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रिनी को घर भेज कर वह आभा के पास ही रुक गया. सोचने लगा कि बैठेबैठाए यह कौन सी मुसीबत आन पड़ी? अब घरबाहर के काम कौन करेगा? आभा पर ही गुस्सा आने लगा उसे कि अगर खुद पर ध्यान देती तो यह मुसीबत न आती. अब क्या करेगा वह? घर, औफिस और अस्पताल के चक्कर में तो मर ही जाएगा.

‘‘पहले वहां जा कर पैसे जमा कर आइए,’’ जब नर्स ने कहा, तो नवल का ध्यान टूटा. लगा अब 4-6 हफ्तों का चक्कर तो लग ही गया, क्योंकि डाक्टर कह रहा था कि इलाज में वक्त लगेगा. सोचसोच कर नवल का माथा घूम रहा था, जो आभा से छिपा न रह सका. वह समझ रही थी कि नवल पर कैसी मुसीबत आन पड़ी. घरबाहर सब कैसे मैनेज होगा? अगर जल्दी अस्पताल से छुट्टी मिल जाए तो अच्छा है. बेचारी को अब भी नवल की ही फिक्र हो रही थी और वह मन ही मन आभा को ही कोसे जा रहा था जैसे उस ने खुद बीमारी को बुलावा दिया हो. वह बेचारी तो खुद दर्द से तड़प रही थी, लेकिन फिर भी नवल का मुंह देखे जा रही थी. अब भी उसे घर की ही चिंता लगी थी कि वहां सब कैसे होगा.

‘‘सुनिएजी, सुमन है मेरे पास, तो आप घर जाइए. वहां भी सब परेशान हो रहे होंगे. जल्द ही ठीक हो जाऊंगी. आप चिंता मत कीजिए,’’ दर्द से कहराते हुए आभा ने कहा.

मगर नवल उस की बातों पर ऐसा झल्ला उठा कि पूछो मत. मुंह बनाते हुए बोला, ‘‘क्या चिंता न करूं? अगर तुम खुद का ध्यान रखती, तो आज यह दिन न आता?’’

मगर वह भूल गया कि एक वही है जो घर में सब का ध्यान रखती है. घरबाहर के कामों से ले कर सब की छोटीबड़ी जरूरतों तक की जिम्मेदारी उसी की है, तो कहां बेचारी को समय मिलता है जो अपना ध्यान रखे.

आभा के अस्पताल में रहने से हफ्तेभर में ही घर की हालत बिगड़ने लगी. इधर नवल औफिस और अस्पताल के चक्कर में पिस रहा था और उधर रिनी और निर्मला घर के कामों को ले कर उलझ पड़तीं. सोनू भी अपनी मनमानी करने लगा था. आभा थी तो डांटडपट कर उसे पढ़ने बैठा दिया करती थी, लेकिन उस के न रहने से वह एकदम लापरवाह हो गया था. दिनभर दोस्तों के साथ घूमताफिरता. जब पूछो, तो सोनू घर पर नहीं है, सुनने को मिलता और नवल का माथा गरम हो जाता. लेकिन किसेकिसे देखे वह?

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तभी सुमन आ कर बोली कि उस का पति 14 दिनों के लिए औफिस के काम से बाहर जा रहा है, तो आज रात से वह आभा के पास रुक जाया करेगी. सुन कर नवल ने राहत की सांस ली, क्योंकि वह कई दिनों से ठीक से सो भी नहीं पा रहा था. लगा, जिस सुमन को वह चुगलखोर औरत कह कर संबोधित करता रहा, जिसे देखते ही उसे चिढ़ होने लगती थी आज वही सुमन उस के काम आ रही है. एक वही थी जो आभा के पास जा कर बैठती थी, जब नवल औफिस में होता तब.

