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पापा और रीता आंटी अकसर अंगरेजी में बातें करते रहते हैं. रोहित जब भी उन की बातें ध्यान से सुनता है, तो उसे बहुत कुछ समझ में आ जाता है…

‘‘मां तुम कहां चली गई थीं मुझे बिना बताए,’’ रोहित अपनी मां से बोला.

आज बहुत दिनों बाद रोहित अपनी मां के पास है. वह सोच रहा है कि उसे कितनी सारी बातें कहनी हैं, पूछनी हैं और बतानी हैं…

अमित कुछ बोले नहीं. बस चुपचाप अपने कमरे में आ कर बैठ गए और सोचने लगे कि इतने दिनों तक वे पत्नी को कितना अपमानित करते रहे हैं…

रोजकी तरह स्कूल से घर लौट कर रोहित औटो पर बैठेबैठे ही जोर से चिल्लाया, ‘‘मां, मां, शेखूभाई को पैसे दो,’’ फिर पलट कर औटो वाले से बोला, ‘‘तुम रुकना भैया, मैं अभी पैसे ले कर आता हूं.’’

‘‘कल ले लूंगा भैयाजी, आज देर हो रही है, अभी चलता हूं,’’ कह कर औटो वाला चल दिया.

‘मम्मी सुन क्यों नहीं रहीं?’ रोहित ने अपनेआप से ही प्रश्न किया. फिर एक जूता इधर उछाला, दूसरा उधर और हाथ का बैग मेज पर रख कर वह मां के कमरे की ओर भाग लिया.

घर में मां को हर जगह ढूंढ़ लेने के बाद रोहित एक जगह खड़ा हो कर सोचने लगा कि आखिर मम्मी कहां गईं? तभी पास खड़े रामू ने धीरे से बताया, ‘‘रोहित बाबा, आप की मम्मी तो अचानक बनारस चली गईं.’’

‘‘तो तुम ने पहले क्यों नहीं बताया? मैं कब से उन्हें ढूंढ़ रहा हूं,’’ रोहित गुस्से से बोला.

‘‘बाबा, आप के पापा ने कहा है कि जरूरत पड़े तो रोहित से कहना वह फोन पर मुझ से बात कर लेगा.’’

पापा का नाम आते ही वह चुप हो गया. उस का सारा गुस्सा शांत हो गया और मन ही मन वह सहम गया. घर में उस का मन नहीं लगा तो वह उदास हो कर बाहर बरामदे में आ कर बैठ गया और सोचने लगा, उस की किसी बात से मां कभी नाराज नहीं होतीं, तो आज यों कैसे जा सकती हैं? किस से क्या कहे, क्या पूछे. पापा से तो वैसे ही उसे डर लगता है.

सामने के घर से डाक्टर आंटी ने झांका और उसे देख कर बाहर निकल आईं. उस के सिर पर हाथ रख कर पुचकारते हुए बोलीं, ‘‘रोहित, मम्मी तुम को बिना बताए चली गईं. बड़ी गंदी हैं न. यहां मेरे पास आओ. हम दोनों खेलेंगे. फिर मैं तुम्हारा होमवर्क पूरा करवा दूंगी, उस के बाद तुम सो जाना. चले आओ बेटे, चिंता न करो.’’

रोहित को तो मम्मी पर गुस्सा आ रहा था, अत: नाराज हो कर बोला, ‘‘नहीं आज मैं अपना सब काम अपनेआप कर लूंगा. रामू, अंदर चलो. खाना लगाओ. मुझे खाना खा कर अपना होमवर्क पूरा करना है.’’ अंदर जाने पर रोहित को मां की याद फिर आ गई तो वह अपने आप को रोक नहीं पाया. उसे जोरों से रोना आ गया.

मां उस को कितना प्यार करती हैं. उस की सारी बातें बिना कहे ही समझ जाती हैं. वह भी अपना सारा होमवर्क बिना कहे कर लेता है. बस, वे पास में बैठी भर रहें. उस को तो पूछने तक की भी जरूरत नहीं पड़ती है. स्कूल के सभी अध्यापक उस की कितनी तारीफ करते हैं पर पापा जब भी पढ़ाने बैठेंगे, तो बिना मतलब डांटेंगे.

