लेखक- आशीष दलाल
रमा सुबह जल्दी उठ जाया करती थी. गांव में थी तब भी दिन की शुरुआत सुबह 5 बजे से हो जाती थी. गांव में तो करने को ढेरों काम और बहुत सारी बातें थीं लेकिन यहां शहर आ कर तो उस की जिंदगी जैसे 2 कमरों में सिमट कर रह गई थी. गांव में अच्छीखासी खेतीबाड़ी होने के बावजूद सुकेश की जिद के आगे उस की एक न चल पाई और उस के पीछे उसे गांव का भरापूरा परिवार छोड़ कर अकेले शहर आना पड़ा.
सुकेश वैसे तो प्रकृति प्रेमी युवक था और अपने खेतों से बहुत प्यार करता था, लेकिन उस की जिंदगी में कुछ नया करने की महत्त्वाकांक्षा उसे गांव की धूलमिट्टी से सनी गलियों से निकाल कर शहर की चकाचौंध वाली दुनिया में ले आई थी.
एमएससी ऐग्रीकल्चर से करने के बाद शहर की एक नामी ऐग्रीकल्चर कंपनी में उस की नौकरी लगने पर वह अकेले ही शहर आ कर रहने लगा था. रमा से शादी तो उस के बीएससी कर लेने के बाद ही हो गई थी.
रमा सुकेश की तरह बहुत पढ़ीलिखी तो न थी लेकिन गांव के स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई उस ने पूरी की थी. सुकेश महत्त्वाकांक्षी जरूर था लेकिन गांव और अपने परिवार के संस्कार उस की नसनस में बसे हुए थे। इसी से रमा के कम पढ़ेलिखे होने की बात उस के वैवाहिक जीवन में बाधा न बन सकी.
शादी के बाद गांव में सासससुर, ननद और काका ससुर के संयुक्त परिवार के संग रहते हुए उसे सुकेश से दूर रहते हुए बहुत ज्यादा परेशानी नहीं हुई. वैसे तो सुकेश किसी न किसी बहाने हर महीने गांव आता रहता था लेकिन फिर भी 2 साल तक दोनों पतिपत्नी इसी तरह परदेशी की तरह अपनी गृहस्थी की गाड़ी आगे बढ़ा रहे थे. एमएससी करने के बाद नौकरी मिलते ही सुकेश जिद कर उसे अपने साथ शहर ले आया था.