‘‘सुनोआज शाम को जल्दी आ जाना?’’ श्यामली स्वर में मिठास घोल कर औफिस के लिए तैयार होते मानव से बोली.
‘‘क्यों रोज ही तो समय से आता हूं. आज क्या खास बात है?’’
‘‘अरे भूल गए क्या? 1 महीने से बता रही हूं और कल भी याद दिलाया था. आज करवाचौथ है, मेरा व्रत है. शाम को बाहर खाना खाने चलेंगे. यह देखो मेरी मेहंदी भी कितनी खिली है. सब कह रही थीं कि सब से ज्यादा मेहंदी श्यामली की खिली है… इस का पति इसे सब से ज्यादा प्यार करता है. पता है पूजा और नीरा के पति भी उपवास रख रहे हैं. पत्नियों की लंबी उम्र के लिए,’’
मानव झुंझला कर बोला, ‘‘उफ, तुम्हारे इन बकवास उपवासों से किसी की उम्र बढ़ती है क्या? कभी तीजव्रत, कभी वट सावित्री व्रत, कभी करवाचौथ व्रत, जन्माष्टमी, शिवरात्री, नवरात्रे, सावन के सोमवार और भी न जाने क्याक्या… तुम ने पढ़लिख कर भी अपनी आधी जिंदगी भूखे रह कर गुजार दी और मुझ से भी यही उम्मीद करती हो. मुझे नौकरी नहीं करनी है क्या? नाश्ता लगाओ. मुझे देर हो रही है.’’
मानव की झिड़की खा कर श्यामली टूटा दिल लिए नाश्ता लगाने चली गई. नाश्ता कर के मानव औफिस के लिए निकल गया पर श्यामली का मन खिन्न हो गया. आज वह अपने कुछ दोस्तों को घर बुलाने की सोच रहा था पर जब श्यामली ने करवाचौथ की याद दिलाई तो वह मन ही मन चिढ़ गया.
उच्चशिक्षित होने के बावजूद पता नहीं श्यामली इतने रीतिरिवाजों, व्रतउपवासों, पूजापाठ में क्यों डूबी रहती है… वह इन बातों से जितना दूर भागता है श्यामली उतनी ही इन में उलझी रहती है. उस की बातें भी हर समय वैसी ही होती हैं. 10 साल होने वाले हैं उन के विवाह को पर श्यामली के पूरा साल व्रतत्योहार चलते रहते हैं. मानव सोचता, खूब फुरसत है श्यामली को. अगर कहीं नौकरी कर रही होती तो क्या इतनी फुरसत मिल जाती. बच्चों को पढ़ाने के लिए फुरसत मिले न मिले, लेकिन इन सब बातों के लिए उसे खूब फुरसत रहती है.
इसी उधेड़बुन में मानव औफिस पहुंच गया. उस के औफिस में कुछ ही महीने पहले आई उस की सहकर्मी शुभांगी उसे लिफ्ट में ही मिल गईर्. उसे देख कर न जाने क्यों उस का दिल हमेशा बल्लियों उछल जाता. 2 बच्चों की मां शुभांगी आधुनिक खयालों वाली स्मार्ट महिला थी, जो उस के खुद के विचारों के साथ पूरी तरह मेल खाती थी. मगर आज उसे सोलहशृंगार में देख कर वह दुविधा में पड़ गया.
‘‘क्या बात है, आज क्या तुम्हारी शादी की सालगिरह है?’’ मानव ने पूछा.
‘‘नहीं भई, आज तो करवाचौथ है,’’ शिवानी मुसकराते हुए बोली, ‘‘क्यों तुम्हारी पत्नी ने नहीं रखा व्रत?’’
‘‘रखा है पर क्या तुम भी…’’
‘‘अरे भई मैं भी क्या… मेरे घर में सब इतना मानने वाले हैं कि पूछो मत… फिर पति मेरे प्रेम को ही इन्हीं सब बातों से आंकते हैं. इसीलिए मैं भी रख लेती. बेकार का झंझट खड़ा करने का क्या फायदा. मैं भी सजधज लेती हूं. शाम को कोई अच्छा सा गिफ्ट भी मिल जाता है. बुरा क्या है… वह मुसकराई.’’
जवाब में मानव भी मुसकरा दिया. अपने गिफ्ट देने की बात भी याद आ गई. कब खरीदेगा गिफ्ट… लिफाफा ही दे देगा… उफ, ये बीवियां… तभी लिफ्ट का दरवाजा खुल गया और दोनों बाहर निकल गए.
