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शालिनी 8 साल की हो चुकी थी. तभी मंजरी की जिंदगी में अमित ने आ कर हलचल पैदा कर दी.

अमित, जिसे वह लगभग भूल चुकी थी, एक मौल में खरीदारी करते हुए दिखा. वह काफी हैंडसम लग रहा था. दोनों का आमनासामना हुआ.

‘‘मंजरी,’’ वह मुसकराया.

‘पहचान लिया,’’ मंजरी हंसी.

‘‘क्यों नहीं पहचानूंगा. हम दोनों ने एकसाथ कैंप में 10 दिन जो गुजारे हैं. मुझे आज भी याद है, जब तुम ने अपने हाथों से मेरे लिए सैंडविच बनाया था,’’ अमित बोला.

‘‘जानते हो, मुझे तब सिवाय चाय बनाने के कुछ नहीं आता था. पता नहीं, कैसा बना था?’’ मंजरी का चेहरा बन गया.

‘‘बहुत अच्छा बना था,’’ उस ने आसपास नजरें घुमाईं.

’’तुम्हारे पति नहीं दिख रहे. यह प्यारी सी बेटी तुम्हारी है?” उस ने नजरें झुका कर उस बच्ची के गालों पर हाथ फेरा.

‘‘हां, मेरी ही बेटी है, शालिनी,’’ कह कर मंजरी का चेहरा कुछ पल के लिए उदास हो गया. अमित ने उस के चेहरे को पढ़ लिया.

‘‘चलो… पास के किसी रेस्टोरेंट में चलते हैं, वहीं बैठ कर बातें करेंगे?’’

अमित का यह प्रस्ताव उसे अच्छा लगा.

‘‘पति एक दुर्घटना में चल बसे. यही एकमात्र संतान है मेरी. इसे पालपोस कर एक अच्छा इनसान बनाना है.’’

‘‘दूसरी शादी का खयाल नहीं आया?”

‘‘आया था, मगर कोई मिले तब ना… अब तो मैं ने आस भी छोड़ दी है. नियति जहां ले जाएगी वही चली जाऊंगी,’’ मंजरी ने उसांस ली.

‘‘तुम यहां क्या कर रहे हो?’’ मंजरी निराशा से उबरी.

‘‘मैं एयर फोर्स में हूं. यहीं पोस्टिंग मिली है.’’

‘‘पत्नी, बच्चे?’’ मंजरी के इस सवाल पर उस के चेहरे पर फीकी मुसकान तिर गई.

“तलाक का केस चल रहा है.’’

शाम गहराने को थी. सो, बातचीत का सिलसिला यहीं खत्म कर दोनों अपनेअपने घर लोेैट आए.

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एक हफ्ते बाद अमित मंजरी से मिलने उस के घर आया. उसे देखते ही वह भावविह्वल हो गई. अमित उस का पहला प्यार था, जिस की चिंगारी वक्त की राख में कहीं दब गई थी. आज फिर से उभरने लगी थी. उस का जी किया कि अमित के गले लग कर खूब रोए. पर किस हक से? उस ने अपने जज्बात पर नियंत्रण रखा.

कौफी की चुसकियों के बीच अमित ने उस की निजी जिंदगी को कुरेदा. उस ने कुछ नहीं छुपाया. एकएक कर अपने अतीत के सारे पन्ने खोल कर रख दिए. अमित को उस से सहानुभूति थी. बातोंबातों में उस ने मंजरी से पूछा, ’’क्या अकेलापन काटने के लिए नहीं दौड़ता?’’

यह सुन कर वह मुसकराई. उस की मुसकराहट में एक गहरी वेदना का एहसास था. वह वेदना जो जीवनसाथी के न रहने पर एक अकेली स्त्री को झेलनी पड़ती है. तभी अमित के फोन की घंटी बजी. वह मोबाइल ले कर एक तरफ चला गया. लोैटा तो उस के चेहरे पर निराशा थी. मंजरी को जिज्ञासा हुई.

‘‘क्या बात है? बड़े परेशान लग रहे हो?’’ पहले तो उस ने नानुकुर किया. पर जब उसे लगा कि मंजरी कुछ ज्यादा ही पसेसिव हो रही है तो बोला, ‘‘मेरी पत्नी का फोन था.’’

