निशा की मादक मुसकराहट और भोलेपन के कारण वरुण को उस की सचाई अच्छी लगी. हंस कर फिर से दोहराया, ‘‘मां सच ही बड़ी समझदार हैं.’’
निशा ने उठने का प्रयत्न करते हुए पूछा, ‘‘आप क्या लेंगे, चाय या कौफी?’’
वरुण ने शरारत से पूछा, ‘‘चाय या कौफी कौन बनाएगा, मां?’’
निशा मुसकराई, ‘‘आप कहेंगे तो मैं बना दूंगी.’’
‘‘पर उस के लिए तुम्हें उठ कर जाना होगा,’’ वरुण ने कहा.
‘‘सो तो है,’’ निशा का उत्तर था.
‘‘फिर बैठी रहो,’’ वरुण ने फुसफसा कर कहा, ‘‘आज बहुत सारी बातें
करने को जी कर रहा है. चलो, कहीं चलते हैं.’’
निशा ने मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘ना बाबा ना, मां जाने नहीं देंगी.’’
‘‘मां से पूछ लेते हैं,’’ वरुण ने बहादुरी से कहा.
‘‘मां ने पहले ही कह दिया है कि अगर आप बाहर जाने को कहें तो सख्ती से मना कर देना,’’ निशा ने नाखूनों पर अंगूठा फिराते हुए कहा.
‘‘मां तो बहुत समझदार हैं,’’ इस बार वरुण के स्वर में व्यंग्य का अनुपात अधिक था.
‘‘सो तो है,’’ निशा ने स्वीकार किया.
‘‘कौफी हाजिर है,’’ शिवानी ट्रे में
2 कप कौफी ले कर खड़ी थी, ‘‘रुकावट के लिए खेद है.’’
प्यालों से ऊपर उठते सफेद झाग की ओर प्रशंसा से देखते हुए वरुण ने कहा, ‘‘कौफी तो लगता है तुम्हारी तरह स्वादिष्ठ और लाजवाब है.’’
शिवानी ने चट से कहा, ‘‘बिना चखे कैसे कह सकते हैं.’’
वरुण ने शरारत से कहा, ‘‘अगर तुम्हारी दीदी की अनुमति हुई तो वह भी कर सकता हूं.’’
‘‘धत् जीजाजी,’’ कह कर शिवानी ने ट्रे मेज पर रखी और भाग गई.
‘‘आप बहुत गंदे हैं,’’ निशा ने मुसकरा कर कहा.
‘‘यह तो पहला प्रमाणपत्र है तुम्हारा. अभी तो आगे बहुत से मिलेंगे,’’ वरुण ने कौफी पीते हुए कहा.
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वरुण के जाने के बाद मांबाप का बहुत झगड़ा हुआ. मां ने दुनियादारी की दुहाई दी और पिता ने ‘जमाना बदल गया’ का तर्क पेश किया. निर्णय तो कु़छ नहीं हुआ, पर कुछ समय पहले के खुशी के वातावरण में मनहूसियत फैल गई.
पति से बदला लेने के लिए मां बेटी पर बरस पड़ी, ‘‘तुझ से किस ने कहा था कि अपने घर की सारी बातें बता दे?’’
‘‘मैं ने क्या कहा?’’ निशा ने तीव्र स्वर में पूछा. मां की बेरुखी पर वह पहले से ही दुखी थी.
‘‘क्या नहीं कहा?’’
मां ने नकल करते हुए कहा, ‘‘दहीबड़े सख्त बने थे, सो नौकरानी को दे दिए. सारे व्यंजन बाजार से आए थे. ये सब किस ने कहा?’’
‘तो मां कान लगा कर सुन रही थीं,’ निशा को कोई उत्तर नहीं सूझा तो वह रोने लगी ओर रोतेरोते अपने कमरे में चली गई.
पिता ने क्रोध में कहा, ‘‘रुला दिया न गुड्डी को? कौन सा झूठ कह रही थी? और फिर तुम्हारी तरह से झूठ बोलने में माहिर भी तो नहीं है. तुम्हारी तरह मंजने में समय तो लगेगा ही.’’
वरुण ने झिझकते हुए निशा को बाहर ले जाने की आज्ञा मांगी थी पर मां ने बड़ी होशियारी से टाल दिया.
वरुण को निराशा तो हुई ही, क्रोध भी बहुत आया. सारे रोमानी सपनों पर पानी फिर गया. उस ने अब कभी भी ससुराल न जाने का निश्चय कर लिया. सास के लिए जो श्रद्धा होनी चाहिए, वह लगभग लुप्त हो गई. एक बार शादी हो जाने दो, उस के मन में जो विचार उठ रहे थे, वे बड़े खतरनाक थे.
