शामहोने को थी. पहाड़ों के रास्ते में शाम गहरा रही थी. शैलेन गाड़ी में बैठा सोच रहा था कि कहां मुंबई की भीड़भाड़ और कहां पहाड़ की शुद्ध हवा. आज कई सालों के बाद वह अपने घर अपने मातापिता से मिलने जा रहा था. उस का घर कूर्ग में था. कूर्ग अपनी खूबसूरती और कौफी के बागानों के लिए मशहूर है. उस की बहन इरा, जो उस की बहन कम और दोस्त ज्यादा थी, अमेरिका से आई हुई थी. ज्यादातर तो उस के माता और पिता उस के  पास मुंबई में रहते थे, क्योंकि मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाले शैलेन के पास समय की कमी थी. वह अपने परिवार के साथ मुंबई में रहता था. लेकिन इस बार इरा आई थी और वह अपना समय इस बार कूर्ग में बिताना चाहती थी. उसी से मिलने और अपने बचपन की यादें ताजा करने के लिए शैलेन 3 दिन के लिए अपने घर जा रहा था. मायसोर से आगे चावल के खेतों और साफसुथरे गांवों को पीछे छोड़ती उस की गाड़ी आगे बढ़ रही थी. उस के घर तक पहुंचने का रास्ता बहुत सुंदर था.

सहसा शैलेन को याद आया कि इरा ने उसे फोन पर बताया था कि इस बार वह अपनी बचपन की सहेलियों के साथ अपने स्कूल जाना चाहती है. इस बार इस के पास समय की कमी नहीं थी. इरा और उस की सहेलियां सब एक ही स्कूल में पढ़ती थीं. वे सब एकसाथ उस स्कूल को देखना चाहती थीं और कई सालों बाद आज आखिर वह मौका आ ही गया था.

‘चलो, ठीक ही है,’ शैलेन ने मन ही मन सोचा. वह भी तो उसी स्कूल में पढ़ता था. इरा और उस की सहेलियों से 3 क्लास सीनियर.

दोनों भाईबहन एकदूसरे के हमदर्द तो थे ही, हमराज भी थे. पढ़ाईलिखाई के मामले में एकदूसरे के राज छिपा कर रखते थे सब से.

यह सोचतेसोचते शैलेन मुसकरा उठा. उसे इरा

की सहेलियां याद आईं. वे सब भी इरा की

तरह हुल्लड़बाज थीं. कई बार वह इरा की सहेलियों को छोड़ने उन के घर गया था. उस ने इरा की कई सहेलियों को साइकिल चलाना भी सिखाया था.

इस बार शैलेन इरा से पूछेगा कि उस की वे सब शैतान सहेलियां कैसी हैं और कहां हैं? वैसे तो आजकल फेसबुक और व्हाट्सऐप के जमाने में सब ही एकदूसरे के बारे में जानते हैं. शैलेन को इरा की सहेलियों के नाम और चेहरे याद आने लगे. ये चेहरे और नाम वैसे तो कोई खास अहमियत उस के जीवन में नहीं रखते थे, लेकिन वह इन सब के साथ अपने बचपन का जुड़ाव महसूस करता था. शैलेन को याद आया कि जब उस की शादी मुंबई से होनी तय हुई थी तो इरा की सहेलियों को बहुत निराशा हुई थी. वे सब उस की शादी में शामिल होना चाहती थीं, क्योंकि हुल्लड़ मचाने का इस से अच्छा मौका और कहां मिलता? बाद में जब रिसैप्शन कूर्ग में तय हुआ तो सब के चेहरे की हंसी लौटी.

