‘‘सिया, सिया, जल्दी आओ. देखो, तुम्हारे पापा कुछ बोल ही नहीं रहे हैं. जाने क्या हो गया.’’
सिया और समीर दोनों अपने कमरे से भागते हुए आए.
सिया ने ‘पापा, पापा’ पुकार कर उन का हाथ उठाया. उसे उन का हाथ बेजान लगा.
समीर ने डाक्टर को फोन किया.
सुजाता फूटफूट कर रोने लगी.
‘‘मम्मी, पापा को कुछ नहीं हुआ. आप रोइए मत, प्लीज, वरना मुझे भी रोना आने लगेगा.’’
डा. अनुराग समीर के मित्र थे, इसलिए तुरंत आ गए थे. उन्होंने आंख की पुतली देखी और ‘ही इज नो मोर’ कह कर कमरे से बाहर चले गए.
सिया मां से चिपट कर सिसकने लगी. जब कुछ देर वह रो चुकी तो समीर बोले, ‘‘सिया, अपने को संभालो.’’
समीर भी घबराए हुए थे. दीप की हरकतों से परेशान हो कर सिया मम्मीपापा को अपने साथ ले आई थी. अभी महीना भी पूरा नहीं हुआ था कि पापा सब लोगों को छोड़ कर चले गए.
‘‘मम्मी, पापा शाम को तो एकदम ठीक थे. क्या आप से कुछ कहासुनी हुई थी?’’
‘‘नहीं, बेटी.’’
मम्मी को असमंजस में देख उस का शक पक्का हो गया था कि वे उस से कुछ छिपा रही हैं.
‘‘सच बताओ, मम्मी, रात में क्या हुआ था?’’
वे सिसकते हुए बोलीं, ‘‘दीप का फोन आया था. उस ने पापा के जाली दस्तखत बना कर मकान का सौदा तय कर लिया है और बयाना भी ले लिया है. इसी बात पर पापा नाराज हो उठे थे. जौइंट अकाउंट होने के कारण वह बैंक से रुपए पहले ही निकाल चुका था. 2 दिन पहले श्याम चाचा का भी फोन आया था. घर पर किसी लड़की को ले कर आया था उस के कारण उन से भी उस ने खूब गालीगलौज और हाथापाई की.
‘‘इसी बात को ले कर बापबेटे के बीच जोरजोर से बहस होती रही थी. मैं ने इन्हें सम झाने का प्रयास किया तो मु झे डांट दिया. फिर आधी रात में उठ कर कोई दवा खा कर बोले, ‘ऐसी औलाद से बिना औलाद होते तो ज्यादा सुखी होते.’’’
‘‘मम्मी, इतनी बात हो गई और आप ने मु झे कुछ भी नहीं बताया.’’
‘‘बेटा, तुम लोग रात में देर से थकेमांदे आए थे. यह सब तो मैं, जब से दीप जवान हुआ है तब से देखसुन रही हूं. मु झे क्या मालूम कि यह बात आज इन के दिल में ऐसी चुभ जाएगी.’’
समीर मम्मी और सिया से बोले, ‘‘बताओ, कहांकहां फोन करना है. मैं ने दिया और श्याम चाचा को फोन कर दिया है. कह दिया है आप जिन्हें ठीक सम िझए उन्हें सूचना दे दीजिए. आप के आने के बाद ही कुछ होगा.’’
समीर के मित्र और पड़ोसी एकत्र हो गए थे. उन सब की सहायता से शव को बरामदे में रख कर सब वहीं खड़े हो गए.
समीर ने बताया कि श्याम चाचा, दिया और सुचित्रा बूआ के आने में लगभग 5 घंटे लग जाएंगे, इसलिए उन लोगों के आने के बाद ही कुछ होगा. यह सुनते ही सब लोग तितरबितर हो गए.
वहां पर सिया, समीर और सुजाता ही रह गए. सुजाता की आंखों के सामने दीप के बचपन की बातें चलचित्र की तरह चलने लगीं.
सिया और दिया के बाद दीप के पैदा होने पर घर में खुशियां छा गई थीं. अम्मा, सोम और श्याम भैया को बेटे की खबर सुनते ही मानो कारूं का खजाना मिल गया था. परिवार में पहला बेटा था, इसलिए अतिरिक्त लाड़प्यार का हकदार था. सीमित आमदनी होने के कारण बेटियों की जरूरतों पर कटौती शुरू हो गई. ढाईतीन साल का दीप अपने मन का न होने पर तब तक रोता जब तक उस की जिद पूरी न हो जाती.
सोम ने दोनों बेटियों को तो सरकारी हिंदी स्कूलों में पढ़ाया था. चूंकि कौन्वैंट स्कूल महंगे होते थे इसलिए उन का बहाना होता था कि वहां पढ़ कर बच्चे बिगड़ जाते हैं. सिया, दिया दोनों मेहनती थीं. हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम आतीं. इसलिए दोनों पढ़लिख कर डिगरी कालेज में लैक्चरर बन गईं.