मुंह लटका देख कर बहन ने हंसी से ताना दिया, ‘‘मुंह ऐसे लटका है जैसे किसी गोदाम के दरवाजे पर बड़ा सा ताला. लगता है खातिर नहीं हुई. इस बार मुझे साथ ले चलना. फिर देख लूंगी सब को.’’
मां ने हंस कर पूछा, ‘‘सब ठीक है न?’’
पिता को अच्छा नहीं लगा, ‘‘कोई गड़बड़ हो तो बता दो. रिश्ता अभी भी टूट सकता है.’’ बात इतनी गंभीर हो जाएगी, वरुण ने सोचा न था. मुसकरा कर कहा, ‘‘कुछ नहीं. मैं तो नाटक कर रहा था.’’ जब वरुण ने 3 सप्ताह तक कोई बात नहीं की तो निशा को चिंता होने लगी और मां के दिल में भी अशांति ने जन्म लिया. निशा ने बहन को उकसाया. शिवानी ने मां से कहा और फिर मां ने पति से कहा कि वरुण को फोन करें और बाइज्जत निमंत्रण दें. फोन पर ससुर का स्वर सुनते ही वरुण की 3 सप्ताह की भड़ास काफूर हो गई और बड़े उत्साह से वहां पहुंच गया. इस का लाभ यह हुआ कि जब वरुण ने निशा को बाहर ले जाने का प्रस्ताव रखा तो कोई आपत्ति किसी ने नहीं उठाई. थोड़ाबहुत खा कर बेसब्री से बाहर निकल पड़ा. निशा साथ थी तो मन कर रहा था कि दुनियाभर उसे देखे और जले.
‘‘किस हौल में चलना है?’’ वरुण ने पूछा.
‘‘तो क्या आप ने टिकट नहीं खरीदे हैं?’’ निशा ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘कैसे खरीदता?’’ वरुण ने कटुता से कहा, ‘‘कहीं पिछली बार की तरह फिर मां मेरा टिकट काट देतीं?’’
मीठी हंसी बिखेरती हुई निशा बोली, ‘‘तो अभी तक नाराज हो? क्या इसीलिए इतने दिनों तक आप ने फोन नहीं किया? और न ही कोई संदेश?’’
‘‘हां, जी तो कर रहा था कि आज भी न आऊं,’’ वरुण मुसकराया.
‘‘तो फिर क्यों आ गए?’’ निशा ने सरलता से पूछा.
‘‘कशिश, मैडम, कशिश,’’ वरुण ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘शुद्ध, शतप्रतिशत शुद्ध कशिश.’’
‘‘ओह,’’ निशा ने आंखें मटका कर पूछा, ‘‘तो क्या कशिश का भी कोई अनुपात होता है?’’
‘‘होता है,’’ वरुण ने दिल पर हाथ रख कर कहा, ‘‘शादी के बाद पूरी तफसील के साथ बताऊंगा. अभी तो यह बताओ, कौन सी फिल्म देखनी है?’’
‘‘जिस में भी टिकट मिल जाए.’’ निशा ने उत्तर दिया.
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‘‘अब दिल्ली में इतने सारे सिनेमाघर हैं, कहांकहां देखेंगे?’’ वरुण ने पूछा, ‘‘क्या अंगरेजी सिनेमा देखती हो?’’
‘‘कभीकभी,’’ निशा ने कहा, ‘‘वैसे मुझे शौक नहीं है.’’
‘‘अंगरेजी फिल्म के टिकट तो जरूर मिल जाएंगे,’’ वरुण ने उत्साह से पूछा, ‘‘तुम ने ‘बेसिक इंस्ंिटक्ट’ और ‘इन्डीसैंट प्रपोजल’ देखी है?’’
‘‘नहीं,’’ निशा ने सिहर कर कहा, ‘‘ये तो नाम से ही गंदी फिल्में लगती
हैं. क्या आप ऐसी फिल्में देखना पसंद करते हैं?’’
‘‘अरे, जैसा नाम वैसी फिल्में नहीं हैं,’’ वरुण ने निराशा से कहा, ‘‘देखोगी तो अच्छी लगेंगी.’’
‘‘ना बाबा ना,’’ निशा ने मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘मां को पता लग गया तो खा जाएंगी.’’
