सपनाने जब घर के अंदर कदम रखा तब शाम के 6 बज चुके थे. अपनी सास की भृकुटियां तनी देख कर वह भी उन से उलझने को मन ही मन फौरन तैयार हो गई.
‘‘तुम्हारा स्कूल को 2 बजे बंद हो जाता है. देर कैसे हो गई बहू?’’ उस की सास शीला ने माथे में बल डाल कर सवाल पूछ ही लिया.
‘‘मम्मी, मैं भाभी का हाल पूछने चली गई थी,’’ सपना ने भी रूखे से लहजे में जवाब दिया.
‘‘तुम मायके गई थी?’’
‘‘भाभी से मिलने और कहां जाऊंगी?’’
‘‘तुम्हें फोन कर के हमें बताना चाहिए था या नहीं?’’
‘‘भूल गई, मम्मी.’’
‘‘ये कोई भूलने वाली बात है? लापरवाही तुम्हारी और चिंता करें हम, यह तो ठीक बात नहीं है, बहू.’’
‘‘चिंता तो आप मेरी नहीं करती हैं, पर
मुझ से झगड़ने का कारण आज आप को जरूर मिल गया,’’ सपना ने अचानक ऊंची आवाज
कर ली, ‘‘यहां थकाहारा इंसान घर लौटे तो
पानी के गिलास के बजाय झिड़कियां और ताने दिनरात मिलते हैं. आप मेरे पीछे न पड़ी रहा
करो, मम्मी.’’
‘‘तुम घर के कायदेकानूनों को मान कर चलो, तो मुझे कुछ कहना ही न पड़े,’’ शीला ने भी अपनी आवाज में गुस्से के भाव और बढ़ा लिए. आप घर के कायदेकानूनों के नाम पर मुझे यूं ही तंग करती रहीं, तो यहां से अलग होने के अलावा हमारे सामने और कोई रास्ता नहीं बचेगा, मम्मी,’’ अपनी सास को यह धमकी दे कर सपना पैर पटकती अपने शयनकक्ष की तरफ चली गई.
‘‘अपनी इकलौती संतान को घर से अलग करने का सद्मा और दुख हमारा मन झेल नहीं पाएगा. इस बात का तुम गलत फायदा उठाती हो, बहू...’’ शीला देर तक ड्राइंगरूम में बोलती रही, पर सपना ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं करी.
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