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दीवाली का त्योहार आया तो हर घर में धूमधाम से तैयारी शुरू हो गई, घरों में दीप जलाए जा रहे थे, पर सुनयना और रामअवतार दोनों उदास बैठे अतीत की यादों में खोए रहे. उन में त्योहार को ले कर न कोई उत्साह था न कोई उमंग. शाम को सुनयना केवल एक दीपक जला कर आंगन में रख आईं.

दीवाली के 2 दिन बाद रामअवतार को आफिस भेज कर सुनयना बच्चों को पढ़ाने चली गईं और जब वे शाम को लौट रही थीं तो रास्ते में उन की मुलाकात एक अनजान औरत से हो गई, जो उन्हें जानती थी पर सुनयना उसे नहीं जानती थीं.

पहले तो उस स्त्री ने सुनयना को नमस्ते की, फिर बताया कि रितु व अखिलेश उस के मकान के पास ही रहते हैं. आज रितु की तबीयत ज्यादा खराब थी और उसे उस के मकानमालिक आटोरिकशा से अस्तपाल ले गए हैं, क्योंकि अखिलेश यहां है नहीं और रितु की डिलीवरी होने वाली है.

सुनयना ने जब उस औरत से यह पूछा कि रितु के मकानमालिक उसे ले कर किस अस्पताल गए हैं, तो उस ने वर्मा नर्सिंग होम का नाम बता दिया.

सुनयना जल्दी से घर आईं और एक थैले में कुछ आवश्यक सामान रखा. अलमारी में जो पैसा रखा था उसे लिया और घर को ताला लगा कर आटो से वर्मा नर्सिंग होम चली गईं. वहां जा कर जब रितु के बारे में पता किया तो पता चला कि बच्चा नार्मल नहीं हो सकता इसलिए डाक्टर रितु को आपरेशन थिएटर में ले गए हैं. तभी एक नर्स ने आ कर आवाज लगाई कि रितु के साथ कौन है? डाक्टर एक फार्म पर साइन करने और आपरेशन फीस जमा कराने के लिए बुला रहे हैं.

सुनयना नर्स से जब रितु के बारे में पूछ रही थी तब वहीं पर रितु के मकान मालिक भी खड़े थे. वे समझ गए कि यह स्त्री शायद अखिलेश की मां हैं तभी इतनी बेचैनी से पूछ रही हैं. उन्होंने हाथ जोड़ कर सुनयना को नमस्ते किया और फिर सारी बातें उन्हें बता दीं. सुनयना ने भी उन्हें बता दिया कि रितु उन की बहू है.

सुनयना उस नर्स के साथ डाक्टर के कक्ष में चली गईं और डा. विमला भाटिया को नमस्ते कर उन्हें अपना परिचय दिया कि रितु उन की बहू है और वे आपरेशन की फीस जमा कराने आई हैं. पहले तो डाक्टर ने उन से एक फार्म पर हस्ताक्षर करवाए और फिर आपरेशन के लिए 25 हजार रुपए जमा कराने को कहा.

‘‘डाक्टर साहब, अभी तो आप 10 हजार रुपए जमा कर लें. बाकी पैसा मैं अपने पति से फोन कर के मंगवा लेती हूं, जब तक आप उस का आपरेशन करें. मुझे किसी भी हालत में जच्चा व बच्चा स्वस्थ चाहिए.’’

‘‘ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है. सब ठीक होगा. हां, आप यह पैसा काउंटर पर जा कर जमा करा दें और रसीद प्राप्त कर लें. वहीं से आप अपने पति को फोन भी कर दें.’’

डाक्टर के पास से आ कर सुनयना ने काउंटर पर जा कर पैसा जमा कर दिया और रसीद ले कर वहीं से रामअवतारजी को फोन कर के सारी बातें बता दीं. साथ ही यह भी कह दिया कि जल्दी से 15 हजार रुपए ले कर वर्मा नर्सिंग होम में आ जाएं.

करीब डेढ़ घंटे बाद रामअवतारजी वहां पर पैसा ले कर पहुंच गए लेकिन रितु के मम्मीपापा अभी तक नहीं आए थे. वे आपरेशन रूम के पास एक बैंच पर सुनयना के साथ बैठ कर इंतजार करने लगे. थोड़ी देर बाद एक नर्स सुनयना के पास आ कर पूछने लगी कि रितु के साथ कौन आया है.

सुनयना ने कहा, ‘‘मैं हूं.’’

‘‘बधाई हो, लड़की हुई है,’’ नर्स ने कहा, ‘‘बच्ची और उस की मां दोनों स्वस्थ हैं,’’ फिर थोड़ी देर बाद एक नर्स ने लड़की को ला कर सुनयना को दिखाया जिसे बड़े प्यार से उन्होंने पहले तो देखा फिर उस का माथा चूम अपने पति से कुछ इशारा किया. रामअवतारजी ने 500 रुपए का नोट निकाल कर नर्स को देते हुए कहा कि यह मेरी तरफ से आप सब लोगों को मिठाई खाने के लिए है.