परंतु जब दीप के ऐडमिशन का समय आया तो सोम ने उस का नाम कौन्वैंट स्कूल में 10 हजार रुपए डोनेशन दे कर लिखवाया था. सिया उस से 8 साल बड़ी थी, इसलिए उस से थोड़ा दबता था लेकिन दिया से तो उस की एक पल भी नहीं बनती थी.
दिया और दीप की आपसी मारपीट से परेशान हो कर मैं अकसर रो पड़ती थी. दोनों की गुत्थमगुत्था से खीज कर अकसर कहती, ‘ऐसा लगता है कि घर छोड़ कर कहीं चली जाऊं. लेकिन मेरा तो ठिकाना भी कहीं नहीं है.’
एक बार दोनों एक पैंसिल के लिए लड़ रहे थे. दीप ने दिया को गंदी सी गाली दी. सुनते ही मैं ने उसे एक जोरदार थप्पड़ लगा दिया था तो वह मुझ से ही चिपट गया और मेरी बांह में दांत गड़ा दिए थे. आज भी उस जख्म का निशान मेरी बांह पर बना हुआ है. जैसे ही दर्द से बिलबिला कर मैं ने उसे हलका सा धक्का दिया, वह जानबू झ कर मुंह के बल गिर पड़ा. होंठ में दांत चुभ जाने के कारण उस के खून छलक आया था. वह मुंह फाड़ कर जोरजोर से चिल्लाने लगा. अम्माजी खून देखते ही मुझ पर गरम हो उठी थीं.
‘मां हो कि दुश्मन, ऐसे धक्का दिया जाता है,’ वे दीप के आंसू पोंछ कर बोलीं, ‘मेरा राजकुमार है. अभी तुम्हारे लिए पैंसिल का पूरा डब्बा मंगवा कर दूंगी. तुम इस कलूटी को एक भी मत देना.’
अम्माजी दिया को लाड़ से कलूटी ही कहती थीं.
फिर दीप के कान में फुसफुसा कर बोलीं, ‘मेरे साथ आओ, मैं ने तुम्हारे लिए लड्डू छिपा कर रख रखे हैं,’ रोना तो महज उस का नाटक था.
मैं आंखों में आंसू भर कर रह गई थी. दीप ने एक लड्डू मुंह में रखा, दूसरा हाथ में और घर से फुर्र हो गया.
सोम बहुत गरममिजाज और कायदेकानून वाले थे. लेकिन बेटे की मोहममता में सारे कायदेकानून भूल जाते थे.
मैं सुबह से रात तक घर का काम करतीकरती थक जाती. मुंह अंधेरे ही उठ कर तीनों बच्चों का टिफिन पैक कर देती. खाना, कपड़ा, बरतन करतेकरते थक कर निढाल हो जाती थी.
तीनों बच्चों का दूध बना कर मेज पर रख देती थी. दीप चीखता हुआ कहता, ‘मु झे नहीं पीना सादा दूध, बौर्नविटा डालो तभी पीऊंगा.’
‘बौर्नविटा खत्म हो गया है, इसलिए चुपचाप दूध पियो, टिफिन बैग में रखो और स्कूल जाओ. वैन वाला कब से हौर्न बजा रहा है.’
मैं ने गिलास उठा कर दीप के मुंह में लगाने का प्रयास किया. आधा गिलास दूध देखते ही उस ने मेरे हाथ को झटक दिया. हाथ से गिलास छूट कर दूध जमीन पर फैल गया. मैं चिल्ला कर बोली, ‘बहुत बदतमीज हो गया है. सिया, दिया को जितना देती हूं, चुपचाप पी कर चली जाती हैं. ये नालायक हर समय कोई न कोई बखेड़ा खड़ा कर देता है.’
सोम कमरे से भागते हुए आए, डांटते हुए बोले, ‘तुम्हारा कोई भी काम ढंग से नहीं होता. जब तुम्हें पता है कि वह गिलास भर कर दूध पीता है तो तुम ने उसे चिढ़ाने के लिए जानबू झ कर आधा गिलास दूध क्यों दिया?’
‘मेरे लिए तो तीनों बच्चे बराबर हैं. मैं तो तीनों को एक सा खिलाऊंगी, पहनाऊंगी. मेरे लिए बेटाबेटी दोनों एक समान हैं,’ मैं ने जवाब दिया.
‘ज्यादा जबान मत चलाओ. सिया, दिया एक दिन दूध नहीं पिएंगी तो मर थोड़े ही जाएंगी,’ अम्माजी ने सोम के सुर में सुर मिलाया.
सिया दीप को बुलाने के लिए बाहर से आई थी. दादी और पापा की सारी बातें उस ने सुन ली थीं. 14 वर्ष की सिया सम झदार हो चुकी थी. उस दिन के बाद से उस ने दूध को हाथ भी नहीं लगाया. दिया दीप को जिद करते देख खुद भी वैसा ही करने लग जाती थी.