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श्यामली फिर उखड़ गई. वह किचन में चाय बनाने चली गई. मानव को अफसोस हुआ कि वह चुप नहीं रह पाता है. श्यामली के इन विश्वासों पर व्यंग्य किए बिना जैसे उस का खाना ही नहीं पचता. उस का मूठ ठीक करने के लिए उस ने जेब से लिफाफा निकाला और उसे देने चला गया.

काफी इंतजार के बाद चांद निकला और श्यामली ने छलनी से चांद व अपने

पिया को निहारा, पैर छुए. मानव ने पानी पिला कर उस का व्रत खुलवाया. बच्चे वीडियो बनाने में मस्त थे. मानव को लग रहा था वह किसी शौर्ट फिल्म में ऐक्टिंग कर रहा है.

उधर शुभांगी जब घर पहुंची तो उस का पति वरुण उस से पहले ही घर पहुंच गया था, ‘‘बहुत देर कर दी तुम ने आज?’’

‘‘देर कहां? रोज वाले टाइम से ही तो आई हूं,’’ थकी, भूखी शुभांगी बोली.

‘‘मैं ने सोचा था. आज करवाचौथ है, तुम जल्दी आओगी,’’ वरुण ऐसे बोला जैसे जल्दी न आ कर उस ने करवाचौथ व पति दोनों का अपमान किया है.

‘‘हां, पर करवाचौथ पर हाफ डे नहीं होता है न औफिस में… मेरी समझ से सरकारी व गैरसरकारी सभी संस्थानों में करवाचौथ के दिन पूरी छुट्टी हो जानी चाहिए… आखिर देश के पुरुषों की सलामती की बात है…’’ शुभांगी थकी हुई थी और भूखी भी, इसलिए चिढ़ कर बोली, ‘‘अब हम महिलाएं आज के दिन अपने लिए तो कुछ करती नहीं हैं… बल्कि मैं तो कहती हूं हरतालिका तीज, वट सावित्री व्रत, नवरात्रे वगैरह जितने भी व्रतउपवास, पूजा वगैरह महिलाएं अपने बच्चों, पति, घरपरिवार की सलामती के लिए करती हैं… इन दिन राष्ट्रीय छुट्टी घोषित हो जानी चाहिए. आखिर परिवार सलामत रहेंगे… परिवार में बच्चे, पुरुष सलामत रहेंगे. तभी तो देश सलामत रहेगा. तो एक तरह से यह सिर्फ महिलाओं की नहीं, देश की समस्या है. सरकार को इस समस्या के विषय में विचार करना चाहिए,’’ चिढ़ी हुई शुभांगी गंभीरता से बोल कर बैडरूम में चली गई.

वरुण वहीं बैठा रह गया. शुभांगी की सास अपनी कुसंस्कारी बहू को घृणा से देख रही थी, जिसे अपने सुहाग की लंबी उम्र की जरा भी चिंता नहीं थी.

बैडरूम में जा कर शुभांगी थोड़ी देर खिन्न हो कर बैठी रही, फिर किसी तरह मूड ठीक किया. फ्रैश हुई. ‘अब जब सुबह से भूखी रह ही गई है तो शेष औपचारिकताएं भी निभा ही ले,’ सोच कपड़े बदल कर वह बाहर आ गई. उसे देख सास ने मुंह बिचका लिया, एक दिन भी ठीक से तैयार नहीं हो सकती?’’

‘‘कुछ अच्छा सा पहन लेती,’’ वरुण उस का मूड ठीक देख कर बोला.

‘‘ठीक मतलब? अच्छा ही तो पहना है वरुण. अभी औफिस से थक कर आई हूं. सुबह भी तुम्हारी जिद्द से कार्टून बन कर गई थी… मुझे नहीं पसंद यह चमकदमक… क्या यही पहन कर बताना पड़ेगा कि मैं तुम से प्यार करती हूं.’’ शुभांगी का मूड फिर उखड़ने लगा.

तभी बच्चे भागते आ गए, ‘‘मम्मी, चांद निकल गया… चांद निकल गया…’’

शुभांगी ने अपनी थाली उठाई और सब छत पर चले गए. वरुण अपनी आरती उतरवाते ऐसे खुश हो रहा था जैसे बस आज ही भांवरें पड़ने वाली हों.