आभा के लिए सुबह का चायनाश्ता, दोपहर का खाना ज्यादातर वही तो बना कर ले जाती थी. अपनी करनी पर पछतावा कर मन ही मन वह सुमन का शुक्रगुजार होने लगा. नवल को अब आभा की चिंता सताने लगी थी, क्योंकि डाक्टर कह रहा था कि अगर हैपेटाइटिस बीमारी लंबे समय तक रहे तो लिवर काम करना बंद कर सकता है या फिर कैंसर अथवा घाव हो सकते हैं. कहीं आभा को ऐसा कुछ हो गया तो बिस्तर पर पड़ेपड़े ही वह सोचने लगा. चिंता के मारे उसे नींद नहीं आ रही थी.

नवल जैसे ही अस्पताल पहुंचा तो आभा का मृत शरीर बैड पर पड़ा दिखा.

दोनों बच्चे बिलख रहे थे. निर्मला भी एक कोने में दुबकी यह कहकह कर सिसक रही थीं कि उस के मरने की उम्र न थी. फिर आभा क्यों चली गई? उधर सुमन उसे धिक्कार रही थी कि वही आभा की मौत का जिम्मेदार है. उसी ने उस की जान ली. कहती रही तबीयत ठीक नहीं है दिखा दो डाक्टर को पर नहीं दिखाया. लो देखो मर गई न… मौज करो अब. तभी अचानक हवा का झोंका आया और खिड़की का पल्ला धड़ाम से बंद हुआ तो नवल घबरा कर उठ बैठा. देखा, वहां कोई न था सिवा उस के.

‘उफ, तो यह सपना था?’ अपने दिल पर हाथ रख नवल ने एक गहरी सांस ली और फिर आभा की याद सताने लगी. मन हुआ फोन कर ले, पर लगा नहीं, अस्पताल है. लेकिन आभा को ले कर उस के मन में बुरेबुरे विचार आने लगे. ऐसा ही होता है, मुसीबत के वक्त नकारात्मक बातें दिमाग पर ज्यादा हावी हो जाती है. चाह कर भी इंसान अच्छी बातें सोच नहीं पाता. घबराहट के मारे वह पसीने से तरबतर हो गया. प्यास के मारे गला भी सूखने लगा. देखा, तो जग खाली पड़ा था. आभा थी तो रोज पानी भर कर रख दिया करती थी.

जैसे ही नवल पानी लेने किचन की तरफ जाने लगा, देखा, रिनी के कमरे की लाइट औन है. लगा भूल गई होगी, लेकिन जब कमरे से फुसफुसाने की आवाज आई, तो वह उस ओर बढ़ गया.

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वह फोन पर किसी से कह रही थी, ‘‘अरे, समझो, पापा घर पर ही हैं तो कैसे आऊं?’’

उधर से फिर उस ने कुछ बोला, तो रिनी कहने लगी, ‘‘कहा न नहीं आ सकती, अब फोन रखो कोई सुन लेगा… हांहां कल देखती हूं.’’

‘‘रिनी…’’ नवल जोर से चीखा. उस के हाथ से फोन खींच कर अभी कुछ बोलता कि तभी उधर से उस ने फोन काट दिया. दोबारा

फोन मिलाया, पर स्विच औफ आने लगा. जाहिर सी बात थी उस ने अपना फोन स्विचऔफ कर दिया था. लेकिन इतना तो पता चल गया नवल को कि रिनी किसी लड़के से बात कर रही थी. गुस्से से पापा को लाल होते देख रिनी डर के मारे थरथराने लगी.

‘‘किस से बात कर रही थी? कौन था यह लड़का?’’ नवल ने गुस्से में पूछा.

‘‘क… क कौन लड़का… कोई तो नहीं पापा,’’ रिनी साफ झूठ बोल गई.

‘‘चुप, झूठ मत बोल… अभी मैं ने सुना तुम किसी लड़के से मिलने की बात कर रही थी, पर पापा घर पर हैं इसलिए नहीं आ सकती… यही कहा न तुम ने उस लड़के से? बोलो कौन है वह?’’ नवल चीखते हुए बोला.

‘‘कोई तो न था पापा,’’ रिनी बोली.

नवल ने एक जोर का चांटा रिनी के मुंह पर मारते हुए कहा, ‘‘खबरदार जो आज के बाद बिना मेरे पूछे घर से बाहर कदम भी निकाला.’’

आगे पढ़ें- नवल की नींद और उड़ गई….

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