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लेखिका- ऋतु थपलियाल

सुधा के चेहरे पर अब भी नंदिनी को ले कर एक तनाव बना हुआ था. उस तनाव को सभी महसूस कर रहे थे. नंदिनी ने सुधा को भी पानी दिया और उस के चरण स्पर्श किए. पर सुधा ने ‘ठीक है, ठीक है’ कह कर अपनी नाराजगी फिर से दिखा दी थी. जय मौके की नजाकत को भांप गया था. उस ने नंदिनी को जल्दी से खाना लगाने का इशारा कर दिया था.

डाइनिंग टेबल पर सबकुछ अपनी मनपसंद का बना देख सुधा कुछ कह नहीं पाई. हां, दिनेशजी ने अपनी बहूँ के हाथ के बने खाने की खूब तारीफ की. सुधा चुप ही रही.

खाना खाने के बाद सब ड्राइंगरूम में आ गए. नंदिनी ने सभी को आइसक्रीम सर्व की और अपने आइसक्रीम का बाऊल ले कर सब के साथ बैठ गई. सुधा शायद इसी पल का इंतजार कर रही थी. तभी उस ने जय से पूछ ही लिया.

‘जय, मुझे कब तक इंतजार करना होगा.’

जय तो इसी मौके की तलाश कर रहा था. उस ने अपने पापा दिनेशजी की ओर देखा और कहा, ‘मां, पापा ने एक सुझाव दिया है मैं और नंदिनी बिलकुल तैयार हैं, बस, अगर आप की हां हो जाए तो... अगले 15 दिनों में ही मैं आप की इच्छा पूरी कर सकता हूं.‘

सुधा को लगा शायद उन के बेटे जय का दिमाग खराब हो गया है. भला 15 दिनों में कोई कैसे मातापिता बन सकता है.

‘जय, पागल हो गए हो, क्या कह रहे हो. 15 दिनों में भला कौन मांबाप बन सकता है. सुनो, मैं इस तरह के मजाक को बिलकुल भी बरदाश्त नहीं करूंगी.’ सुधा ने अपने तीखे लहजे से अपनी बात कही और जय को चेतावनी भी दे दी कि वे अब उस की एक नहीं सुनेंगी.

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