बिखरे पड़े घर को समेट, बच्चों को स्कूल भेज कर भागभाग कर स्वाति को घर की सफाई करनी होती है, फिर खाना बनाना होता है. चंदर को काम पर जो जाना होता है. स्वाति को फिर अपने डे केयर सैंटर को भी तो खोलना होता है. साफसफाई करानी होती है. साढ़े 8 बजे से बच्चे आने शुरू हो जाते हैं.

घर से कुछ दूरी पर ही स्वाति का डे केयर सैंटर है, जहां जौब पर जाने वाले मातापिता अपने छोटे बच्चों को छोड़ जाते हैं.

इतना सब होने पर भी स्वाति को आजकल तनाव नहीं रहता. खुशखुश, मुसकराते-मुसकराते वह सब काम निबटाती है. उसे सहज, खुश देख चंदर के सीने पर सांप लोटते हैं, पर स्वाति को इस से कोई लेनादेना नहीं है. चंदर और उस की मां के कटु शब्द बाण अब उस का दिल नहीं दुखाते. उन पराए से हो चुके लोगों से उस का बस औपचारिकता का रिश्ता रह गया है, जिसे निभाने की औपचारिकता कर वह उड़ कर वहां पहुंच जाती है, जहां उस का मन बसता है.

‘‘मैम आज आप बहुत सुंदर लग रही हैं,‘‘ नैना ने कहा, तो स्वाति मुसकरा दी. नैना डे केयर की आया थी, जो सैंटर चलाने में उस की मदद करती थी.

‘‘अमोल नहीं आया अभी,‘‘ स्वाति की आंखें उसे ढूंढ़ रही थीं.

याद आया उसे जब एडमिशन के पश्चात पहले दिन अमोल अपने पापा रंजन वर्मा के साथ उस के डे केयर सैंटर आया था.

अपने पापा की उंगली पकड़े एक 4 साल का बच्चा उस के सैंटर आया, जिस का नाम अमोल वर्मा और पिता का नाम रंजन वर्मा था. रंजन ही उस का नाम लिखा कर गए थे. उन के सुदर्शन व्यक्तित्व से स्वाति प्रभावित हुई थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
  • 2000+ फूड रेसिपीज
  • 6000+ कहानियां
  • 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
 
गृहशोभा इवेंट्स में इन्विटेशन

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें

गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
  • 2000+ फूड रेसिपीज
  • 6000+ कहानियां
  • 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
  • 24 प्रिंट मैगजीन
गृहशोभा इवेंट्स में इन्विटेशन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...