तू ने अपनी लिस्ट बना ली... किसकिस को कार्ड भेजना है?’’ ज्योत्स्ना ने अपनी बेटी भावना से पूछा.
‘‘जी मम्मी, यह रही मेरी लिस्ट. पर एक कार्ड आप मुझे दे दीजिए, अपने एक खास दोस्त को भेजना है.’’
यह कह कर भावना ने एक कार्ड लिया, अपना बैग उठाया, अपनी गाड़ी निकाली और अस्पताल की ओर चल दी.
भावना कार चला रही थी. उस की आंखों में अपने पापा का बीमार चेहरा, बढ़ी हुई दाढ़ी, कातर आंखें घूम रही थीं, जो शायद उस से क्षमायाचना कर रही थीं. उस के पापा कुछ समय पहले ही उस अस्पताल में दाखिल हुए थे जहां वह काम कर रही थी. उन्हें पक्षाघात हुआ था. उस के मम्मीपापा जब वह 15 साल की थी, एकदूसरे से अलग हो गए थे.
पापा तो मम्मी से अलग हो गए लेकिन उस का हृदय पापा की याद में तड़पता रहा था.
मम्मी के अथक प्रयास व कड़ी मेहनत ने उस के पैरों तले ठोस जमीन दी. वह डाक्टर बन गई. मम्मी के सामने पापा का नाम लेना भी मुश्किल था और वह इस को गलत भी नहीं समझती थी, आखिर जिस सहचर पर मम्मी को अथाह विश्वास था, जिस की उंगली पकडे़ वह जीवन डगर पर निश्ंिचत हो आगे बढ़ रही थीं, वही एक दिन चुपचाप अपनी उंगली छुड़ा कर चल देगा यह तो वह सोच भी नहीं सकती थीं. जीवनसाथी के धोखे के बाद तो मम्मी की दुनिया में उन की स्कूल की छोटी सी नौकरी और भावना के अलावा किसी के लिए भी जगह नहीं थी.
भावना गाड़ी खड़ी कर अपने केबिन में पहुंची तो बाहर मरीजों की भीड़ लगी हुई थी. उस की सहयोगी डाक्टर केबिन में बैठी हुई थी.