एक दिन दीप टिफिन मेज पर पटक कर बोला, ‘मैं आज से टिफिन नहीं ले जाऊंगा. सब बच्चे पकौड़े, इडली, पुलाव और जाने क्याक्या ले कर आते हैं परंतु तुम तो परांठे के सिवा कुछ बनाना ही नहीं जानतीं.’
मैं चिढ़ते हुए बोली, ‘सुबह इतने सारे काम होते हैं. छप्पन भोग बनाना मेरे वश का नहीं है. अपने बाप से कहो, नौकरानी रख लें, वही रचरच कर बनातीखिलाती रहेगी.’
दीप ने टिफिन गुस्से से जमीन पर फेंक दिया, ‘मु झे नहीं ले जाना यह सड़ा परांठा.’
मैं चीख कर बोली, ‘खाना फेंक रहे हो. 2-4 दिन भूखे रहोगे तो सब सम झ में आ जाएगा.’
सोम दौड़ेदौड़े आए. दीप का हाथ पकड़ कर बाहर ले गए. उन्होंने निश्चय ही उस की मुट्ठी में रुपए रख दिए होंगे. वह हंसताखिलखिलाता साइकिल पर चढ़ कर स्कूल चला गया.
अंदर आते ही सोम बोले, ‘तुम भी कम थोड़े ही हो, जब तुम्हें पता है कि वह परांठा नहीं पसंद करता है तो कुछ और बना दो लेकिन तुम कुत्ते की दुम की तरह हो. चाहे कितनी सीधी करो, टेढ़ी की टेढ़ी रहती है.’
‘आप मत चिल्लाइए, उस को बिगाड़ने में आप ही ज्यादा जिम्मेदार हैं. आप ने उसे रुपए क्यों दिए?’
‘वह भूखा रहता कि नहीं?’
‘तो क्या हुआ? एकाध दिन भूखा रहता तो दिमाग ठिकाने आ जाता. आप खुद खाने की प्लेट फेंकते हो, वही उस ने भी सीख लिया है.’
‘चुप रहो, ज्यादा चबड़चबड़ मत करो.’
मैं रोतेरोते किचन से चली आई. यह सब तो रोज का काम हो गया था.
दीप 9वीं कक्षा में आ गया था. उस की दोस्ती कक्षा के रईस, आवारा टाइप लड़कों से थी न कि पढ़ने में होशियार बच्चों से. एक दिन वह बोला, ‘पापा, यश मैथ्स की कोचिंग कर रहा है. मुझे भी कोचिंग जौइन करनी है.’
सोम दीप की किसी बात के लिए मना करना नहीं जानते थे. वे उस की हर फरमाइश पूरी करते.
‘पापा, आशू हमेशा ब्रैंडेड शर्ट ही पहनता है. मेरे पास तो एक भी नहीं है.’
अगले दिन ही सोम औफिस से लौटते हुए ब्रैंडेड शर्ट ले कर आए थे. शर्ट देख कर वह खुशी से सोम से चिपट कर बोला, ‘मेरे अच्छे पापा, आप बहुत अच्छे हैं.’
उसे सोम के ओवरटाइम की कोई फिक्र नहीं थी.
उसी साल सिया की शादी हो गई थी. दीप आजाद हो गया था. दिया से तो उस की अधिकतर बोलचाल ही बंद रहती थी.
सोम का प्रमोशन हो कर मंगलोर पोस्टिंग हो गई थी. वे दिया और दीप की पढ़ाई के कारण उन्हें श्याम भैया की देखरेख में यहीं छोड़ कर चले गए थे.
दीप घर से बाहर ज्यादा रहता, ‘मैं ट्यूशन पढ़ने जा रहा हूं,’ कह कर वह घंटों के लिए गायब हो जाता. उस पर डांटफटकार का कोई असर नहीं था. 2-3 महीने में सोम आते तो मैं मां होने के नाते शिकायतों का पुलिंदा खोल कर उन्हें सुनाने की कोशिश करती जिसे सोम ध्यान से सुनते भी नहीं थे.
हंस कर लाड़ से इतराते हुए दीप से कहते, ‘क्यों भई दीप, अपनी मम्मी का कहा माना करो. इन्हें परेशान मत किया करो. ये तुम्हारी ढेरों शिकायतें करती रहती हैं. हां, तुम्हारी इस वर्ष बोर्ड की परीक्षा है. तुम्हारी तैयारी कैसी चल रही है?’
‘फर्स्ट क्लास, पापा. मेरे तो सारे सब्जैक्ट्स तैयार हैं. रिवीजन चल रहा है.’
मेरी बातों से ज्यादा उन्हें बेटे की बातों पर विश्वास था. सोम निश्ंिचत थे कि उन की बीवी को तो हमेशा बड़बड़ करने की आदत है.
