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आज सुबहसुबह ही भाभी का फोन आया कि जरूरी बात करनी है, जल्दी आ जाओ और फोन काट दिया. मैं ने चाय का प्याला मेज पर रख दिया और अखबार एक ओर रख कर सोचने लगा कि कोई बात जरूर है, जो भाभी ने एक ही बात कह कर फोन काट दिया. लगता है, भाभी परेशान हैं… सोचतेसोचते मैं अपनी युवावस्था में पहुंच गया जब मैं बी.एससी. का छात्र था.

‘‘अरे, चाय ठंडी हो गई है… क्या सोच रहे हैं?’’ बेला ने आवाज लगाई, तो मैं जैसे सोते से जाग उठा और बोला, ‘‘अरे, ध्यान ही नहीं रहा.’’ मैं ने चाय का प्याला उठाया. चाय वाकई ठंडी हो गई थी. मैं ने कहा, ‘‘पी लूंगा, कोई खास ठंडी नहीं हुई है.’’

‘‘ऐसे कैसे पी लोगे? मैं अभी दूसरी चाय बना लाती हूं,’’ बेला ने मेरे हाथ से चाय का प्याला पकड़ा और फिर ‘न जाने बैठेबैठे क्या सोचते रहते हैं,’ कहती हुई चली गई.

मैं ने अखबार उठा कर पढ़ना शुरू किया ही था कि बेला चाय ले कर आ गई, ‘‘लो, चाय पी लो पहले वरना फिर ठंडी हो जाएगी,’’ कह कर वह खड़ी हो गई.

मैं ने कहा, ‘‘पी लेता हूं भई, अब तुम खड़ी क्यों हो, जाओ अपने काम निबटा लो.’’

‘‘नहीं, पहले चाय पी लो… मैं ऐसे ही खड़ी रहूंगी.’’

‘‘मैं कोई बच्चा हूं?’’

‘‘हां… कुछ भी ध्यान नहीं रहता, न जाने कहां खोए रहते हैं. बताइए न, क्या बात है?’’ कह कर बेला मेरे बराबर वाली कुरसी पर बैठ गई.

मैं ने चाय का घूंट भरा और बोला, ‘‘देखो बेला, कुछ समस्याएं व्यक्ति की पारिवारिक हो कर भी कभीकभी निजी बन जाती हैं. बस, समझ लो कि यह मेरी निजी समस्या है, इसे मुझे ही हल करना है.’’

‘‘अब तुम्हारी कोई भी समस्या निजी नहीं हो सकती, कहीं न कहीं वह मुझ से जुड़ी होगी. अत: मिलजुल कर ही हमें उसे सुलझाना है… अच्छा, बताओ क्या बात है?’’

मैं ने चाय का खाली प्याला मेज पर रख दिया और बोला, ‘‘सुबह ही भाभी का फोन आया था कि कोई जरूरी बात करनी है, ‘जल्दी आ जाओ’ कह कर उन्होंने फोन काट दिया. काफी दिनों से मैं महसूस कर रहा हूं कि भाभी परेशान हैं. लगता है, बेटेबहुओं के साथ कुछ खटपट चल रही है. जब से भैया गए हैं, वे अकेली हो गई हैं… अपने मन की बात किस से करें?’’

‘‘क्यों, बेटेबहुएं उन के अपने नहीं हैं? मंजरी उन की अपनी नहीं है? क्यों नहीं बांट सकतीं वे अपनी परेशानियों को अपने बच्चों के साथ?’’ बेला ने कहा.

‘‘अरे, मंजरी तो अब दूसरे घर की हो गई है. रह गए सौमित्र और राघव, वे दोनों अपने व्यापार और गृहस्थी में मशगूल हैं. तीनों बच्चों में कोई ऐसा नहीं, जिस से भाभी अपने मन की बात कह सकें.’’

‘‘आप हैं न उन की समस्याओं के समाधानकर्ता?’’ बेला ने कहा.