मानव की पत्नी श्यामली व शुभांगी का पति वरुण दोनों परले दर्जे के दकियानूसी, रीतिरिवाजों के प्रति कट्टर, व्रतउपवास, कर्मकांड को मानने वाले और मानव व शुभांगी ठीक उस के विपरीत. मानव जितना श्यामली को बदलने की कोशिश करता, श्यामली उसे उतना ही संस्कृति व परंपरा का पाठ पढ़ाती. उधर शुभांगी यदि वरुण को कुछ समझाने की कोशिश करती तो दोनों मांबेटा अपनी इस कुसंस्कारी बहू व बीवी के लिए अपने को कोसते.

फलस्वरूप शुभांगी व मानव को अपनेअपने घर में न चाहते हुए भी सुखशांति व मानमर्यादा के लिए कई बातों में अपनेअपने जीवनसाथियों का साथ देना पड़ता. वे दोनों जो कुछ अपने घर में बेमन से करते, औफिस में एकदूसरे को बहुत मन से बताते और बता कर अपने मन की भड़ास निकालते. वे एकदूसरे के करीब आते जा रहे हैं, यह समझते हुए भी वे समझना नहीं चाह रहे थे.

समान विचारधारा और एकदूसरे से अपने दिल की बात करने की स्वतंत्रता होने का भरोसा उन्हें एकदूसरे के मन में गहरे बैठा रहा था. अब दोनों का काफी समय साथ बीतने लगा था. दोनों ने अपनेअपने घर में शिकायतें करना लगभग बंद कर दिया. उन की मानसिक, भावनात्मक, वैचारिक जरूरतें पूरी हो रही थीं. उधर दोनों के साथी समझ रहे थे कि उन्होंने दोनों को सुधार दिया.

श्यामली मानव में आए परिवर्तन को लक्ष्य ही नहीं कर पा रही थी. मानव अब उस की बात मान कर आराम से जान छुड़ा लेता. वह पारंपरिक भारतीय स्त्री की तरह अपनी मान्यताओं व विश्वासों में उलझी सालभर में आने वाले अपने तमाम रिचुअल्स में डूबी रहती और मानव के लिए यह और भी अच्छा हो गया था कि श्यामली अपनेआप में मस्त रहे और उस से अधिक पूछताछ न करे. उसे भी वह जो कुछ करने को कहती, वह चुपचाप कर देता था.

यही हाल कमोवश वरुण का भी था. उस ने भी यह सोचने की जहमत नहीं उठाई कि हर व्रतउपवास, पूजापाठ पर उखड़ने वाली शुभांगी इतनी सरलता से हर बात कैसे मानने लगी है. इसे वह अपनी जीत समझने में लगा था. शुभांगी उस के मन का कर के, उसे उस की खुशियों के साथ छोड़ कर अपनी खुशी के साथ मस्त थी.

शुभांगी और मानव का अब यह हाल हो गया था कि वे अब एकदूसरे के बिना रह ही नहीं पा रहे थे. औफिस के बाद भी अकसर दोनों मिलना चाहते. इस के लिए दोनों ने अच्छा हल यह निकाला कि दोनों परिवारों की मित्रता करा दी जाए और इस तरह एकदूसरे के घर में उन का आनाजाना शुरू हो गया. श्यामली और वरुण जहां हमेशा अपनी सात्विक चर्चा में लीन रहते, मानव व शुभांगी की नजरें उन से बच कर अपने जादुई संसार की संरचना को अलग ही आकार देती रहतीं.

मगर शुभांगी व मानव के बीच क्या पक रहा है और कितना पक गया है, इस से वे दोनों अनजान थे. उन के अब लगभग सभी तीजत्योहार, व्रतउपवास, साथ ही मनने लगे थे. एकदूसरे का साथ मिल जाने के कारण शुभांगी व मानव को भी अब ऐसे अवसरों का बेसब्री से इंतजार रहता. कहा जाता है कि इश्क व जंग में सब जायज है पर जब पानी सिर से गुजरने लगता है तो कहा यह भी जाता है कि ‘इश्क व मुश्क छिपाए नहीं छिपता.’

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