‘‘विक्रम बेटा, खेलने बाद में जाना, पहले अस्पताल में टिफिन दे कर आओ,’’ मेनगेट की ओर जाते हुए विक्की को रेनू ने बेडरूम में से आवाज दी.
‘‘टिफिन तैयार है तो रुकता हूं, नहीं तो मैं आधे घंटे में आ कर ले जाता हूं,’’ विक्की को खेलने जाने की जल्दी थी.
‘‘तैयार है, बेटा, अभी ले कर जाओ,’’ तेज कदमों से चलती हुई रेनू किचन की तरफ बढ़ी और टिफिन अपने 14 वर्षीय बेटे के हाथ में थमा दिया.
अस्पताल में टिफिन देने का सिलसिला पिछले 10 दिनों से चला आ रहा है क्योंकि वहां पर 57 वर्षीय रेनू की सास सुमित्रा देवी दाखिल हैं. कुछ दिन पहले ही वह अपने आश्रम के स्नानगृह में फिसलन की वजह से गिर पड़ी थीं और उन के कूल्हे की हड्डी टूट गई थी. बहुत यातना से गुजर रही थीं बेचारी.
रेनू के पति राजीव प्रतिदिन सुबहशाम मां को देखने जाते थे और बेटा दोनों टाइम टिफिन पहुंचाता था और रात भर दादी के पास भी रहता था. अस्पताल घर के पिछवाड़े होने के बावजूद रेनू अभी तक सास को देखने नहीं गई थी. राजीव को इस व्यवहार से बेहद दुख पहुंचा था लेकिन सबकुछ उस के वश के बाहर था. वह रेनू के साथ जबरदस्ती कर के घर में किसी प्रकार की कलह नहीं चाहता था. यही वजह है कि 11 वर्ष पहले राजीव के पिताजी की मृत्यु के पश्चात 4 बेडरूम और हाल का फ्लैट होते हुए भी राजीव को अपनी मां को आश्रम में छोड़ना पड़ा क्योंकि वह नहीं चाहता था कि सासबहू दो अजनबियों की तरह एक छत के नीचे रहें. घुटन भरी जिंदगी न तो राजीव जीना चाहता था और न ही सुमित्रा देवी. हालांकि स्वयं सुमित्रा देवी ने ही वृद्धाश्रम में रहने का फैसला किया था लेकिन फिर भी घर छोड़ते वक्त उन्हें बेहद तकलीफ हुई थी.
बेटे के पास भी कोई चारा नहीं था क्योंकि सुमित्रा देवी का घर नागपुर में था जहां वह अपने पति के साथ रहती थीं और उन का इकलौता बेटा रहता था मुंबई में. बेटे के लिए रोजरोज आना मुश्किल था. वह मां को अकेले छोड़ नहीं सकता था. राजीव ने यही मुनासिब समझा कि मां जो कह रही हैं वही ठीक है. उस ने मां को मुंबई के ही ‘कोजी होम’ वृद्धाश्रम में भरती करवा दिया जहां वह पिछले 11 वर्षों से रह रही हैं और राजीव प्रत्येक रविवार का दिन अपनी मां के साथ गुजारता है. उन की जरूरत की चीजें पहुंचाता है, सुखदुख की बातें करता है और शाम को घर वापस चला आता है.
आज जब राजीव रात को अस्पताल से वापस आया तो उस ने रेनू से कोई बात नहीं की. स्नान किया और खाना खा कर चुपचाप अपने कमरे में जा कर लेट गया. उसे इस बात की बेहद तकलीफ हो रही थी कि 11 दिन से मां घर के पास वाले अस्पताल में हैं और उस की पत्नी औपचारिकतावश भी उन्हें देखने नहीं गई.
रेनू जब रसोई का काम निबटा कर शयनकक्ष में आई तो पति को दीवार की तरफ मुंह किए लेटे हुए पाया. यह आज की ही बात नहीं है यह तनाव पिछले 11 दिनों से घर में चल रहा है. रेनू भी दूसरी दीवार की तरफ मुंह घुमा कर लेट गई. नींद तो जैसे पंख लगा कर उड़ गई थी.
शादी के बाद के 5 बरस उस की आंखों के आगे से गुजरने लगे. शादी होते ही सासससुर की शिकायतें शुरू हो गई थीं हर छोटीबड़ी चीज को ले कर. न तो उन्हें रेनू के मायके से आई हुई कोई चीज पसंद थी न ही उस का बनाया हुआ खाना. रोज किसी न किसी चीज में नुक्स निकाल दिया जाता, यहां तक कि रेनू की आवाज में भी, कहते कि यह बोलती कैसे है.’
रेनू की आवाज बहुत ही बारीक और बच्चों जैसी सुनाई पड़ती थी. हालांकि यह सब किसी के वश की बात नहीं है लेकिन सासससुर को इस बात पर भी एतराज था, वे समझते थे कि रेनू बनावटी आवाज बना कर बात करती है.
रेनू की कोशिश रहती कि घर के सभी सदस्य खुश रहें मगर ऐसा हो न पाता. कभीकभी तंग आ कर पलट कर वह जवाब भी दे देती थी. जिस दिन जवाब देती उस से अगले ही दिन घर में अदालत लग जाती और उसे राजीव के दबाव में आ कर सासससुर से माफी मांगनी पड़ती. राजीव का कहना था कि अगर इस घर में रहना है तो इस घर की मिट्टी में मिल जाओ. रेनू के सुलगते हुए दिल में मुट्ठी भर राख और जमा हो जाती.
