मान्या वंश के घर भी जाती रहती थी. उस की मां और पापा से मिल चुकी थी.
मां सोना और सत्येंद्र को मान्या पसंद थी, इसलिए उस के हौसले और भी बढ़ गए थे.
एक दिन मान्या वंश को ले कर घर आई और
रसिका से मिलवाया.
रसिका भी वंश के आकर्षक व्यक्तित्व और नामीगिरामी परिवार का चिराग है, जान कर खुशी से फूल कर कुप्पा हो गई. उस ने बेटी को शादी के लिए वंश पर जोर डालने की सलाह दी.
वंश उसे अपना भावी दामाद लगने लगा था, इसलिए मान्या को उस के संग घूमनेफिरने की पूरी आजादी थी. दोनों अंतरंग रिश्ते की डोर से बंध गए थे.
रसिका ने एक दिन वंश और उस के परिवार को अपने घर पर लंच के लिए बुलाया ताकि वे लोग उन के बारे में अच्छी तरह से जानकारी ले लें और उन का घर और रहनसहन भी देख लें. वैभव उस दिन गांव गया था.
वंश के पिता ने उसी समय उन दोनों के रिश्ते पर अपनी मुहर लगा दी. उन्हें मान्या पसंद थी.
एक बार में ही सबकुछ इतनी जल्दी तय हो जाएगा, रसिका ने सपने में भी नहीं सोचा था.
रसिका खुशी से गद्गद हो कर गुरू के चरणों में गिर गई, ‘‘आप की महिमा अपरंपार है. आप की वजह से ही इतने बड़े परिवार में मेरी बेटी का रिश्ता तय होने जा रहा है.’’
सगाई समारोह पांचसितारा होटल में संपन्न हुआ. मान्या के परिवार से तो कोई था नहीं, केवल औफिस की मित्रमंडली थी.
वंश के नातेरिश्तेदारों का पूरा हुजूम था. उसी दिन शादी की तारीख भी तय कर दी गई.