72 वर्षीय श्रीकांत हाथ में लिफाफा लिए हुए घर में घुसे. पत्नी सुमित्रा लिफाफा देखते ही खुश हो गई थीं. वे बोलीं, ‘‘क्या अर्णव की चिट्ठी आई है? वह कब आ रहा है?’’ परंतु उन के उदास चेहरे पर निगाह पड़ते ही वे चिंतित हो उठी थीं. ‘‘क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है? आप का चेहरा क्यों इतना उतरा हुआ है?’’
पत्नी के सारे प्रश्नों को नजरअंदाज करते हुए श्रीकांत सोफे पर निराशभाव से धंस कर बैठ गए थे. उन का चेहरा झुका हुआ था, दोनों हाथ उन के सिर पर थे.
पति का गमगीन चेहरा देख, बुरी खबर की आशंका से सुमित्रा एक गिलास में पानी ले कर आई. फिर पूछा, ‘‘कांत, क्या बात है? कुछ तो बोलिए?’’
श्रीकांत रोंआसे हो कर बोले, ‘‘बैंक से मकान की नीलामी का नोटिस आया है. तुम्हारा लाड़ला राजकुमार इस मकान के ऊपर बैंक से लोन ले कर अमेरिका गया है. लोन की एक भी किस्त नहीं भेजी है. नालायक कहीं का. तुम्हारे लाड़ले ने अपने बूढ़े बाप को हथकड़ी पहना कर जेल भेजने का पक्का प्रबंध कर दिया है.’’
‘‘बड़े घमंड और शान से ब्लैंक चैक कहा करती थीं न.’’‘‘देख लो, अपने ब्लैंक चैक को. मांबाप को मुसीबत में डाल दिया है.’’ ‘‘हमारा मकान नीलाम होगा…’’ सुमित्रा घबरा कर बोलीं, ‘‘किसी तरह कोशिश कर के इस नीलामी को रोकिए. इस बुढ़ापे में हम लोग कहां जाएंगे. जो कहना है, अपने राजदुलारे से कहो.’’
‘‘उस का तो कुछ अतापता ही नहीं है.’’ श्रीकांत बोले, ‘‘उस की राह देखतेदेखते तो आंखों की रोशनी भी चली गई. अब तो आंखों के आंसू भी सूख चुके हैं.’’
‘‘आप मुझे बताइए, मैं उस अफसर के पैर पकड़ लूंगी, भीख मांगूंगी कि मुझे मोहलत दे दो. इस बुढ़ापे में बताओ भला मैं कहां भटकूंगी.’’
‘‘चुप हो जाओ. सब तुम्हारा ही कियाधरा है. तुम्हारी बातों में आ कर आज यह दिन देखना पड़ रहा है.’’ श्रीकांत बोले. फिर वे मन ही मन बुदबुदाए थे, ‘‘झूठे राजेश के झांसे में पड़ कर सबकुछ बरबाद हो गया. वह पैसा खाता रहा, कहता था कि सर, आप निश्ंिचत रहिए, मैं ने आप की फाइल नीचे दबा दी है. अब किसी अफसर की निगाह ही उस पर नहीं पड़ सकती. मैं ने आप की जिंदगीभर का इंतजाम कर दिया है. झूठा, मक्कार एक लाख रुपया भी खा गया और न कुछ करा न धरा.’’
पत्नी को रोते देख वे खिसिया कर बोले, ‘‘सुमित्रा, शांत हो जाओ. अब सबकुछ औनलाइन हो गया है, इसलिए कोई कुछ कर भी नहीं सकता.’’ सुमित्रा चुपचाप बैठी रही थीं. उन्हें अपने चारों ओर अंधकार दिखाई पड़ रहा था. अंधेरे में तीर मारते हुए उन्होंने अपने दोचार परिचितों को फोन मिलाया परंतु किसी से अपनी समस्या कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं.
उन के जेहन में बारबार बेटीतुल्य ननद शची का चेहरा याद आ रहा था. अपने बेटे के मोह में वे अंधी हो गई थीं. बेटे के घमंड में वे शची को जाने क्याक्या कह बैठी थीं. कांत ने उन्हें समझाने की कोशिश की थी तो वे उन से भी उलझ बैठी थीं.
शची की कही बात सौ प्रतिशत सही निकली. उस की कही हुई बात उन के दिल पर हथौड़े सी हमेशा चोट करती रहती है. ‘भाभी, अब समय बदल गया है. बेटेबेटी में अब कोई फर्क नहीं रह गया है. ब्लैंक चैक की रातदिन आप माला जपती रहती हैं जबकि उस के लक्षण से तो लगता है कि वह ब्लैंक ही न रह जाए.’