गाड़ी कौफी बागानों से होती हुई

गुजर रही थी और शैलेन के दिमाग में इरा की सहेलियों के नाम आ जा रहे थे. इन सब चेहरों

से परे एक चेहरा ऐसा भी था जिस की याद आते ही शैलेन का जीवन के प्रति उत्साह और लगन दोनों बढ़ जाते थे. यह चेहरा वेदा का था. वेदा भी इरा की खास सहेलियों में थी. वेदा की खासीयत यह थी कि वह अपने चेहरे की शैतानी को मासूमियत में बदल लेती थी. वैसे तो शैलेन

इरा की सभी सहेलियों से मिलताजुलता था, लेकिन एक इतवार की शाम कुछ ऐसा हुआ जिस के बाद से उसे वेदा से मिलने में हिचकिचाहट होने लगी.

शैलेन को वेदा से मिले अब 16 साल से भी ऊपर हो चुके हैं. वह शैलेन की रिसैप्शन में भी नहीं आ पाई थी. उस इतवार की शाम को कुछ ऐसा हुआ था जो शैलेन को आज भी जीने की प्रेरणा देता है. वैसे तो एक खुशनुमा जिंदगी जीने के लिए जो कुछ भी चाहिए वह सबकुछ शैलेन के पास था पर फिर भी इतवार की उस शाम के बिना सबकुछ अधूरा होता. आज से 16 साल पहले सोशल मीडिया नहीं था. उन दिनों चिट्ठियां यानी प्रेम पत्रों से काम चलाया जाता था. उस इतवार की शाम को ऐसी ही एक चिट्ठी शैलेन को भी मिली थी. उस चिट्ठी में शैलेन की बहुत तारीफ की गई थी और हर तरह की मदद के लिए (साइकिल सिखाने, होमवर्क में मदद करवाने आदि) शुक्रिया अदा करने के बाद अंत में यह लिखा था कि शैलेन उस रात 8 बजे उस के फोन का इंतजार करे. पत्र के अंत में वेदा का नाम लिखा था.

शैलेन चिट्ठी हाथ में लिए वहीं बैठे का बैठा रह गया. वैसे तो उस चिट्ठी में प्यार का इजहार बहुत साफ शब्दों में नहीं किया था पर यह निश्चित था कि चिट्ठी लिखने वाली लड़की वेदा थी. वह उसे पसंद करती थी. पहली और शायद आखिरी बार ऐसा हुआ था कि किसी महिला ने उस की यों तारीफ की हो. वैसे तो महानगर में और उस के विदेश प्रवास में अनेक महिला मित्रों ने और महिला सहकर्मियों ने उस की प्रशंसा की थी पर उन सब में बनावटीपन ज्यादा था. इस चिट्ठी और इस में व्यक्त भावनाएं शैलेन को ओस की बूंदों की तरह लगती थीं.

उन दिनों भावनाओं में गरमाहट होती थी, आजकल की तरह ठंडापन नहीं. आज भी वह चिट्ठी शैलेन के पास कहीं पड़ी होगी. जब कभी शैलेन को वह चिट्ठी और उस में लिखी बातें याद आती थीं तो उस की थकान का एक अंश गायब हो जाता था.

वह उस इतवार की रात को फोन का इंतजार करने लगा. मगर 8 बजे का समय गलत

सोचा था वेदा ने. इतवार की रात को शैलेन के पिताजी सब के साथ ही खाना खाते थे और

फोन वहीं डाइनिंगहौल में ही रखा था. वेदा किसी और दिन को फोन करने का रख सकती थी.

शैलेन रात को 8 बजने का इंतजार करने लगा. फोन आया और 8 बजे आया जैसाकि चिट्ठी में लिखा था. फोन पिताजी ने उठाया. जब वे घर में होते थे तो वही फोन उठाते थे. पर फोन कट गया और दोबारा नहीं आया.

आगे के कुछ दिन शैलेन ने वेदा के बारे में सोचते हुए बिताए. इस के बाद उस का वेदा से मिलना हुआ तो पर उन हालात में नहीं जहां चिट्ठी के बारे में कोई बात हो सके. इस के बाद सब अपने जीवन में धीरेधीरे आगे बढ़ते गए.

