‘‘रंजीतचल यार, कुछ खा कर आते हैं. आज मैरीडियन में सिजलर्स स्पैशल डे है.’’
समीर के उत्साह पर रंजीत ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. जैसे कुछ सुना ही नहीं. पत्थर की तरह बैठा रहा.
‘‘मैं भी देख रहा हूं, जब से तू अपने गांव से आया है, बहुत डल फील कर रहा है. आखिर बात क्या है यार?’’
रंजीत से अब रहा न गया. बोला, ‘‘मम्मीपापा ने ऐसा सच बताया, जिसे मैं अभी तक बरदाश्त नहीं कर पा रहा हूं, समीर,’’ उस का गला भर आया. आगे कुछ न बोल सका.
‘‘रोता क्यों है, हर समस्या का कोई न कोई हल होता है. तेरी प्रौब्लमक्या है?’’ समीर को बड़ा अजीब लग रहा था.
रंजीत ने एक लंबी सांस ली, ‘‘मैं मम्मीपापा का बेटा नहीं हूं. उन्होंने बताया कि मैं उन्हें ट्रेन
में मिला था. कोई मुझे ट्रेन के डब्बे में छोड़ गया था. मैं तब 6 महीने का था. मम्मीपापा ने पुलिस में शिकायत दी और उस की इजाजत से मुझे घर ले गए. जब 1 साल के बाद भी मुझे लेने कोई नहीं आया तो उन्होंने मुझे कानूनी तौर पर गोद
ले लिया.’’
‘‘अच्छा तो यह बात है...अब तू मायूस
क्यों है?’’
‘‘मुझे इतना बड़ा सच मालूम हो और
मुझ पर कोई असर न पड़े, यह कैसे हो सकता
है यार?’’
‘‘कम औन रंजीत, तुझे तो कुदरत का शुक्रगुजार होना चाहिए, जिस ने तुझे इतने अच्छे मांबाप दिए. तुम्हारे मांबाप ने तुझे इतना प्यार दिया, पढ़ायालिखाया. तुझे इस लायक बनाया कि तू दुनिया के आगे सिर उठा कर जी सके... तुझे तो उन का शुक्रगुजार होना चाहिए.’’
‘‘वह तो है. अब उन के प्रति मेरा प्रेम, अभिमान और भी ज्यादा हो गया है.’’