‘‘मैं…हां, मैं हो सकता हूं. मुझे वे अपना मानती हैं, सौमित्र और राघव के साथ वे मुझे अपना तीसरा बेटा मानती हैं. वे बेटों से अकसर कहा करती थीं कि नालायको, तुम बुढ़ापे में हमारे सुखदुख में काम नहीं आओगे. गौरव मेरा तीसरा बेटा है, उस के होते मुझे तुम्हारी सहायता की जरूरत नहीं.’’ कह कर मैं चुप हो गया.

बेला बोली, ‘‘ठीक है, अगर आप कुछ कर सकते हैं तो जरूर करिए… मैं समझती हूं कि उन्हें कोई आर्थिक परेशानी तो नहीं होनी चाहिए. भैया काफी रुपया, बड़ी कोठी, जायदाद छोड़ कर गए हैं. हमारे पास तो उन से आधा भी नहीं. वही पारंपरिक सासबहू या बेटों की समस्या होगी, मुझे तो इस के अलावा कुछ नजर नहीं आता.’’

‘‘लगता तो मुझे भी ऐसा ही है. भाभी बड़े घर की हैं, उन्होंने सदा हुक्म चलाया है, भैया और अपने बच्चों पर ही नहीं, मुझ पर भी. अब जमाना बदल गया है, उन की हुक्मउदूली हो रही होगी, जो उन्हें बरदाश्त नहीं हो रही होगी,’’ कह कर मैं ने बेला की ओर देखा.

‘‘ऐसा करो तुम आज ही चले जाओ… भाभी से मिल कर देखो कि क्या बात है और उसे किस प्रकार सुलझाया जा सकता है,’’ कह कर बेला चली गई.

कालेज के दिनों की मेरी स्मृतियां मेरी आंखों के सामने रहरह कर घूमने लगीं…

‘‘भाभी, ओ भाभी… सुनती हो…’’

‘‘आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो, यही न?’’ कह कर भाभी ने मेरा वाक्य पूरा किया.

‘‘भाभी, सच्चीमुच्ची, आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो.’’

‘‘तो?’’

‘‘तो कुछ नहीं, बस लग रही हो, मन करता है तुम्हारी कोली भर लूं और तुम्हारी पप्पी ले लूं. भाभी प्लीज, एक पप्पी…’’

‘‘जरूर,’’ कह कर वे आगे बढ़ीं और ‘‘ले पप्पी,’’ कह कर मेरी कमर पर प्यार से धौल जमा दी, ‘‘कैसी लगी?’’

इस पर मैं ने कहा, ‘‘बहुत मीठी.’’

वे चली गईं.

ठीक है, ले कर ही रहूंगा पप्पी, मैं ने उन्हें पीछे से सुनाया. उन से पैसे झटकने का मेरा यह अपना अंदाज था. एक दिन मैं ने उन से कहा, ‘‘भाभी, आज तो गजब ढहा रही हो, बड़ी सुंदर लग रही हो.’’

‘‘बिना किसी बात के ही मैं सुंदर लग रही हूं?’’

‘‘हां भाभी, बिना किसी बात के.’’

‘‘थैंक्स.’’

मैं बोला, ‘‘भाभी, बस थैंक्स और कुछ नहीं?’’

‘‘और क्या… बोलो, लग रही हूं सुंदर? बिना बात तो मैं सुंदर लगती नहीं, मैं ने तो पूछा था, बता क्या बात है, क्यों लग रही हूं

मैं आज सुंदर? तू ने नहीं बताया तो क्या मैं थैंक्स भी नहीं देती?’’ कह कर वे मुसकाईं

और बोलीं, ‘‘अच्छा बता, आज कितने रुपए चाहिए?’’

‘‘चलो, आप जिद कर रही हैं तो बस 1 नोट.’’

भाभी ने झट 5 रुपए का नोट मेरी ओर बढ़ाया.