औफिस में दूसरी भी कई महिलाएं कुछ कम या ज्यादा सजधज कर आईं थीं. पति तो आज बलि के बकरे थे. कुछ खुशी से हलाल होने वाले थे, कुछ मजबूरी में… सोच कर मानव मुसकराया और फिर सोच ही सोच में अपनी पौकेट को तोला. एक सूट या साड़ी के पैसे तो निकालने ही पड़ेंगे वरना पड़ोसिनों के सामने श्यामली के पतिप्रेम की व्याख्या फीकी पड़ जाएगी.
लंच पर शुभांगी सामने बैठी थी, ‘‘मुझे तो आज पानी भी नहीं पीना है… शाम तक तो निढाल हो जाऊंगी,’’ मानव को खाते देख उस के पेट में चूहे कूद रहे थे.
‘‘तो चायबिस्कुट खा लो. यह कोई खाना थोड़े ही है,’’ मानव हंसता हुआ बोला, ‘‘वैसे भी मैं तुम्हारे पति को बताने वाला नहीं हूं.’’
शुभांगी ठहाका मार कर हंस पड़ी, ‘‘मेरे पति की उम्र कम हो जाएगी…
और मेरी सास को पता चल गया तो साथ में बिना बात मेरी भी… तुम्हारी पत्नी पीछे से कुछ खा ले तो तुम्हारी भी खैर नहीं.’’
‘‘वहां से कोई खतरा नहीं… जबरदस्ती भी खिला दूं तो उलटी कर देगी… इस जन्म छोड़ने वाली नहीं है मुझे…’’ मानव ने भी ठहाका लगाया.
‘‘और तुम उसे इसी जन्म में नहीं झेल पा रहे हो.’’
‘‘तुम झेल पा रही हो क्या अपने दकियानूसी पति को?’’
‘‘हूं…’’ शुभांगी धीमे से मुसकराई, ‘‘बहुत मुश्किल है. कोईर् भी तीजत्योहार, व्रत, उपवास नहीं छोड़ सकती मैं… मांबेटा जीना दूभर कर देंगे. कैसे समझाऊं कि ये सब ढकोसले हैं.’’
मानव उस दिन घर पहुंचा. रास्ते से एक लिफाफा खरीद कर, मन मार कर उस में रुपए रखे. बेमौसम बजट बिगड़ रहा था. अभी तो डिनर पर भी जाना है पर श्यामली के दिनभर भूखे रहने का मेहनताना तो देना ही था. आज तो घंटी बजाने की भी जरूरत नहीं पड़ी. श्यामली इंतजार में पलकपांवड़े बिछाए दरवाजे पर खड़ी थी.
‘‘कितनी देर कर दी… मैं कब से इंतजार कर रही थी.’’
मानव ने घड़ी देखी, ‘‘देर कहां, रोज वाले टाइम से ही तो आया हूं,’’ कह वह अंदर चला गया.
श्यामली पीछेपीछे आ गई. ‘‘मैं कैसी लग रही हूं?’’
उस ने ध्यान से श्यामली की तरफ देखा. शादी वाली लाल साड़ी, गहने, पूरा मेकअप, हाथों में मेहंदी… लेकिन चेहरे पर भूख व थकान के मारे मुरदनी छाई थी.
‘‘हां, ठीक लग रही हो,’’ वह लापरवाही से बोला.
‘‘बस ठीक लग रही हूं? ब्यूटीपार्लर से मेकअप करवा कर आई हूं… मेहंदी लगवाने में भी इतना खर्च किया… सब कुछ तुम्हारे लिए ही तो… और तुम हो कि…’’ वह रोंआसी हो गई. यह भी एक एहसान था मानव पर.
खर्च की बात सुन कर उस के कान खड़े हो गए. यह खर्चा भी बाकी खर्चे में जोड़ लिया.
‘‘तो किस ने कहा था ये सब करने को… मुझे तो तुम वैसे ही अच्छी लगती हो.’’
यह सुनते ही श्यामली का मूड ठीक हो गया. ‘‘सच?’’ वह पास आ गई.
‘‘हां, पर मुझे भूख लग रही है. चाय बना दो और कुछ खाने को भी दे दो,’’ वह थोड़ा पीछे हटते हुए बोला.
‘‘भूख तो मुझे भी लग रही है. पर यह चांद… अभी तक नही निकला,’’ श्यामली बड़बड़ाई.
‘‘हां, यह तो गलती है चांद की… कम से कम आज के दिन तो जल्दी निकलना चाहिए था…पता नहीं उसे कि पृथ्वी पर महिलाएं आज के दिन ही तो उस की बाट सब से अधिक जोहती है,’’ मानव ने गंभीरता से उस की बात का समर्थन किया.