मंजरी ने आगे कुछ भी पूछना उचित नहीं समझा. हां, इतना जरूर था कि उस का दिल पहले की तरह सामान्य नहीं रहा. क्यों? यही तो मंजरी को समझना था. आखिर किस हक से वह अमित पर इतना भरोसा कर रही है? वह शादीशुदा आदमी है. उस का अपना परिवार है. क्या वह अपनी मर्यादा नहीं तोड़ रही? बहरहाल, इस समय यह सब सोचने का वक्त नहीं था. वह तो बस अमित के रूप में पिछला प्यार लौट आने की खुशी से लबरेज थी. वह इस पल को जी लेना चाहती थी. लंबे समय से पुरुष संसर्ग से वंचित मंजरी के लिए यह एक भावानुभूति पल था.

‘‘तुम कुछ परेशान से दिख रहे हो?” मंजरी ने पूछा.

‘‘मेरी जिंदगी भी तुम्हारी ही तरह विडंबनाओं से भरी हुई है,’’ अमित भरे मन से बोला.

‘‘मैं कुछ समझी नहीं,” मंजरी असमंजस में थी. अमित ने एकएक कर अपने अतीत के सारे पन्ने खोल कर रख दिए.

मंजरी को जान कर अच्छा न लगा. इतना होनहार, काबिल, हैंडसम पति की पत्नी इस तरह हो सकती है? कैसे उस का दिल किसी और के साथ गुलछर्रे उड़ाने को करता है? वह भी बिना तलाक के. अमित ऐसा शरीफ कि कभी अपनी पत्नी से जोरजबरदस्ती नहीं की. दूसरा मर्द होता तो एक मिनट में ऐसी निर्लज्ज पत्नी को ठीक कर देता. सोच कर मंजरी का मन तिक्त हो गया.

‘‘तुम ने तलाक की अर्जी दी?’’ मंजरी ने पूछा.

‘‘हां, पर क्या तलाक होना इतना आसान होता हेै?काफी रुपयों की डिमांड करती है, जो मेरे लिए संभव नहीं है.’’

‘‘तब क्या करोगे…?’’

‘‘यही सोचसोच कर परेशान रहता हूं. आएदिन फोन कर के मुझे ब्लैकमेल करती है. मैं ठहरा सरकारी मुलाजिम. जरा सी ऊंचनीच हो गई तो कहीं का नहीं रहूंगा.’’

‘‘रहती कहां है?’’

‘‘मेरे ही फ्लैट में. मेरा एक बेटा भी है. घरखर्च भेजता हूं सो अलग.’’

“बंद कर दो. अक्ल ठिकाने लग जाएगी,’’ मंजरी तैश में बोली.

‘‘ऐसे कैसे कर दूं. जब तक तलाक नहीं हो जाता, वह मेरी पत्नी है.’’

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मंजरी सोचने लगी. कैसी औरत है, जो अपना गृहस्थ जीवन ठीक से नहीं रख सकती? उस के दिल में अमित के प्रति सहानुभूति और बढ़ गई. कहीं यह सहानुभूति प्रेम का प्रथम पायदान तो नहीं. कुछकुछ मंजरी को ऐसा ही लगा.

उस रोज अमित के जाने के बाद मंजरी की दिनचर्या में एक बदलाव आया. कल तक जो जिंदगी उस के लिए बोझ थी, आज एकाएक खूबसूरत लगने लगी. उस की ख्वाहिशों के पंख लग गए. वह अमित के साथ जिंदगी गुजारने के ख्वाब देखने लगी. जब भी वह शाम को खाली होती, अमित के साथ मोबाइल पर बैठ जाती. दोनों ही घंटोें बातें करते.

मंजरी का यह हाल था, मानो वह प्रेम का ककहरा सीख रही हो अमित से.

‘‘जब तलाक हो जाएगा, तब हम दोनों शादी कर लेंगे. तलाक जल्द से जल्द हो जाए तो अच्छा है. शालिनी भी तुम को पिता के रूप में देखने लगी है. उस रोज तुम्हारे साथ कितना घुलमिल गई थी. ऐसा लगा मानो सालों का रिश्ता हो?’’ मोबाइल पर यही सब बात होती रहती.

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