चिढ़ कर वरुण ने कहा, ‘‘तुम्हारी मां तो मुझे नरभक्षी लगती हैं. क्या तुम्हें थोड़ाथोड़ा रोज खाती हैं? कैसी मां हैं तुम्हारी?’’ निशा को मां की बुराई अच्छी नहीं लगी, पर इस पर लड़ाई करना भी ठीक नहीं था. आखिर मां का नाम भी तो उसी ने ले लिया था.
‘‘मां बहुत अच्छी हैं,’’ निशा ने गंभीरता से कहा, ‘‘सही मार्गदर्शन करती हैं. मेरी मां तो एक संपूर्ण स्कूल हैं.’’
व्यग्ंय से वरुण ने कहा, ‘‘वह तो सामने आ रहा है. वैसे हम फिल्म की बात कर रहे थे.’’
निशा ने सोच कर कहा, ‘‘चलो ‘बेबीज डे आउट’ देखते हैं. सुना है बहुत अच्छी है. उस डायरैक्टर की मैं ने ‘होम अलोन’ देखी थी, बहुत मजेदार थी.’’
वरुण समझ गया कि अंगरेजी फिल्मों के बारे में निशा से टक्कर नहीं ले सकेगा. वैसे अच्छा भी लगा. कुछ गर्व भी हुआ. पत्नी अच्छी अंगरेजी बोलती हो, अंगरेजी सिनेमा भी देखती हो और पाश्चात्य संगीत में रुचि रखती हो तो पति का स्तर बढ़़ जाता है.
‘‘चलो छोड़ो फिल्मविल्म,’’ वरुण ने कहा, ‘‘थोड़ा घूमते हैं और फिर बैठेंगे किसी रेस्तरां में. क्या कहती हो?’’
‘‘जैसी आप की मरजी,’’ निशा ने मासूमियत से कहा, ‘‘मां ने कहा था कि धूप में ज्यादा मत घूमना.’’
‘‘रंग काला पड़ जाएगा,’’ वरुण ने चिढ़ कर कहा, ‘‘मां की सारी हिदायतें क्या टेप में भर ली हैं?’’
निशा हंस पड़ी, ‘‘ऐसा ही समझ लो.’’
‘‘तो अगली बार मां को साथ मत लाना. शादी तुम से कर रहा हूं, तुम्हारी मां से नहीं,’’ वरुण ने क्रोध से कहा. निशा को अच्छा नहीं लगा लेकिन अपने ऊपर नियंत्रण कर के बोली,‘‘आप को मेरी मां के लिए ऐसा नहीं कहना चाहिए. आखिर वे आप की सास हैं. मां के बराबर हैं.’’ वरुण को भी एहसास हुआ कि शायद उस के स्वर में कुछ अधिक तीखापन था. बोला, ‘‘मुझे खेद है. क्षमा कर दो.’ निशा की मुसकराहट में क्षमा छिपी थी. यही इस का उत्तर था. अपराधभावना से ग्रस्त वरुण ने सोचा कोई निदान करना चाहिए. अगर निशा को कोई भेंट दे तो वह खुश हो जाएगी. भुने चनों की पुडि़या हाथों में ले कर घूमते हुए वरुण एक दुकान के सामने रुक गया. बड़ा सुंदर सलवारसूट एक डमी मौडल, आतेजाते सब का ध्यान आकर्षित कर रही थी.
‘‘यह सूट तुम्हारे ऊपर बहुत अच्छा लगेगा,’’ वरुण ने पूछा, ‘‘क्या खयाल है?’’
‘‘खयाल तो अच्छा है,’’ निशा की आंखोें में चमक आई पर लुप्त हो गई, ‘‘पर…’’
‘‘पर क्या?’’ वरुण ने आश्चर्य में पूछा और शौर्य प्रदर्शन करते हुए कहा, ‘‘दाम की तरफ मत देखो.’’
निशा ने अब देखा. मूल्य था 1,750 रुपए.
‘‘दाम तो ज्यादा है ही,’’ निशा ने झिझकते हुए कहा, ‘‘पर इस का गला ठीक नहीं है.’’
अब वरुण ने देखा, कुरते का गला आगे से नीचे कटा हुआ था.
‘‘तो क्या हुआ,’’ वरुण ने बहादुरी से कहा, ‘‘मेरी पसंद है, तुम मेरे लिए पहनोगी.’’
‘‘नहीं,’’ निशा ने दृढ़ता से कहा, ‘‘मां पहनने नहीं देंगी. इस मामले में बहुत सख्त हैं.’’
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