बीजी सुबह 8 बजे उठ जातीं. नहाधो कर थोड़ी बागबानी करतीं. दही बिलो कर मक्खन निकालना, आटा गूंधना, सब्जी काटना ये सब काम मेरे उठने से पहले ही कर लेती थीं. आज जब मैं सुबह उठी तो कोई खटखट सुनाई नहीं दी. कहां गईं बीजी, गुरुद्वारे तो कभी नहीं जातीं. कहती हैं घरगृहस्थी है तो फिर कैसा भगवान. सारे काम करने के बाद ही वे कालोनी के छोटे बाग में जाती थीं जहां मुश्किल से
10 मिनट तक टहलतीं. निक्की, मीशा के कमरे में भी नहीं मिलीं. बाहर आंगन में भी नहीं. अभी तो गेट का ताला भी नहीं खुला. फिर गईं तो कहां गईं.
सब के जाने का समय हो रहा था. बच्चों को तैयार करना, स्वयं तैयार हो कर स्कूल जाना. शिवम का औफिस के लिए लंच बनाना. कितने काम पड़े थे और इधर बीजी को ढूंढ़ने में ही समय निकलता जा रहा था. एकाएक ध्यान आया, वे अपने कमरे में भी तो हो सकती हैं. जल्दी से मैं वहां गई. दरवाजा आधा खुला हुआ था. झांक कर देखा तो सच में बीजी अपने पलंग पर ही सो रही थीं. मुझे चिंता हो गई.
वे इतनी देर तक कभी सोती ही नहीं. क्या बात हो सकती है. मैं ने उन्हें जगाया पर वे जागी नहीं. मैं ने जोर से झकझोरा, वे तब भी जगी नहीं. नाक के आगे उंगली रखी. सांस का स्पर्श नहीं हुआ. नब्ज देखी वह भी रुकी हुई थी. ऐसा लग रहा था वे निश्ंिचत हो कर सो रही हैं. मेरे मुंह से चीख निकल गई. आवाज सुन कर शिवम कमरे में आ गए. बच्चे भी जग गए. पूरे घर में कुहराम मच गया. पड़ोसी भी आ गए. धीरेधीरेरिश्तेदार और शहर के अन्य जानपहचान के लोग भी एकत्र हो गए.
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