दीप का हाईस्कूल का रिजल्ट निकलने वाला था. सोम छुट्टी ले कर मंगलोर से आ गए थे. सोम बेटे से लडि़याते हुए बोले थे, ‘दीप, तुम्हारे 80 प्रतिशत अंक तो आ ही जाएंगे.’
दीप बोला था, ‘श्योर, पापा.’
‘भई, फिर तुम क्या इनाम लोगे?’
मेरा मन नहीं माना था, बीच में ही बोल पड़ी थी, ‘सिया ने जब पूरे कालेज में टौप किया था तो आप ने कभी नहीं पूछा था.’
‘अरे, वह तो बेटी थी. यह तो मेरा बेटा है, मेरा नाम रोशन करेगा.’
‘पापा, मुझे अपने दोस्तों को तो होटल में पार्टी देनी पड़ेगी.’
‘देना, जरूर देना. अपना मन मत छोटा करना. मु झे पहले से बता देना कि कितने रुपए चाहिए.’
दीप का रिजल्ट इंटरनैट पर देखा गया. उस के 51 प्रतिशत अंक देख कर सोम ने आव देखा न ताव, उस पर थप्पड़ों की बरसात कर दी थी. बेटे को बचाने के चक्कर में 1-2 हाथ मेरे भी लग गए थे.
घर में मातम का माहौल था, परंतु दीप पर कोई असर नहीं था. वह ढीठ की तरह कह रहा था, ‘मेरे तो सारे पेपर अच्छे हुए थे, जाने कैसे इतने कम अंक आए हैं. जरूर कहीं गड़बड़ है. मैं स्क्रूटनी करवाऊंगा.’
सोम को बहुत बड़ा सदमा लगा था. शर्म के कारण वे 2-3 दिन घर से बाहर नहीं निकले. वे सम झ नहीं पा रहे थे कि दीप को सही रास्ते पर कैसे लाएं.
तमाम दौड़धूप कर के सोम ने दीप का ऐडमिशन कौमर्स में करवाया. बेटे को अपने पास बिठा कर प्यार से खूब सम झाया, ‘बेटा दीप, मेरे पास कोई दौलत नहीं रखी है कि मैं तुम्हें कोई दुकान या व्यापार करवा सकूं. तुम्हें मेहनत से पढ़ना होगा क्योंकि तुम्हें पढ़लिख कर भविष्य में आईएएस औफिसर बनना है.’
‘जी पापा, मैं अब मन लगा कर पढ़ाई करूंगा.’ आंखों में आंसू भर कर सोम मंगलोर चले गए.
दीप फिर पुराने रवैए पर लौट आया था. कोचिंग के बहाने वह दिनभर घर से गायब रहता. जब घर में रहता तो या तो मोबाइल पर बातें करता या इयरफोन कानों में लगा कर गाने सुनता.
श्याम भैया ने एक दिन डांटते हुए कहा, ‘दीप बेटा, पढ़ाई पर ध्यान दो. इस वर्ष तुम्हारी इंटर की बोर्ड परीक्षा है. हाईस्कूल की तरह इस बार रिजल्ट खराब न हो.’
दीप बिगड़ कर बोला, ‘चाचा, मैं अपना भलाबुरा सम झता हूं. आप को उपदेश देने की जरूरत नहीं है.’
श्याम भैया ने उस दिन के बाद से दीप की हरकतों की ओर से अपनी आंखें बंद कर लीं. दीप की शामें दोस्तों के साथ रैस्टोरैंट में पिज्जाबर्गर खाए बिना नहीं बीतती थीं. सब बीयर पार्टी का भी लुत्फ उठाते थे. खर्चे से बचाए हुए जो रुपए अलमारी के कोनों में मैं छिपाए रखती थी, आसानी से उन पर वह हाथ साफ करता रहता. धीरेधीरे उस की हिम्मत बढ़ती जा रही थी. मैं परेशान रहती. परंतु यदि भूल से भी दीप से कुछ कहती तो वह मुझ से लड़ने पर उतारू हो जाता था. मैं मन ही मन घुटती रहती. मेरे दिल के दर्द को कोई सुनने वाला नहीं था. दिनबदिन मैं सूख कर कांटा होती जा रही थी.
एक दिन श्याम भैया मुझे डाक्टर के पास ले कर गए तो डाक्टर ने तमाम टैस्ट कर डाले. ईसीजी करने के बाद उन्होंने दिल की बीमारी बताई. डाक्टर ने ढेर सारी दवाएं और पूरी तरह आराम करने की सलाह दी.
सोम मेरी बीमारी की खबर सुन कर भागे चले आए. मेरी हालत देख उन की आंखों में आंसू आ गए थे. दीप पक्का नाटकबाज था. जब तक सोम थे, उन के सामने कौपीकिताब खोल कर बैठा रहता. सोम का और मेरा भी काम में हाथ बंटाता. मेरी देखभाल भी करता. सोम को लगा कि मेरी बीमारी के कारण वह सुधर गया है.