कहानी- करुणा कोछर
घुटनों के असहनीय दर्द के चलते मेरे लिए खड़ा होना मुश्किल हो रहा था किंतु मजबूरी थी. इस अनजान जगह पर मुझे दूरदूर तक कोई सहारा नजर नहीं आ रहा था.
विराट को परसों जबरदस्त हार्ट अटैक पड़ा था और देहरादून में उचित व्यवस्था न होने के कारण वहां के डाक्टरों की सलाह से विराट को दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में लाना पड़ा. हालांकि विराट की तबीयत खराब होने की खबर बच्चों को कर दी थी लेकिन उन की सुध लेने कोई नहीं आया. यह सोच कर मेरी आंखें भर आईं कि क्या इसी दिन के लिए लोग औलाद चाहते हैं? दर्द असहनीय होता जा रहा था. चक्कर सा आने लगा कि अचानक किसी ने आ कर थाम लिया और अधिकार के साथ बोला, ‘‘आप हटिए यहां से, मैं पैसे जमा करवा दूंगा,’’ आवाज सुन कर मैं ने चौंक कर ऊपर देखा तो मेरी निगाहें जम सी गईं.
‘‘तुम...तुम यहां कैसे पहुंचे?’’ मैं ने कांपते स्वर में पूछा.
‘‘कैसे भी? पर आप ने तो नहीं बताया न. हमेशा की तरह मुझे गैर ही समझा न,’’ उस के स्वर में शिकायत थी, ‘‘खैर छोडि़ए, आप बाबा के पास जाइए, मैं पैसे जमा करवा कर और डाक्टर से बात कर के अभी आता हूं,’’ वह बोला.
मैं धीरेधीरे चलती हुई विराट के कमरे तक पहुंची. वह आंखें मूंदे लेटे थे. मैं धीरे से पास रखे स्टूल पर बैठ गई. बुद्धि शून्य हुई जा रही थी. थोड़ी देर में वह भी कमरे में आया और विराट के पैर छूने लगा. विराट ने जैसे ही आंखें खोलीं और उसे सामने देखा तो खिल उठे, और अपनी दोनों बांहें फैला दीं तो वह छोटे बच्चे की तरह सुबकता हुआ उन बांहों में सिमट गया. थोड़ी देर बाद सिर उठा कर बोला, ‘‘मैं आप से बहुत नाराज हूं बाबा, आप ने भी मुझे पराया कर दिया. 2 दिन से घर पर घंटी बज रही थी, कोई फोन नहीं उठा रहा था सो मुझ से रहा नहीं गया और मैं घर पहुंचा तो पड़ोसियों से पता चला कि आप बीमार हैं और मैं यहां चला आया.
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