शैलेन मुंबई आ गया, इरा अमेरिका चली गई और वेदा बैंगलुरु. फिर बाद में सुना कि वेदा की शादी भी बैंगलुरु में हो गई. लेकिन शैलेन

उस चिट्ठी को भूल नहीं पाया. आज भी इतवार की ही शाम थी और शैलेन अपने घर अपने परिवार से मिलने जा रहा था. उस की गाड़ी अब घुमावदार रास्तों से हो कर घर की ओर जा रही थी. अचानक मोबाइल बज उठा. देखा तो इरा का फोन था.

‘‘और कितनी देर लगेगी? इरा ने बेताबी

से पूछा.’’

‘‘बस आधा घंटा और… कौफी तैयार रख… मैं पहुंच रहा हूं,’’ शैलेन ने जवाब दिया.

तभी इरा ने कहा, ‘‘गैस हु इज देअर

विद मी?’’

अचानक इस सवाल से शैलेन अचकचा उठा. भला कौन हो सकता है?

तभी इरा बोल पड़ी, ‘‘इट्स माई डियर

फ्रैंड, वेदा.’’

शैलेन का दिल धड़क उठा. उसे एक बार फिर उस चिट्ठी और इतवार की शाम की याद आ गई. वह मुसकरा उठा. उसे इस बात की खुशी थी कि वेदा यहां है. शाम गहरा चुकी थी और वह अपने घर के गेट पर पहुंच चुका था. अंदर पहुंच कर उस ने अपने मातापिता के पैर छुए.

तभी पीछे से आवाज आई, ‘‘हाय, हाऊ आर यू?’’

शैलेन ने पीछे घूम कर देखा तो वेदा

खड़ी थी.

‘‘हाय वेदा, कैसी है?’’ शैलेन ने जवाब में हंसते हुए कहा.

‘‘औल वैल,’’ वेदा का जवाब आया.

शैलेन ने देखा कि वेदा में बहुत ज्यादा अंतर नहीं आया है. वही आंखें, वही चेहरा, वही मासूमियत और इन सब के पीछे वही शरारती चेहरा. कुछ औपचारिक बातों और घरपरिवार के हालचाल लेने के बाद वे सब कौफी पीने लगे. शैलेन मन ही मन सोचने लगा कि क्या वेदा इतवार की उस शाम को भूल चुकी है? वैसे देखा जाए तो भूलने जैसा था भी क्या? एक चिट्ठी को तो बड़ी आसानी से भुलाया जा सकता है. पर आखिर कुछ भी हो वह चिट्ठी वेदा ने उसे खुद ही लिखी थी. अपनी खुद की लिखी चिट्ठी को वह एकदम कैसे भूल गई? वैसे भी आजकल फेसबुक की दुनिया में एक अदना सी चिट्ठी की औकात ही क्या? पर उन दिनों चिट्ठियों में ही दिल बसते थे.

उस चिट्ठी ने शैलेन को एक एहसास दिया था, पसंद किए जाने का एहसास,

स्वीकारे जाने का एहसास और इन सब से ऊपर एक अच्छे इंसान होने का एहसास.

ये एहसास जीवन में हवा और पानी की तरह जरूरी तो नहीं हैं, लेकिन इन का होना जीवन को और खूबसूरत बनाता है. पर कमाल है, वेदा को तो जैसे कुछ याद ही नहीं है. यह सही है कि  वेदा और शैलेन दोनों ही अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त हैं पर फिर भी बीते हुए समय के कुछ अंशों को तो याद किया ही जा सकता है. वेदा ने जिन भावनाओं को एक दिन चिट्ठी में उकेरा था वे शैलेन की न होते हुए भी उसे याद थीं, पर लगता है वेदा भूल चुकी थी.

पहली बार शैलेन को इस मामले में बेचैनी हुई. रात के 10 बजे थे और वह बालकनी में बैठा था. तभी इरा कौफी लिए बाहर आई. शैलेन वैसे तो इरा से कुछ नहीं छिपाता था पर न जाने क्या सोच कर वेदा की चिट्ठी की बात उसे नहीं बताई थी. आज सालों बाद शैलेन को लगा कि वेदा की चिट्ठी की बात इरा को बताई जाए. इरा वहीं बैठ कर कौफी पी रही थी और अपने मोबाइल में कुछ देख रही थी.

