पहले श्यामली का माथा ठनका. आखिर स्त्री की छठी इंद्री ऐसी शक्ति है जो उस पर पड़ी परपुरुष की निगाह की भाषा भी पढ़ लेती है और अपने पति की परस्त्री की तरफ पड़ी निगाहों की भाषा भी. शुभांगी व मानव का नैनमटक्का उस की निगाह में धीरेधीरे खटकने लगा पर बोलने के लिए कुछ था ही नहीं. उधर वरुण तो बीवी को अपने व परिवार की लंबी उम्र व सलामती के लिए व्रतउपवासों व ऐसे ही मौकों पर दोनों परिवारों के सामूहिक पर्व मनाने का इंतजार करते देख फूला न समाता और सोचता कि शुभांगी अब उसे कितना प्यार करने लगी है. उस की हर बात मानती है. सास भी अब कुछ खुश रहने लगी थी.
सालभर बीततेबीतते करवाचौथ फिर आ गई. श्यामली और वरुण इस बार बहुत खुश थे, क्योंकि इस बार तो शुभांगी व मानव भी करवाचौथ पूरे मन से मनाएंगे. इसलिए दोनों परिवारों का शाम को सामूहिक आयोजन होना तय हुआ था. उन दोनों की बातों में महीनाभर पहले से ही इस की झलक मिलने लगी थी. इसलिए दोनों का घमासान शुरू हो गया था.
मगर शुभांगी व मानव मन ही मन चिड़चिड़ा रहे थे. करवाचौथ वाले दिन महिलाएं भले ही आपस में मिल कर अपनी पूजा निबटा लें पर उन्हें रहना तो अपनेअपने साथी के साथ ही पड़ेगा. उन की बेचैनी व दिल्लगी अब सीमा पार करने लगी थी. एकदूसरे के बिना अब जिंदगी बेनूर लग रही थी.
आखिर दिल के हाथों मजबूर हो कर दोनों ने अब अपना रिश्ता जगजाहिर करने की ठान ली. समाज व परिवार को ठोकर मारते हुए दोनों ने करवाचौथ वाले दिन औफिस से ही भागने की योजना बना ली. सामूहिक करवाचौथ का आयोजन शुभांगी के घर पर होना तय हुआ था.
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