थोड़ी देर बाद रितु को एक स्ट्रैचर पर लिटा कर वार्ड में लाया गया. उस समय वह बेहोश थी. वार्ड में एक बिस्तर पर लिटा कर उस के पास के पालने में बच्ची को भी लिटा दिया गया. सुनयना वहीं एक बैंच पर बैठ कर कभी बच्चे को तो कभी रितु को देखती रहीं और पति को घर भेज दिया.

करीब साढ़े 4 घंटे बाद रितु को होश आया. उस ने आंखें खोलीं तो देखा उस की सास सुनयना उस के पास बैठी हैं और उस की गोद में एक बच्चा है.

‘‘लक्ष्मी आई है, ठीक तुम्हारी तरह. तुम भी शायद जब पैदा हुई होगी तो ऐसी ही होगी,’’ सुनयना ने मुसकराते हुए कहा और रितु के माथे पर हाथ फेरने लगीं. रितु को बड़ा अच्छा लग रहा था. तभी उस के मकानमालिक भी वहां आ गए और बोले, ‘‘रितु, जब तुझे ले कर यहां आ रहा था तब मेरी पत्नी की तुम्हारी मम्मी से बातें हुई थीं और उन्होंने कहा था कि वे जल्द ही अस्पताल पहुंच रही हैं, पर अभी तक न खुद आईं और न तुम्हारे पापा आए हैं.’’

शाम हो गई थी, अभी तक सुनयना ने कुछ नहीं खाया था, बल्कि चाय तक भी नहीं पी थी. रात भर वह बैड के पास स्टूल पर बैठी कभी रितु का सिर दबातीं तो कभी बच्ची के रोने पर उसे उठा कर घुमातीं. इस तरह जिम्मेदारी को ढोते उन की रात आंखोंआंखों में कट गई.

सुबह रामअवतार थर्मस में चाय ले कर आए और दोनों को कपों में डाल कर चाय दी, फिर पत्नी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘तुम अब घर जाओ. मैं यहां बैठता हूं. कल से तुम ने खाना भी नहीं खाया है. तुम्हारा खाना किचन में कल से ज्यों का त्यों बना हुआ रखा है. घर जाओ और रितु के लिए खिचड़ी बना कर लेती आना. तब तक मैं यहां पर बैठता हूं. आज मैं ने आफिस से छुट्टी ले रखी है.’’

सुनयना दोनों को बहुत सी हिदायतें दे कर चली गईं. रामअवतार वहीं बैंच पर बैठ गए. करीब 1 घंटे बाद कुछ सोच कर रितु से उन्होंने कहा, ‘‘बेटा, मैं जरा बाहर बैठता हूं, कोई चीज चाहिए तो नर्स से कहलवा देना,’’ और वार्ड से बाहर निकल गए.

रितु के बगल वाले बैड पर भी एक स्त्री को आपरेशन से बच्चा हुआ था. उस की देखभाल के लिए उस की मां वहीं पर बैठी हुई थीं. जब रामअवतार वार्ड से बाहर चले गए तब वह औरत अपनी जगह से उठ कर रितु के बैड के पास आ गई और पूछने लगी, ‘‘तुम्हारे मम्मीपापा अच्छे स्वभाव के मालूम पड़ते हैं. खासकर तुम्हारी मम्मी तो बहुत ही अच्छी हैं. बेचारी रातभर तुम्हारी सेवा करती रही हैं.’’

‘‘ये दोनों मेरे मम्मीपापा नहीं, सासससुर हैं.’’

‘‘क्या?’’ वह औरत आश्चर्य से रितु का मुंह देखने लगी. फिर उस ने कहा, ‘‘क्या दुनिया में ऐसी भी सास होती है, जो कल से बिना खाएपिए अपनी बहू की सेवा कर रही है. बेटी, तुम बहुत खुशनसीब हो जो तुम्हें ऐसे सासससुर मिले हैं. पूरा वार्ड अब तक यही समझ रहा था कि ये तुम्हारे मम्मीपापा हैं. कोई सास अपनी बहू के लिए इतना कर सकती है यह मैं ने पहली बार देखा है. अगर हर सास तुम्हारी सास जैसी हो जाए तो कोई बहू जल कर नहीं मरेगी, कोई बहू गले में फंदा लगा कर नहीं मरेगी. कोई बहू जहर खा कर या गाड़ी के नीचे आ कर अपनी जान नहीं देगी.

‘‘मैं तो तुम्हें यही कहूंगी कि कभी अपनी सास को तकलीफ मत देना, कभी उन से कठोर बातें मत बोलना और बेटी, सच्चे मन से उन की बुढ़ापे में सेवा करोगी तो इस बुढि़या की आत्मा तुम्हें आशीर्वाद ही देगी.’’

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