एक दिन वह आई थी केवल उन्हें आगाह करने के लिए. ‘भाभी, आप का बेटा बिगड़ रहा है. अपनी आंखों के ऊपर से पट्टी खोलिए, जब उस की असलियत खुलेगी तब आप को मेरी कही बात याद आएगी.’
‘‘कांत, मैं शची से बात करूं. अब तो वही एक सहारा दिखाई पड़ रही है.’’ ‘‘किस मुंह से उस से मदद मांगोगी. तुम ने उसे कितना जलील किया था. मेरा तो राखी का रिश्ता भी तुड़वा दिया और आज जब तुम्हें जरूरत है, तो उस की याद आ रही है.’’
‘‘एक बात समझ लो, पैसा बड़ी बुरी चीज है. मदद मांगते ही अपने भी पराए हो जाते हैं. उसे तो तुम दुश्मन ही समझती थीं.’’ सुमित्रा अपने आंसू पोंछ कर बोलीं, ‘‘कांत, हम लोग शची से अपना लोन चुकता करने को कहेंगे. फिर यह घर उसी के नाम कर देंगे और हम लोग किराएदार की तरह उसे हर महीने किराया दे दिया करेंगे.’’
‘‘तुम्हारा प्लान तो अच्छा है लेकिन उस ने मना कर दिया तो…’’‘‘नहीं, वह मना नहीं करेगी. इस समय उस के लिए 10 लाख रुपए कोई बड़ी रकम नहीं है. इस से हम लोगों की इज्जत सरेआम नीलाम होने से बच जाएगी और घर की चीज घर में ही रह जाएगी.’’‘‘मैं उस दिन उधर से निकल रही थी तो अंजू ने उस की कोठी दिखाई थी. आजकल शची के बंगले की चर्चा पूरे महल्ले में हो रही है.’’
‘‘सुमित्रा, प्लीज इस समय चुप हो जाओ.’’वे चुप हो कर मन ही मन सोचने को विवश हो गईं कि आज की स्थिति के लिए काफी हद तक क्या वे खुद जिम्मेदार नहीं हैं.
श्रीकांत चिंतित मुद्रा में शून्य में निहार रहे थे. उन के उदास और मुरझाए हुए चेहरे को देख सुमित्रा घबरा उठी थीं. यदि कांत इस सदमे को न झेल पाए और इन्हें कुछ हो गया, तो उन का क्या होगा?
वे चुपचाप वहां से उठ कर अंदर कमरे में चली गई थीं. काफी देर तक वहीं पर बैठेबैठे सोचती रहीं. जब किसी तरह कोई समाधान नहीं सूझा तो उन्होंने अपना मोबाइल उठाया और शची से माफी मांगते हुए अपनी सारी समस्या खुल कर कह डाली थी.
शची के उत्तर की प्रतीक्षा कर रही थीं. फिर पति का ध्यान आते ही वे गिलास में दूध ले कर आईं. कांत ने दूध की ओर निगाह उठा कर देखा भी नहीं. फिर भला वे क्या खातीपीतीं.
पतिपत्नी दोनों ही भविष्य के अंधकार की कालिमा की चिंता के कारण एकदूसरे की ओर पीठ कर के लेट गए. थके हुए कांत कुछ देर में खर्राटे भरने लगे थे. परंतु निराशा की गर्त में डूबी सुमित्रा अतीत के पन्नों को पलटने में उलझ गई थीं.
शची उन की छोटी और प्यारी सी ननद है जिस की शादी करने में श्रीकांत ने अपना सबकुछ लुटा दिया था. परंतु लालची पति के अत्याचार से परेशान हो कर शची 5 वर्ष की बेटी आन्या को ले कर उन के पास लौट कर आ गई थी. श्रीकांत अपनी बहन शची को पितातुल्य स्नेह देते थे. उन्होंने सब से पहले उसे अपने पैरों पर खड़े होने की सलाह दी.
भाईबहन की मेहनत रंग लाई थी. शची ने पहली बार में ही बैंक की परीक्षा पास कर ली थी. शची की तनख्वाह और प्यारी सी आन्या के आ जाने से उन की खुशियों में चारचांद लग गए. ननदभाभी के बीच प्यारा सा रिश्ता था. नन्ही सी आन्या के ऊपर वे अपना प्यार लुटा कर बहुत खुश थीं. वह स्कूल से आती तो वह स्वयं उसे अपने हाथों से खाना खिलातीं, उस के साथ खेलतीं. सबकुछ सुचारु रूप से चलने लगा था. शची अपनी तनख्वाह सुमित्रा के हाथ में ही रखती थी.