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दरवाजा खोलते ही मैं ने एक दंपती को देखा तो देखता ही रह गया. 5 साल पहले मैं ने जिस बहन को देखा था वह इतनी बड़ी हो गई होगी, मैं ने सोचा भी न था. साथ में एक पुरुष और मांग में सिंदूर की रेखा को देख कर मैं समझ गया कि उस की शादी हो चुकी है. मेरे कदम वहीं रुक गए और शब्द गले में ही अटक कर रह गए. वह तेजी से मेरी तरफ आई और मुझ से लिपट गई...बिना कुछ कहे.

मैं उसे यों ही लिपटाए पता नहीं कितनी देर तक खड़ा रहा. मिशैल ने मुझे संकेत किया और हम सब भीतर आ गए.

‘‘भैया, आप को मेरी जरा भी याद नहीं आई. कभी सोचा भी नहीं कि आप की छोटी कैसी है...कहां है...आप के सिवा और कौन था मेरा,’’ यह कह कर वह सुबकने लगी.

मेरे सारे शब्द बर्फ बन चुके थे. मेरे भीतर का कठोर मन और देर तक न रह सका और बड़े यत्न से दबाया गया रुदन फूट कर सामने आ गया. भरे गले से मैं ने पूछा, ‘‘पर तुम यहां कैसे?’’

‘‘मिशैल के कारण. उन्होंने ही यहां का पता बताया था,’’ छोटी सुबकियां लेती हुई बोली.

तब तक मिशैल भी मेरे पास आ चुकी थी. वह कहने लगी, ‘‘टोनी, सच बात यह है कि तुम्हारे एक दोस्त से ही मैं ने तुम्हारे घर का पता लिया था. मैं सोचती रही कि शायद तुम एक बार अपने घर जरूर जाओगे. मैं तुम्हारे भीतर का दर्द भी समझती थी और बाहर का भी. तुम ने कभी भी अपने मन की पीड़ा और वेदना को किसी से नहीं बांटा, मेरे से भी नहीं. मैं कहती तो शायद तुम्हें बुरा लगता और तुम्हारे स्वाभिमान को ठेस पहुंचती. मुझ से कोई गलती हो गई हो तो माफ कर देना पर अपनों से इस तरह नाराज नहीं होना चाहिए.’’

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