मैं ने कहा, ‘‘मैं बैरा हूं क्या? फिर 5 रुपए तो आजकल उन्हें भी टिप नहीं दी जाती. मेरी औकात 5 रुपए?’’

‘‘अरे, तो बोल न कितने की औकात है तेरी, 10, 20, 50 कितने की?’’

‘‘50 से आगे गिनती नहीं आती क्या?’’

भाभी ने 100 रुपए का नोट मेरी ओर बढ़ाया और फिर मेरे मुंह पर हलकी सी चपत लगाई और मुसकरा कर चली गईं.

भैया यह सब देख रहे थे. उन्होंने भाभी से कहा, ‘‘देखो सुमित्रा, तुम गौरव को बिगाड़ रही हो, उस से यह भी नहीं पूछतीं कि किसलिए चाहिए, तुझे रुपए?’’

‘‘अरे बच्चा है, अपने सौमित्र और राघव भी तो ऐसे ही जिद करते हैं, गौरव को रुपए दे देती हूं तो क्या हुआ?’’

‘‘इस तरह रुपए दे कर तुम सौमित्र और राघव को भी बिगाड़ोगी तो मैं बरदाश्त नहीं करूंगा. मानता हूं तुम गौरव को बेटे जैसा मानती हो, पर इस तरह बच्चे बिगड़ जाते हैं.’’

उस दिन भाभी का मूड खराब हो गया. वे भैया से बोलीं, ‘‘मेरी अजीब मुश्किल है. गौरव पर सख्ती बरतती हूं तो अजीब सी उथलपुथल मच उठती है दिल में, ढील देती हूं तो तुम्हें अच्छा नहीं लगता. सोच नहीं पाती हूं कि मुझे क्या करना चाहिए.’’

भाभी जब बैठी हुई होती थीं तो मैं अकसर पीछे से जाता और उन के गले में दोनों बांहें डाल कर उन की पीठ पर झूल जाया करता था.

वे कह उठती थीं, ‘‘हट रे, मेरी जान निकालेगा क्या?’’

मैं कहता, ‘‘क्या भैया से भारी हूं?’’

‘‘तो क्या उन्हें अपनी पीठ पर बैठाती हूं?’’

‘‘पीठ पर नहीं, सिर पर तो बैठाती हो.’’

वे बोलीं, ‘‘अरे, सिर पर तो मैं ने तुझे चढ़ा रखा है. तेरे भैया यही शिकायत करते हैं कि मैं ने तुझे सिर पर चढ़ाया हुआ है, उसे बिगाड़ कर छोड़ेगी.’’

‘‘उन्होंने कभी मेरे मजाक का बुरा नहीं माना. जब तक तुम नहीं आई थीं बेला, भाभी के साथ जिंदगी हंसीमजाक में कटती थी.’’

‘‘फिर रोतेझींकते कटने लगी जिंदगी मेरे साथ, यही कहना चाहते हो न?’’ बेला तुरंत बोली.

मैं ने कहा, ‘‘ऐसा तो मैं नहीं सोचता, लेकिन इतना सुखी, इतना दुविधारहित जीवन मैं ने फिर कभी नहीं देखा, न किसी की फिक्र न फाका. मां तो बचपन में ही मर गई थीं और जब भैया की शादी हुई तो मैं ज्यादा छोटा नहीं था, 10वीं कक्षा में पढ़ता था. मां मुझे बहुत याद आती थीं. लेकिन भाभी के प्यार ने मां की याद भुला दी. मेरे हर सुखदुख की साथी बनीं भाभी.’’

तभी बेला चौंक पड़ी, ‘‘अरे दूध?’’ कह कर रसोई की ओर भागी.

मैं जोर से चिल्लाया, ‘‘अरे, क्या हुआ?’’

‘‘होना क्या था, सारा दूध उबल कर बह गया तुम्हारे भाभीपुराण के चक्कर में.’’

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