कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

परवेज अपनी कोशिश में लगे रहे आखिर उन्हें दुबई की एक अच्छी कंपनी में शानदार जौब मिल गई. वह साफिया बेगम को लाने उन के मायके गए. साफिया के भाई उन से बड़ी बदतमीजी से पेश आए. उन्होंने परवेज को साफिया से मिलने भी नहीं दिया और घर से निकाल दिया. भाइयों ने कुछ अरसे तो साफिया बेगम को अच्छे से खूब लाड़प्यार से रखा, फिर उन की आंखें बदलने लगीं.

मांबाप के मरते ही हालात और बुरे हो गए. भाभियां उन से जुबान चलाने लगीं. उन्हें मनहूस कह कर पुकारने लगीं. एक दिन घर में भाभियों का साफिया से झगड़ा हुआ. भाई वहां होते हुए भी तटस्थ रहे. बीवियों ने साफिया को तमाचे भी मारे.

इसे साफिया बरदाश्त नहीं कर सकीं. अपना सामान समेटा और बच्चे को ले कर कराची का रुख कर गईं. फिर हमारे मुहल्ले में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगीं. गुजारे के लिए वह सिलाईकढ़ाई करने लगीं. जल्द ही उन का काम अच्छा चलने लगा.

उन्हें अब अपनी गलती पर खूब पछतावा हो रहा था. वह समझ गई थीं कि बिना पति के औरत की कद्र नहीं रहती. उन्हें यह शिकायत थी कि दुबई जाते वक्त परवेज ने उसे नहीं पूछा. उसे यह पता ही नहीं चला कि परवेज उन्हें लेने आया था. पर गलती उन के भाइयों की थी, जिन्होंने परवेज को उन से मिलने तक नहीं दिया बल्कि बदतमीजी कर उसे घर से निकाल दिया.

दुबई आने के बाद वह फिर से साफिया के मायके गए. वहां पता चला कि भाइयों ने उसे निकाल दिया. तब उन्होंने साफिया को तमाम जगहों पर खोजा. इतना ही नहीं उन्होंने अखबार तक में इश्तहार निकलवाया पर साफिया का कहीं पता नहीं लगा.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...