‘‘अरेअमृता, सभी लड़कियां दीवाली मनाने अपनेअपने घर चली गईं, तुम क्यों नहीं गईं? दीवाली की तो तुम्हारे औफिस में भी छुट्टी होती होगी?’’ पेइंगगैस्ट हाउस की मालकिन मालती सभी लड़कियों के घर जाने के बाद अमृता के कमरे में बत्ती जली देख कर उस के कमरे में जा कर चौंक कर बोलीं.

‘‘नहीं आंटी, बस ऐसे ही मन नहीं हुआ जाने का... कोई खास बात नहीं... मैस बंद हो गया है तो भी कोई बात नहीं, मैं बाहर खाना खा लूंगी. 1 हफ्ते के अंदर तो सभी लड़कियां आ ही जाएंगी... आप चिंता मत करिए,’’ अमृता ने बुझे मन से बात टालने के लिए कहा.

मगर अमृता का उदास चेहरा देख कर मालती भांप गईं कि कोई बात जरूर है, जिस ने इसे इतने बड़े त्योहार पर भी घर जाने से रोक लिया.

‘‘बेटा, साथ रहतेरहते हम सभी एक परिवार की तरह हो गए हैं. मैस बंद हो गया तो क्या... मैं अपने लिए तो खाना बनाऊंगी ही न और फिर अब मुझे तुम सब के साथ खाना खाने की आदत भी पड़ गई है. अकेले खाना मुझे अच्छा नहीं लगेगा, इसलिए हम दोनों साथ खाना खाएंगी. मैं तुम्हारी मां की तरह हूं... यदि तुम्हें उचित लगे तो मुझ से तुम कुछ भी मत छिपाओ... शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं. मुझ से तुम्हारा इस तरह उदास रहना नहीं देखा जा रहा,’’ मालती ने उस के पास बैठते हुए उस की पीठ पर हाथ रख कर कहा तो उन का ममता भरा स्पर्श पा कर अमृता की आंखों में रुके आंसू बह निकले.

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