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‘‘सुनिए, केशव का फोन आया था, शालिनी की शादी है अगले महीने. सब को आने को कह रहा था,’’ देररात फैक्टरी से लौटे राघव को खाना परोसते हुए सुधा ने औपचारिक सूचना दी.

‘‘ठीक है, तुम और सौम्या हो आना. मेरा जाना तो जरा मुश्किल होगा. कुछ रुपएपैसे की जरूरत हो तो पूछ लेना, आखिर छोटा भाई है तुम्हारा,’’ राघव ने डाइनिंग टेबल पर बैठते हुए कहा.

‘‘रुपएपैसे की जरूरत होगी, तभी इतने दिन पहले फोन किया है, वरना लड़का देखने से पहले तो राय नहीं ली,’’ सुधा ने मुंह बिचकाते हुए कहा.

सुधा का अपने मायके में भरापूरा परिवार था. उस के पापा और चाचा दोनों ही सरकारी सेवा में थे. बहुत अमीर तो वे लोग नहीं थे मगर हां, दालरोटी में कोई कमी नहीं थी. सुधा दोनों परिवारों में एकलौती बेटी थी, इसलिए पूरे परिवार का लाड़प्यार उसे दिल खोल कर मिलता था. चाचाचाची भी उसे सगी बेटी सा स्नेह देते थे. उस का छोटा भाई केशव और बड़ा चचेरा भाई लोकेश दोनों ही बहन पर जान छिड़कते थे.

सुधा देखने में बहुत ही सुंदर थी. साथ ही, डांस भी बहुत अच्छा करती थी. कालेज के फाइनल ईयर में ऐनुअल फंक्शन में उसे डांस करते हुए मुख्य अतिथि के रूप में पधारे बीकानेर के बहुत बड़े उद्योगपति और समाजसेवक रूपचंद ने देखा तो उसी क्षण अपने बेटे राघव के लिए उसे पसंद कर लिया.

रूपचंद का मारवाड़ी समाज में बहुत नाम था. वे यों तो मूलरूप से बीकानेर के रहने वाले थे मगर व्यापार के सिलसिले में कोलकाता जा कर बस गए थे. हालांकि, अपने शहर से उन का नाता आज भी टूटा नहीं था. वे साल में एक महीना यहां जरूर आया करते थे और अपने प्रवास के दौरान बीकानेर ही नहीं, बल्कि उस के आसपास के कसबों में भी होने वाली सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल हुआ करते थे. इसी सिलसिले में वे नोखा के बागड़ी कालेज में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे.

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