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‘‘बहू, बाथरूम में 2 दिन से तुम्हारे कपड़े पड़े हैं, उन्हें धो कर फैला तो दो,’’ सुनयना ने आंगन में झाड़ू लगाते हुए कहा.

‘‘अच्छा, फैला दूंगी, आप तो मेरे पीछे ही पड़ जाती हैं,’’ बहू ने अपने कमरे से तेज आवाज में उत्तर दिया.

‘‘इस में चिल्लाने की क्या बात है?’’

‘‘चिल्लाने की बात क्यों नहीं है. कपड़े मेरे हैं, फट जाएंगे तो मैं आप से मांगने नहीं आऊंगी. जिस ने मेरा हाथ पकड़ा है वह खरीद कर भी लाएगा. आप के सिर में क्यों दर्द होने लगा?’’

बहू अपने कमरे से बोलती हुई बाहर निकली और तेज कदमों से चलती हुई बाथरूम में घुस गई और अपना सारा गुस्सा उन बेजान कपड़ों पर उतारती हुई बोलती जा रही थी, ‘‘अब इस घर में रहना मुश्किल हो गया है. मेरा थोड़ी देर आराम करना भी किसी को नहीं सुहाता. इस घर के लोग चाहते हैं कि मैं नौकरानी बन कर सारे मकान की सफाई करूं, सब की सेवा करूं जैसे मेरा शरीर हाड़मांस का नहीं पत्थर का है.’’

अपने इकलौते बेटे अखिलेश के लिए सुनयना ने बहुत सी लड़कियों को देखने के बाद रितु का चुनाव किया था. दूध की तरह गोरी और बी.काम. तक पढ़ी सर्वांग सुंदरी रितु को देखते ही सुनयना उस पर मोहित सी हो गई थीं और घर आते ही घोषणा कर दी थी कि मेरी बहू बनेगी तो रितु ही अन्यथा अखिलेश भले ही कुंआरा रह जाए.

इस तरह सुनयना ने 2 साल पहले अपने बेटे का विवाह रितु से कर दिया था.

रितु अपने पूरे परिवार की लाड़ली थी, विशेषकर अपनी मां की. इसलिए वह थोड़ी जिद्दी, अहंकारी और स्वार्थी थी. उस के घर मेें उस की मां का ही शासन था.

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