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अस्पताल से लौटने में कभीकभी मुझे देर हो जाया करती थी. ऐसे ही एक रात मैं देर से घर लौटा तो पाया कि घर के फाटक पर ताला लटक रहा था. मैं ने पड़ोसी से चाबी ले कर फाटक खोला. कमरे की चाभी भैया एक खास जगह रख कर जाते थे जिस का सिर्फ मुझे पता था. वहां से चाभी ले कर मैं ने कमरा खोला. बहुत भूख लगी थी. रसोई में जा कर बरतन उलटापुलटा कर के देखे, खाने के लिए कुछ न मिला. खिन्न मन से भैया को फोन लगाया तो पता चला कि वे ससुराल में हैं. अगले दिन दशहरा था, सो मना कर ही लौटेंगे. मैं ने स्वयं रोटी बनानी चाही. जैसे ही गैस जलाई, कुछ सैकंड जली, फिर बंद हो गई.

रात 12 बज गए. अब इतनी रात मुझे बाहर भी कुछ खाने को मिलने वाला न था. ऐसा ही था तो भैया मुझे फोन कर देते, मैं बाहर ही खापी कर आ जाता. खुद तो ससुराल में दावत उड़ा रहे हैं और मुझे भूखा मरने के लिए छोड़ गए. यह सोच कर मुझे तीव्र क्रोध आया, वहीं अपने हाल पर रोना भी. भैया को मुझ से क्या अदावत है, जो इतना दुराव कर रहे हैं. भाभी ही उन की सबकुछ हैं, मैं कुछ नहीं. अगर इतना ही है, साफसाफ कह देते, मैं अपना खाना खुद बना लूंगा. यही सब सोच कर क दिन मैं ने स्वयं पहल की. तनाव में रहने से अच्छा है, मैं खुद ही अलग हो जाऊं.

दशहरा बीतने के बाद भैयाभाभी घर लौट आए.

‘‘आप लोग नहीं चाहते हैं तो मैं अपना खाना खुद बना लूंगा.’’

भाभी ने सुना तो तुनक गईं, बोलीं, ‘‘यह तो अच्छी बात हुई. 6 महीने से हमारा खा रहे थे, अब जब कमाने लगे तो अलग गुजारे की बात करने लगे.’’

‘‘अलग गुजारे के लिए आप लोगों ने विवश किया. वैसे भी 6 महीने खिला कर कोई एहसान नहीं किया. 2 लाख रुपए थे मां के खाते में जिसे आप लोगों ने छल से निकाल लिया.’’ मैं ने भी कहने में कोई कसर न छोड़ी. अब जब अलग रहना ही है तो मन की भड़ास निकालना ही मुझे उचित लगा.

‘‘बेशर्म, हम लोगों पर इस तरह इलजाम लगाते हुए शर्म नहीं आती,’’ भैया चीखे.

‘‘हकीकत है, भैया, आज वह रुपया होता तो मुझे अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर अस्पताल की मामूली नौकरी न करनी पड़ती.’’

‘‘तो क्या कलैक्टरी करते?’’

‘‘कलैक्टरी नहीं करता मगर ढंग से नौकरी तो करता. आप ने पिता का फर्ज निभाना तो दूर, मेरा हक मार लिया.’’ उन्हें मेरा कथन इतना बुरा लगा कि मुझे थप्पड़ मारने के लिए उठे. मगर न जाने क्या सोच कर रुक गए.

‘‘आज से तुम्हारा हमारा संबंध खत्म,’’ कह कर भैया अपने कमरे में चले गए. पीछेपीछे भाभी भी पहुंचीं, ‘‘ऐसा भाई मैं ने जिंदगी में नहीं देखा था. बड़े भाई पर इलजाम लगा रहा है. 6 महीने से खिलापिला रहे थे यह सोच कर कि भाई है. उस का यह सिला दिया, एहसानफरामोश.’’ भैया सुनते रहे. तभी बड़ी बहन गीता आ गईं. मैं ने भरसक माहौल बदलने की कोशिश की तो भी वे समझ गईं. जब तक मां जिंदा थीं भैयाभाभी ने उन की खूब आवभगत की. मां पैंशन का आधा हिस्सा उन्हीं लोगों को दे देती थीं. शेष अपने लिए रखतीं. गीता के बच्चों की डिमांड वही पूरा करतीं. भैयाभाभी सिर्फ समय से नाश्ताखाना खिला देते. भाभी को इतना भी फर्ज पहाड़ सा लगता. पीठ पीछे भैया से भुनभुनातीं. दोचार दिन के लिए गीता दीदी आतीं तो भाभी चाहतीं कि दीदी किचन में उन का हाथ बंटाएं. अपने बच्चों का एक भी सामान वे गीता दीदी के बच्चों को देना नहीं चाहती थीं.