‘‘वेदा कहीं काम करती है?’’ शैलेन ने भूमिका बांधी.

‘‘हां,’’ छोटा सा उत्तर दे कर इरा फिर मोबाइल में व्यस्त हो गई.

‘‘कहां?’’ शैलेन ने बात आगे बढ़ाई.

‘‘उस का एनजीओ है बैंगलुरु में, वहीं,’’ इरा की निगाहें अपने मोबाइल पर ही थीं.

शैलेन ने आगे बात करने के लिए गला साफ किया, फिर बोला, ‘‘तुम्हें पता है, वेदा ने मुझे एक चिट्ठी लिखी थी बहुत पहले जब तुम लोग कालेज में थीं. मैं ने उस चिट्ठी का कोई जवाब नहीं दिया था.’’

इरा ने अब मोबाइल छोड़ कर भाई की तरफ देखा, ‘‘कौन सी चिट्ठी वही जो छोटू के हाथ से भिजवाई गई थी?’’ इरा ने उदासीनता से पूछा.

‘‘हांहां, वही… तुम्हें पता था?’’ शैलेन को अब इरा की उदासीनता पर गुस्सा आने लगा कि उसे छोड़ कर और सब लोग जो उस चिट्ठी से जुड़े हैं, इतने उदासीन क्यों हैं?

‘‘वह चिट्ठी वेदा ने नहीं लिखी थी,

मधू और चंदा ने लिखी थी,’’ इरा ने जम्हाई लेते हुए कहा.

‘‘क्या मतलब? मधु और वेदा ने लिखी थी? क्यों?’’ शैलेन ने इस अप्रत्याशित जानकारी के बाद सवाल किया. मधु और वेदा भी इरा की सहेलियां थीं और बहुत शरारती भी थीं.

शैलेन के इस सवाल पर इरा हंसने लगी, ‘‘अरे भाई, तू भूल गया उस दिन पहली अप्रैल थी.’’

मधु और चंदा का चेहरा शैलेन की आंखों के सामने घूम गया.

‘‘पर नीचे नाम तो वेदा का लिखा था?’’ शैलेन ने पूछा.

‘‘अब नीचे किसी न किसी का नाम तो लिखना ही था, तो वेदा का ही लिख दिया,’’ इरा ने जवाब दिया.

‘‘क्या वेदा को यह बात मालूम थी?’’ शैलेन ने हक्काबक्का होते हुए पूछा.

‘‘कौन सी बात? चिट्ठी वाली? पहले तो नहीं पर बाद में उन्होंने मुझे और वेदा को बता दिया था कि उन लोगों ने तुम्हें पहली अप्रैल पर वेदा के नाम से बेवकूफ बनाया है,’’ इरा ने अलसाते हुए कहा.

‘‘पर उन्हें वेदा का नाम नहीं लिखना चाहिए था,’’ शैलेन ने जैसे अपनेआप से कहा.

‘‘हां, लिखना तो नहीं चाहिए था, बट इट इज नौट मैटर, बिकौज दे न्यू दैट यू आर ए जैंटलमैंन,’’ इरा ने उनींदी आंखों से जवाब दिया.

शैलेन मन ही मन यह सोच कर मुसकरा उठा कि शायद पहली बार ऐसा हुआ होगा कि पहली अप्रैल पूरे 16 सालों तक मना हो. पर जो भी हो, इस वाकेआ ने उस के जीवन की खुशियों को बढ़ाया ही था भले वह उसे मूर्ख बनाने का प्रयास ही क्यों न रहा हो. अनजाने में ही उन लड़कियों ने कुछ ऐसा कर दिया था कि उस से शैलेन के जीवन की खुशियां बढ़ गई थीं.

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