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मेरी मां ने अपने प्रेमी से धोखा खा कर किस प्रकार से मुझे जीवित रखा, पढ़ालिखा कर अपने पैरों पर खड़ा किया. इतनी लंबी जीवनयात्रा में किस प्रकार वे आधा पेट खा कर रहीं, समाज से कितनी अधिक मानसिक प्रताड़ना सहन कीं, उन के अतिरिक्त कौन समझ सकता है. मुझे नफरत है उस पुरुष से जो मेरी मां को मौत के कगार पर छोड़ गया. उसे पिता मानने को मैं कतई तैयार नहीं हूं,’’ यह कहने के साथ श्वेता की आंखें बरस पड़ीं. वह फिर बोली, ‘‘और वह मेरा सौतेला बाप, कितना घिनौना इंसान है, शराब पी कर मेरी व मेरी मां की जानवरों की भांति पिटाई करता है. क्या वह बाप कहलाने के योग्य है? मुझे नफरत हो चुकी है मर्द जाति से.’’

‘‘सभी मर्द एकजैसे नहीं होते. मैं व राजेश क्या ऐसे हैं?’’

‘‘आप मालिक हैं. आप की दी नौकरी से हमारा गुजारा चल रहा है. मैं आप के बारे में क्या कह सकती हूं.’’‘‘राजेश के बारे में तो कह सकती हो?’’

‘‘वह आयु में मुझ से छोटा है. बात, व्यवहार में बिलकुल लापरवाह. बच्चों जैसा भोला मालूम पड़ता है. उस के बारे में मैं क्या कह सकती हूं. मालिक तो वह भी है. आप दोनों की बदौलत ही हमें दो वक्त की रोटी मिलने लगी है.’’ श्वेता के उत्तर से रामेंद्र संतुष्ट नहीं हुए. वे उसे डांट कर स्पष्ट कह देना चाहते थे कि वह राजेश से बात करना बिलकुल बंद कर दे पर कह नहीं पाए. फिर आकस्मिक रूप से श्वेता 2 दिन तक काम पर नहीं आई तो वे चिंतित हो उठे. तीसरे दिन उस के घर जानकारी हेतु किसी को भेजना ही चाहते थे कि वह आ कर खड़ी हो गई. उस के चेहरे पर खरोंचों के निशान व सूजन थी. हाथपैरों में भी चोटों के निशान थे. ‘‘यह क्या हाल बना रखा है?’’ वे पूछ बैठे. फैक्टरी के कर्मचारी भी आ कर कारण जानने हेतु उत्सुक हो उठे थे. श्वेता ने रोरो कर बताया कि उस के सौतेले बाप व भाइयों ने मारमार कर बुरा हाल कर दिया. वे नहीं चाहते कि मैं अपने वेतन में से कुछ रुपए भी मां के इलाज पर खर्च करूं. मां बीमार रहती हैं व सरकारी अस्पताल की दवा से कुछ फायदा नहीं होता. वे लोग मेरा पूरा वेतन खुद हड़पना चाहते हैं.

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