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लेखिका- ऋतु थपलियाल

समय चंचल हिरन की भांति दौड़ने लगा था. जय और नंदिनी की शादी को 2 साल बीत गए थे. सुधा ने बेटे को तो अपना लिया था पर नंदिनी के लिए आज भी वह अपनी बांहें नहीं फैला पाई थी. कहते हैं समय घावों को भर देता है, पर नंदिनी के साथ ऐसा नहीं हो रहा था. वह सपनों से भरी अल्हड सी लड़की, जो मेलबोर्न से भारत चली आई थी, जय के साथ कदम से कदम मिला कर चलने की कोशिश कर रही थी. जय ने नंदिनी की तनाव से भरी जिंदगी को दूर करने का फैसला लिया और नंदिनी को जौब करने के लिए प्रोत्साहित किया. नंदिनी जय के इस फैसले से फूली नहीं समा रही थी. उसे पहली बार तपिश में ठंडी फुहार का अनुभव हुआ. जय को अपने जीवनसाथी के रूप में चुन कर उस को गर्व महसूस हो रहा था.

उस ने जय को निराश नहीं किया. जौब लगते ही नंदिनी की मेहनत रंग लाई और वह उन्नति के शिखर पर चढ़ने लगी. दोनों एकदूसरे को संभालते हुए आगे बढ़ रहे थे. लेकिन शायद दोनों की खुशियों को फिर से नजर लगने वाली थी. जय और नंदिनी की शादी को 2 साल पूरे हो गए थे. हालांकि सुधा का गुस्सा और नाराजगी अभी भी शांत नहीं हुई थी लेकिन बेटे को तो अपने से दूर नहीं किया जा सकता, इसलिए दोनों परिवार महीने में एकबार आपस में मिल कर अच्छा समय बिताने की कोशिश करने लगे थे. सबकुछ ठीक रहता पर नंदिनी कहीं न कहीं अजनबी जैसा महसूस करती थी.

और एक दिन फिर से एक जलजला नंदिनी और जय के जीवन में आ गया. दिनेश जी और सुधा की एनिवर्सरी का दिन था. दोनों परिवार एकसाथ बैठे हुए थे. तभी सुधा ने जय के सामने एक इच्छा रख दी, जिसे सुन कर जय और नंदिनी फिर से दोराहे पर खड़े हो गए.

‘जय, तुम ने जो चाहा, हम ने उसे स्वीकार किया पर कम से कम तुम एक इच्छा तो हमारी पूरी कर दो,’ सुधा ने चाय का घूंट भरते हुए कहा.

‘मां, कैसी बातें करती हैं आप, आप ने और पापा ने जो मेरे लिए किया है, मैं उस का ऋण कभी नहीं चुका सकता. आप हुक्म करें, आप की क्या इच्छा है. मैं और नंदिनी उसे जरूर पूरी करेंगे.’

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‘देखो, समय का क्या भरोसा. कब क्या हो जाए. तुम्हारे साथ के सभी दोस्तों के घर में रौनक हो गई है, मैं भी चाहती हूं कि अगले साल तक तुम दोनों भी दो से तीन हो जाओ. कम से कम मेरे जो अरमान तुम्हारी शादी के लिए थे, वे पोते का मुंह देख कर पूरा हो सकें,’ सुधा ने तिरछी निगाह से नंदिनी को देखते हुए जय से कहा.

जय और नंदिनी के चेहरे का जैसे रंग उड़ गया था. ऐसा नहीं था कि वे दोनों बच्चा नहीं चाहते थे लेकिन जिस तरह से नंदिनी अपने कैरियर के सफर में आगे बढ़ रही थी, जय और नंदिनी ने फैसला किया था कि अभी वे 2 साल और इंतजार करेंगे.

लेकिन सुधा की यह ख्वाहिश सुन कर फिर से जय उसी दोराहे पर आ कर खड़ा हो गया जहां से वह चला था. जय की समझ में नहीं आ रहा था कि वह मां से क्या कहे क्योंकि बड़ी मुश्किल से मां ने नंदिनी को स्वीकारोक्ति दी थी, यह अलग बात थी कि इस में नाराजगी का पुट हमेशा से ही विद्यमान रहा था. अब अगर वह मां को अपना फैसला सुनाता है तो कहीं पहले जैसी स्थिति न हो जाए.

जय के चेहरे पर आए तनाव को दिनेशजी ने बखूबी पढ़ लिया था. उन्होंने बात को संभालते हुए कहा. ‘जल्दबाजी की कोई जरूरत नहीं है. तुम और नंदिनी इस फैसले के लिए स्वतंत्र हो.’

दिनेशजी का यह कहना जय की मां सुधा को अपना अपमान लगा और वह झटके के साथ उठ कर अपने कमरे के भीतर चली गई. एक खुशनुमा माहौल फिर से उदासी के दामन में सिमट गया.

