से डिटोल निकाला और बाहर आई. देखा, शबनम अब उस लड़के पर बरस रही है, ‘‘कर ली खुदकुशी? मिल गया मजा? तेरे जैसे लाखों लड़के देखे हैं. लड़की ने बात नहीं की तो या फेल हुए तो जान देने चल दिए. पैसा नहीं है, तो जी कर क्या करना है? अरे मरो, पर यहां आ कर क्यों मरते हो?’’