उस दिन जब अविनाश अपने दफ्तर से लौटा तो बहुत खुश दिख रहा था. उसे इतना खुश देख कर अनिता को कुछ आश्चर्य हुआ, क्योंकि वह दफ्तर से लौटे अविनाश को थकाहारा, परेशान और दुखी देखने की आदी हो चुकी थी. अविनाश का इस कदर परेशान होना बिना वजह भी नहीं था. सब से बड़ी वजह तो यही थी कि पिछले 10 सालों से वह इस कंपनी में काम कर रहा था, पर उसे आज तक एक भी प्रमोशन न मिला था. वह कंपनी के मैनेजर को अपने काम से खुश करने की पूरी कोशिश करता, पर उसे आज तक असफलता ही मिली थी.
प्रमोशन न होने के कारण उसे वेतन इतना कम मिलता था कि मुश्किल से घर का खर्च चल पाता था. उस की कंपनी बहुत मशहूर थी और वह अपना काम अच्छी तरह से समझ गया था, इसलिए वह कंपनी छोड़ना भी नहीं चाहता था.
अनिता अविनाश के दुखी और परेशान रहने की वजह जानती थी, पर वह कर ही क्या सकती थी.
उस दिन अविनाश को खुश देख कर उस से रहा नहीं गया. वह चाय का कप अविनाश को पकड़ा कर अपना कप ले कर बगल में बैठ गई और उस से पूछा, ‘‘क्या बात है, आज बहुत खुश लग रहे हो ’’
‘‘बात ही खुश होने की है. तुम सुनोगी तो तुम भी खुश होगी.’’
‘‘अरे, ऐसी क्या बात हो गई है जल्दी बताओ.’’
‘‘कंपनी का मैनेजर बदल गया. आज नए मैनेजर ने कंपनी का काम संभाल लिया. बड़ा भला आदमी है. उम्र भी ज्यादा नहीं है. मेरी ही उम्र का है. पर इतनी छोटी उम्र में मैनेजर बन जाने के बाद भी घमंड उसे छू तक नहीं गया है. आज उस ने सभी कर्मचारियों की एक मीटिंग ली. उस में सभी विभागों के हैड भी थे. उस ने कहा कि यह कंपनी हम सभी लोगों की है. इसे आगे बढ़ाने में हम सभी का योगदान है. हम सब एक परिवार के सदस्यों की तरह हैं. हमें एकदूसरे की मदद करनी चाहिए. कंपनी के किसी भी सदस्य को कोई परेशानी हो तो वह मेरे पास आए. मैं वादा करता हूं सभी की बातें सुनी जाएंगी और जो सही होगा वह किया जाएगा.