रेनू के पिताजी के खून में प्लेट- लेट्स काउंट बहुत कम हो गया था. उन की बीमारी बढ़ती ही जा रही थी. उस दिन जब फोन आया कि पिताजी की तबीयत बहुत खराब है, जल्दी आ जाओ तो रेनू ने अपने सासससुर से, अपने पिताजी से मिलने शिमला जाने की इजाजत मांगी तो ससुरजी ने हंसते हुए कहा, ‘बहू, यह कौन सी नई बात है, उन की तबीयत तो आएदिन खराब ही रहती है.’
‘पता नहीं क्या बीमारी है, बिस्तर पर एडि़यां रगड़ कर मरने से अच्छा है मृत्यु एक ही झटके में आ जाए,’ रेनू की सास सुमित्रा देवी बोली थीं.
यह बात उन्होंने अपने बारे में कही होती तो और बात थी मगर उन्होंने तो निशाना बनाया था रेनू के पिताजी को. सुन कर रेनू का दिमाग झन्ना उठा. उस ने वक्र दृष्टि से दोनों को निहारा.
सासससुर दोनों स्तब्ध रह गए. बैठक में बैठे राजीव ने भी सब देखासुना. किसी को भी जैसे काटो तो खून नहीं. कोई कुछ नहीं बोला.
2 दिन पश्चात रेनू के पिता की मृत्यु हो गई.
राजीव स्वयं रेनू को ले कर शिमला गया…लेकिन तब तक सबकुछ खत्म हो चुका था. पिता की मृत्यु ने राख में दबे ज्वालामुखी को और तेज कर दिया था. रेनू अब जिंदगी भर सासससुर की शक्ल भी नहीं देखना चाहती थी.
सुबह उठी तो रेनू की आंखें रात भर नींद न आने की वजह से लाल थीं. बेटा अस्पताल से आ कर स्कूल के लिए तैयार होने लगा. रेनू रसोई में चली गई. राजीव चुपचाप दाढ़ी बना रहा था. सभी के घर में मौजूद होते हुए भी एक चुप्पी व्याप्त थी.
वक्त गुजरता गया. सुमित्रा देवी के साथ हुई दुर्घटना को 8 महीने गुजर गए.
आज रेनू जब सो कर उठी और जैसे ही पैरों पर शरीर का भार पड़ा, वह असहनीय पीड़ा से कराह उठी. वह चलने में लगभग असमर्थ थी. फिर शुरू हुआ डाक्टरों, परीक्षणों और दवाइयों का सिलसिला. एक सप्ताह गुजर गया और रेनू बिलकुल भी उठने के काबिल न रही. डाक्टर ने रिपोर्ट देख कर बताया कि रीढ़ की हड्डी में नीचे वाली बोन घिस कर छोटी हो गई है. दवाइयां और कमर पर बांधने के लिए बैल्ट रेनू को दे दी गई. पूरे दिन भागभाग कर काम करने वाली रेनू का सारा वक्त बिस्तर पर गुजरने लगा. राजीव प्रतिदिन सुबह खाना बनाता, अपना और बेटे का टिफिन भरता तथा रेनू के लिए हौट केस में भर कर रख जाता. रेनू पूरा दिन कुछ न कुछ सोचती रहती. अंदर ही अंदर वह बुरी तरह डर गई थी. उसे लगने लगा कि वह किसी काम की नहीं रही है, पति पर बोझ बन गई है. अगर यह बीमारी ठीक न हुई तो वह जीते जी मर जाएगी.
अचानक सास का चेहरा उस की नजरों के सामने कौंध जाता, ‘कितनी तकलीफ हुई होगी मेरी सास को, कितना कष्ट उस ने अकेले सहा, 11 वर्ष तक अकेलेपन का संताप झेला, बेटाबहू होते हुए भी, परिवार होते हुए भी तकलीफ से अकेली जूझती रही. मैं ने जिंदगी में…सिर्फ खोया ही खोया है. जिन्हें मैं ने इतनी तकलीफ दी क्या कभी उन के दिल से मेरे लिए दुआ निकली होगी.
‘मैं सबकुछ भुला कर उन्हें अपना बना सकती थी लेकिन मैं ने कोशिश ही नहीं की. अगर सासससुर सही नहीं थे तो मैं भी तो गलत थी. इनसान को कभीकभी दूसरों को माफ भी कर देना चाहिए. कितने वर्षों से नफरत के ज्वालामुखी को परत दर परत अपने अंदर जमा करती आ रही हूं. मैं आज तक नहीं जान पाई कि यह ज्वालामुखी मुझे ही झुलसा कर खत्म किए जा रहा है. अब और नहीं. मैं बिना किसी बोझ के निर्मल जीवन जीना चाहती हूं.’ रेनू ने मन ही मन एक दृढ़निश्चय किया कि वह राजीव के साथ स्वयं जाएगी मांजी को लेने. बस, थोड़ी सी ठीक हो जाए. वह अगर आने के लिए नहीं मानेंगी तो भी वह पैर पकड़ कर, खुशामद कर के उन्हें मना लेगी. इन खयालों ने ही रेनू को बहुत हलका बना डाला. वह जल्दी ठीक होने का इंतजार करने लगी.
शाम को राजीव जब आफिस से वापस आया तो रेनू के चमकते चेहरे को देख उसे बहुत संतोष हुआ. जब रेनू ने अपना इरादा बताया तो राजीव कृतज्ञ हो गया. उस के मन में आया कि दुनिया भर की खुशियां रेनू पर न्योछावर कर दे, प्रकट में वह कुछ बोला नहीं. बस, प्यार से उस के बालों को सहलाने लगा और झुक कर उस का माथा चूम लिया.