अब यह इच्छा हर साल जय को सताने लगी थी क्योंकि मां जब भी फोन पर बात करती, अपनी इस इच्छा को जरूर जताती थी. और हर साल पूछा जाने वाला यह सवाल जय और नंदिनी को दंश के समान पीड़ा पहुंचाने लगा था. हालांकि इस दौरान नंदिनी ने इलाज भी शुरू कर दिया था, वह सुधाजी को कोई भी शिकायत का मौका नहीं देना चाहती थी लेकिन समय को कुछ और ही मंजूर था. नंदिनी को कुछ गायनिक कोम्प्लिकेशन थे जिन का पहले इलाज होना था, फिर आगे की प्रक्रिया हो सकती थी. दोनों इसी आस से इलाज करवा रहे थे कि उन्हें जल्द ही कामयाबी मिल जायगी. पर अचानक से कोरोना का कहर आ गया और सबकुछ बंद हो गया.

जय ने नंदिनी को समझाते हुए कहा, ‘नंदू, कल पापा से बात हुई थी, तब हम दोनों ने एक समाधान निकाला है.’

‘प्लीज, पूरी बात बताइए कि आप दोनों के बीच क्या बात हुई और क्या समाधान निकाला है.’

‘नंदू, पापा एक संस्था के साथ व्हाट्सऐप ग्रुप में जुड़े हुए हैं. उस में बहुत सारे ऐसे बच्चों के बारे में सूचना आ जाती है जिन्होंने अपने मातापिता कोरोना में खो दिया है और अब कोई भी रिश्तेदार उन्हें अपनाने के लिए तैयार नहीं है.’

‘तो तुम कहना क्या चाहते हो, तुम कही एडौप्शन की बात तो नहीं कर रहे हो,’ नंदिनी कहतेकहते कुरसी से लगभग खड़ी हो गई, ‘तुम जानते हो तुम क्या कह रहे हो?’

‘हां, पापा और मैं ने यही सोचा है. इस में गलत क्या है?’

‘नहीं जय, इस में कुछ भी गलत नहीं है बल्कि यह तो बहुत ही अच्छा तरीका है अपनी खाली पड़ी दुनिया को रंगों और किलकारियों से भरने का. लेकिन तुम शायद भूल गए हो कि मां ने मुझे ही अब तक नहीं अपनाया है तो फिर किसी के बच्चे को कैसे स्वीकार करेंगी.’

‘उस की तुम चिंता मत करो. मैं ने कल पापा से बात की है. अब लौकडाउन में मिलने वाली छूट के समय वे मां को ले कर आ रहे है. तब सब साथ में ही बात करेंगे.’

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‘ओह, जय, मुझे तो बहुत टैंशन हो रही है. तुम दोनों ने जो सोचा है, मैं उस का विरोध नहीं करती हूं, पर मां…’ कहतेकहते नंदिनी चुप हो गई.

‘माई डियर, माना कि मेरी मां थोड़ा पुराने ख़यालात की है लेकिन तुम भूल रही हो कि वे भी एक मां हैं. जब तुम्हारी पीड़ा को उन के आगे रखूंगा तो वे जरूर समझ जाएंगी. और वैसे भी, मैं ने अपने संकटमोचक से बात कर ली है. इस बार तो मान को मानना ही होगा.’

“संकटमोचक… कौन?’ नादिनी ने आश्चर्य से जय को देखते हुए कहा. आखिर, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि जय के दिमाग में क्या चल रहा है.

‘वह तो तुम्हें शाम को ही पता चलेगा. तब तक क्यों न हम दोनों अपनी एनिवर्सरी सैलिब्रेट कर लें,’ कहते हुए जय ने नंदिनी को अपनी बांहों में उठा लिया. नंदिनी की खिलखिलाहट से घर गूंजने लगा.

दिन का समय हो आया था. सूरज अपनी तपिश की किरणों से धरती को गरमी दे रहा था. नंदिनी शिद्दत के साथ अपने सासससुर के पसंदीदा खाने को बनाने में लगी हुई थी. तभी डोरबैल बजी. जय तेजी से दरवाजे की ओर लपका था. दरवाजा खुलते ही सुधा और दिनेश ने जय को देखा और उन के चेहरे पर ममत्व से भरी मुसकान फ़ैल गई. दोनों ने जय को बधाई दी और गले से लगा लिया. सुधा घर के अंदर आ कर ड्राइंगरूम के सोफे पर बैठ गई. दिनेशजी नंदिनी को ढूंढते हुए किचन में चले गए और उस को पैसों का लिफाफा पकड़ाते हुए बोले, ‘शादी की बहुतबहुत शुभकामनाएं. हम दोनों की ओर से यह छोटी सी भेंट है. तुम अपने लिए कुछ खरीद लेना. हां, जय की चिंता मत करना, उस को उस की मां ने दे दिया है.’ ससुर और बहू के मुख पर हलकी सी हंसी तैर गई.

नंदिनी ने ससुर को पानी का गिलास दिया और साथ ही साथ उन के पैरों को भी स्पर्श कर लिया. दिनेशजी ने भी अपनी बहू के सिर पर आशीर्वाद का हाथ रख दिया. फिर वे ड्राइंगरूम में सुधा के समीप आ कर सौफे पर बैठ गए.

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