एक दिन रात सोने के समय उन का बौर्नविटा खत्म हो गया. दीदी का बड़ा बेटा उस के बिना दूध नहीं पीता था. सो, वे भाभी के पास गईं, ‘भाभी, जरा सा बौर्नविटा ले लेती हूं अपने सोनू के लिए. कल सुबह मंगा लूंगी.’ भाभी हंस कर टालने की नीयत से बोलीं, ‘अपना भी यही हाल है, थोड़ा सा बचा है, खत्म हो जाएगा तो मुश्किल होगी. इन का हाल तो जानती हैं,’ भैया की ओर मुखातिब हो कर बोलीं, ‘कोई सामान लाने में ये कितने आलसी हैं?’ भैया नजरें चुराने लगे.

दीदी को सबकुछ समझते देर न लगी. उन का मन तिक्त हो गया. वे उलटे पांव लौट आईं. मां को पता चला तो उन की त्योरियां चढ़ गईं. भाभी को सुनाने के लिए उठीं तो दीदी ने रोक दिया, ‘क्यों मेरे लिए उन से बैर लेती हो? मैं आज हूं कल अपने ससुराल चली जाऊंगी. रहना तो तुम्हें इन्हीं लोगों के साथ है.’ मां मन मसोस कर रह गईं.

भाभी का मायका आर्थिक रूप से कमजोर था. पिता एक प्राइवेट स्कूल में ड्राइवर थे. मां यह सोच कर उन्हें लाईं कि गरीब घर की बहू रहेगी तो निबाह हो जाएगा. मगर हुआ उलटा. कुछ न देखने वाली भाभी को जब सरकारी नौकरी वाला आर्थिक रूप से संपन्न पति मिला तो वे स्वार्थी और अहंकारी हो गईं. उन्हें लगा कि अब उन्हें किसी की जरूरत नहीं. मायके से उन्हें शह मिलती. उन की मां चाहती थीं कि किसी तरह उन के बेटीदामाद अपना अचल हिस्सा ले कर स्वतंत्र गृहस्थी बसाएं. मां के मरने के बाद भरसक उन का यही प्रयास रहा कि किसी तरह मैं इस मकान का अपना हिस्सा उन्हें बेच दूं. मैं ने मन बना लिया था कि चाहे वे जो भी कर लें, मैं पिताजी की अमानत नहीं छोड़ूंगा. मुझे मानसिक रूप से प्रताडि़त करने के पीछे उन की यही मंशा थी. इस प्रताड़ना से बचने के लिए जब मुझे तनख्वाह मिलने लगी तो उन के यहां खाना छोड़ दिया. यह भी उन्हें बरदाश्त न हुआ. कभी बिजली तो कभी मकान के टैक्स के नाम पर वे मुझे जबतब परेशान करतीं. एक दिन मुझ से रहा न गया, बोला, ‘‘भाभी, सब से ज्यादा बिजली आप खर्च करती हैं. टीवी, फ्रिज, इन्वर्टर, प्रैस सभी आप के पास हैं.’’

‘‘आप भी खरीद लीजिए. मैं ने मना तो नहीं किया है,’’ उन की वाणी में व्यंग्य का पुट था, ‘‘मगर बिजली का बिल आधा आप को देना ही होगा.’’

‘‘आधा क्यों?’’

‘‘कनैक्शन पिताजी के नाम है. घर की आधी हिस्सेदारी आप की भी बनती है. तो बिल भी तो आधा देना होगा.’’

‘‘अच्छा तर्क है आप का. बराबर क्यों?’’ मैं उखड़ा, ‘‘आप ज्यादा खर्च करेंगी, तो ज्यादा देंगी. मैं कम खर्च करूंगा तो कम दूंगा. बिजली के नाम पर मैं सिर्फ एक 15 वाट का सीएफएल और एक पंखे का इस्तेमाल करता हूं.’’ उन्हें मेरा तर्क नागवार लगा. तुनक कर भैया के पास गईं. भैया चुपचाप सुन रहे थे. मुझे अस्पताल की जल्दी थी, सो जल्दीजल्दी कपड़े पहन कर निकल गया. मेरे जाने के बाद दोनों के बीच जो भी खुसुरफुसुर हुई हो, मुझे पता नहीं. हां, 2 दिनों बाद भैया ने मुझे अपना फैसला सुनाया.

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