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‘‘पि  छले एक हफ्ते से बहुत थक गई हूं,’’ संजना ने कौफी का आर्डर देते हुए रोली से कहा, ‘‘इतना काम…कभीकभी दिल करता है कि नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाऊं.’’

‘‘हां यार, मेरे घर वाले भी शादी करने के लिए जोर डाल रहे हैं,’’ रोली बोली, ‘‘लेकिन नौकरी की व्यस्तता में कुछ सोच नहीं पा रही हूं…नयना का ठीक है. शादी का झंझट ही नहीं पाला, साथ रहो, साथ रहने का मजा लो और शादी के बाद के झंझट से मुक्त रहो.’’

‘‘मुझे तो लिव इन रिलेशन शादी से अधिक भाया है,’’ नयना ने कहा, ‘‘शादी करो, बच्चे पैदा करो, बच्चे पालो और नौकरी को हाशिए पर रख दो. अरे, इतनी मेहनत कर के इंजीनियरिंग की है क्या सिर्फ घर चलाने और बच्चे पालने के लिए?’’

‘‘कैसा चल रहा है तेरा पवन के साथ?’’ रोली ने पूछा.

‘‘बहुत बढि़या, जरूरत पर एक दूसरे का साथ भी है लेकिन बंधन कोई नहीं. मैं तो कहती हूं, तू भी एक अच्छा सा पार्टनर ढूंढ़ ले,’’ नयना बोली.

‘‘कौन कहता है कि शादी बंधन है,’’ संजना कौफी के कप में चम्मच चलाती हुई बोली, ‘‘बस, कामयाब औरत को समय के अनुसार सही साथी तलाश करने की जरूरत है.’’

‘‘हां, जैसे तू ने तलाश किया,’’ नयना खिलखिलाते हुए बोली, ‘‘आई.आई.टी. इंजीनियर और आई.आई.एम. लखनऊ से एम.बी.ए. हो कर एक लेक्चरर से शादी कर ली, इतनी कामयाब बीवी को वह कितने दिन पचा पाएगा.’’

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जवाब में संजना मुसकराने लगी, ‘‘क्यों नहीं पचा पाएगा. जब एक पत्नी अपने से कामयाब पति को पचा सकती है तो एक पति अपने से अधिक कामयाब पत्नी को क्यों नहीं पचा सकता है. आज के समय की यही जरूरत है,’’ कह कर कौफी का प्याला मेज पर रख कर संजना उठ खड़ी हुई. साथ ही रोली और नयना भी खिलखिलाते हुए उठीं और अपनी- अपनी राह चल पड़ीं.

तीनों सहेलियां बहुराष्ट्रीय कंपनियों में बड़ेबड़े ओहदों पर थीं. फुरसत के समय तीनों एकदूसरे से मिलती रहती थीं. तीनों सहेलियों की उम्र 32 पार कर चुकी थी. रोली अभी तक अविवाहित थी. नयना एक युवक पवन के साथ लिव इन रिलेशन व्यतीत कर रही थी और संजना ने एक लेक्चरर से 3 साल पहले विवाह किया था. उस का साल भर का एक बेटा भी था. वैसे तो तीनों सहेलियां अपनीअपनी वर्तमान स्थितियों से संतुष्ट थीं लेकिन सबकुछ है पर कुछ कमी सी है की तर्ज पर हर एक को कुछ न कुछ खटकता रहता था.

रोली जब घर पहुंची तो 9 बज रहे थे. मां खाने की मेज पर बैठी उस का इंतजार कर रही थीं. उसे आया देख कर मां बोलीं, ‘‘बेटी, आज बहुत देर कर दी, आ जा, जल्दी से खाना खा ले.’’

9 बजना बड़े शहरों में कोई बहुत अधिक समय नहीं था, पर किसी ने भी उस का खाने के लिए इंतजार करना ठीक नहीं समझा. भाई अगर देर से आएं तो उन के लिए सारा परिवार ठहरता है. आखिर, वह अपनी सारी तनख्वाह इसी घर में तो खर्च करती है.

मां की तरफ बिना देखे रोली अंदर चली गई. बाथरूम से फ्रेश हो कर निकली तो मां प्लेट में खाना डाल रही थीं. उस ने किसी तरह थोड़ा खाना खाया. इस दौरान मां की बातों का वह हां, ना में जवाब देती रही और फिर अपने कमरे में बत्ती बुझा कर लेट गई. दिन भर के काम से शरीर क्लांत था लेकिन हृदय के अंदर समुद्री तूफान था. लंबेचौड़े पलंग ने जैसे उस का अस्तित्व शून्य बना दिया था.

