कहानी- वीना टहिल्यानी
इधर मौम का इलाज चलता रहा. उधर अमेरिका के फ्लोरिडा विश्व- विद्यालय में पढ़ाई पूरी होते ही जौन को नौकरी मिल गई. यह जानने के बाद कि उसे फौरन नौकरी ज्वाइन करनी है, मौम ने उसे घर आने के लिए और अपने से मिलने के लिए साफ और सख्त शब्दों में मना करते हुए कह दिया कि उसे सीधा वहीं से रवाना होना है.
उस दिन बिस्तर में बैठेबैठे ही मौम ने पास बैठी मिली का हाथ अपने दोनों हाथों के बीच रख लिया फिर धीरे से बहुत प्रयास कर उसे अपने अंक में भर लिया. मिली डर गई कि मौम को अंत की आहट लग रही है. मिली ने भी मौम की क्षीण व दुर्बल काया को अपनी बांहों में भर लिया.
‘‘मर्लिन मेरी बच्ची, मैं तेरे लिए क्याक्या करना चाहती थी लेकिन लगता है सारे अरमान धरे के धरे रह जाएंगे. लगता है अब मेरे जाने का समय आ गया है.’’
‘‘नहीं, मौम...नहीं, तुम ने सबकुछ किया है...तुम दुनिया की सब से अच्छी मां हो...’’ रुदन को रोक, रुंधे कंठ से मिली बस, इतना भर बोल पाई और अपना सिर मौम के सीने पर रख दिया.’’
कांपते हाथों से मिसेज ब्राउन बेटी का सिर सहलाती रहीं और एकदूसरे से नजरें चुराती दोनों ही अपनेअपने आंसुओं को छिपाती रहीं.
मिली भाई को बुलाना चाहती तो मौम कहतीं, ‘‘उसे वहीं रहने दे...तू है न मेरे पास, वह आ कर भी क्या कर लेगा. वह कद से लंबा जरूर है पर उस का दिल चूहे जैसा है...अब तो तुझे ही उस का ध्यान रखना होगा, मर्लिन.’’