पापा ने सुबह गोद में ले कर रोहित को नींद से जगाया. उस की लाल आंखों को देख कर वे समझ गए कि जरूर मां की याद में देर तक सोया नहीं होगा. स्कूल जाने के लिए तैयारी करवाते समय उस का बैग देखा. उन का मूड अच्छा देख कर रोहित ने धीरे से पूछा, ‘‘पापा, मुझे बिना बताए मां क्यों चली गईं? ऐसा तो मां ने पहले कभी नहीं किया. उन्होंने मेरी जरा भी चिंता नहीं की.’’

‘‘तुम्हारे नानाजी को अचानक दिल का दौरा पड़ा था,’’ अमित बोले, ‘‘तुम्हारे मामाजी का फोन आ गया तो तुम्हारी मम्मी को अचानक बनारस जाना पड़ा.’’

‘‘तो मम्मी मुझे स्कूल में बता कर चली जातीं.’’

‘‘बेटा, तुम्हें बताने मम्मी स्कूल जातीं तो उन की गाड़ी छूट जाती, इसलिए वे बिना तुम्हें बताए चली गईं. और फिर मैं हूं न, तुम को चिंता करने की जरूरत नहीं है. चलो, तैयार हो कर स्कूल जाओ. शाम को दफ्तर से आ कर तुम्हारा सारा होमवर्क पूरा करा दूंगा. अब यह बातबात पर रोना छोड़ दो. देखो, आप कितने बड़े हो गए हो.’’

बच्चे को समझातेसमझाते अमित का ध्यान पत्नी शोभा की तरफ गया तो उन का मन खराब हो गया कि उन्हें तो ऐसी बीवी मिली है, जो अपने घरपरिवार और बच्चे की दुनिया से बाहर ही नहीं निकलती. उन्हें तो अपने मातापिता पर भी गुस्सा आता कि किस गंवार को उन्होंने मेरे गले मढ़ दिया है. उन का बस चलता तो वे अपनी पसंद की अच्छी, हाई सोसाइटी में उठनेबैठने वाली, अंगरेजी में बात करने वाली बीवी लाते. अब इस गंवार को कहां ले कर जाएं, न तो उसे बोलने का सलीका आता है न ही बच्चे को कुछ सिखा पा रही है, सिवा लाड़प्यार से बिगाड़ने के. अच्छा है, कुछ दिनों तक रोहित से दूर रहेगी तो डा. रीता उन के बेटे को कुछ ढंग की बात सिखा देंगी.

डा. रीता का ध्यान आते ही अमित को कितना सुकून मिला था. वे कितनी आसानी से उन के दिल की सारी बातें समझ लेती हैं. उन के साथ बैठने के बाद आपसी गपशप व घरबाहर की समस्याओं पर चर्चा करने में इतनी जल्दी समय बीत जाता है कि पता ही नहीं चलता. अपनी पत्नी को कैसे समझाएं और फिर उस में डा. रीता जैसी बुद्धि कहां है, जो उसे कोई तरीका भी आए.

जाने क्यों मां की बात चलते ही पापा का गुस्सा हमेशा बढ़ जाता है. मन ही मन यह सोचते हुए रोहित तैयार हो कर बोला, ‘‘पापा, मैं अपनेआप अपनी पढ़ाई कर लूंगा.’’

‘‘वैरीगुड. देखो बेटा, मेरे औफिस से वापस आने तक तुम बिलकुल नहीं रोना. रामू का कहना मानना और स्कूल से लौट कर उसे जरा भी परेशान नहीं करना. मां को जब आना होगा आ ही जाएंगी. ओ.के.?’’

रोहित ने हां में सिर हिला दिया पर मन ही मन सोचने लगा कि दोनों मेरी देखभाल की बात करते हैं पर इन को यह भी पता नहीं कि मुझे गरम नहीं, बल्कि ठंडा दूध पसंद है और मैं ब्रैड बिना सिंकी खाता हूं.

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