रिश्ते तो कई आते हैं पर तय हो ही नहीं पाते क्योंकि या तो उसे अपनी वर्तमान नौकरी छोड़नी पड़ती या फिर लड़के का रुतबा उस के बराबर का नहीं होता और दोनों ही स्थितियां रोली को स्वीकार नहीं थीं. इसी कारण शादी टलती जा रही थी. वह हमेशा अनिर्णय की स्थिति में रहती थी. उस के संस्कार उसे नयना जैसा जीवन जीने की प्रेरणा नहीं देते थे और उस का रुतबा व स्वाभिमान उसे अपने से कम योग्य लड़के से शादी करने से रोकते थे.

नयना अपने फ्लैट पर पहुंची तो फ्लैट में अंधेरा था. पर्स से चाबी निकाल कर दरवाजा खोला और अंदर आ गई. ‘पवन कहां होगा’ यह सोच कर उस ने पवन के मोबाइल पर फोन लगाया और बोली, ‘‘पवन, कहां हो तुम?’’

‘‘नयना, मैं आज कुछ दोस्तों के साथ एक फार्म हाउस पर हूं. सौरी डार्लिंग, मैं आज रात वापस नहीं आ पाऊंगा. कल रविवार है, कल मिलते हैं,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया.

पवन साथ हो या न हो, एक असुरक्षा का भाव जाने क्यों हमेशा उस के जेहन में तैरता रहता है. यों उन का लिव इन रिलेशन अच्छा चल रहा था फिर भी वह अपनेआप को कुछ लुटा हुआ, ठगा हुआ सा महसूस करती थी. विवाह की अहमियत दिल में सिर उठा ही लेती. वैवाहिक संबंधों पर पारिवारिक, सामाजिक व बच्चों का दबाव होता है इसलिए निभाने ही पड़ते हैं लेकिन उन के संबंधों की बुनियाद खोखली है, कभी भी टूट सकते हैं…उस के बाद…यह सोचने से भी नयना घबराती थी.

नयना ने 2 टोस्ट पर मक्खन लगाया, थोड़ा दूध पिया और कपड़े बदल कर बिस्तर पर निढाल सी पड़ गई. पवन लिव इन रिलेशन के लिए तो तैयार है पर विवाह के लिए नहीं. कहता है कि अभी उस ने विवाह के बारे में सोचा नहीं है. सच तो यह है कि पवन यदि विवाह के लिए कहे भी तो शायद वह तैयार न हो पाए. विवाह के बाद की जिम्मेदारियां, बच्चे, घरगृहस्थी, वह कैसे निभा पाएगी. लेकिन जब अपने दिल से पूछती है तो एहसास होता है कि विवाह की अहमियत वह समझती है.

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स्थायी संबंध, भावनात्मक और शारीरिक सुरक्षा विवाह से ही मिलती है. लाख उस के पवन के साथ मधुर संबंध हैं लेकिन उसे वह अधिकार तो नहीं जो एक पत्नी का अपने पति पर होता है. यह सबकुछ सोचतेसोचते नयना गुदगुदे तकिए में मुंह गड़ा कर सोने का असफल प्रयास करने लगी.

संजना घर पहुंची तो नितिन बेटे को कंधे से चिपकाए लौन में टहल रहा था. उसे अंदर आते देख कर उस की तरफ चला आया और बोला, ‘‘बहुत देर हो गई.’’

‘‘हां, नयना और रोली के साथ कौफी पीने रुक गई थी.’’

‘‘तो एक फोन तो कर देतीं,’’ नितिन नाराजगी से बोला.

दोनों अंदर आ गए. नितिन बेटे को बिस्तर पर लिटा कर थपकियां देने लगा. वह बाथरूम में चली गई. नहाधो कर निकली तो मेज पर खाना लगा हुआ था.

‘‘चलो, खाना खा लो,’’ संजना बोली तो नितिन मेज पर आ कर बैठ गया.

डोंगे का ढक्कन हटाती हुई संजना बोली, ‘‘कुछ भी कहो, खाना महाराजिन बहुत अच्छा बनाती है.’’

नितिन चुपचाप खाना खाता रहा. संजना उस की नाराजगी समझ रही थी. आज शनिवार की शाम नितिन का आउटिंग का प्रोग्राम रहा होगा, जो उस की वजह से खराब हो गया. एक बार मन किया कि मानमनुहार करे लेकिन वह इतनी थकी हुई थी कि नितिन से उलझने का उस का मन नहीं हुआ.

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