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मालती ने घड़ी देखी. सुबह के साढ़े 5 बजे थे. इतनी सर्दी में मन नहीं हुआ कि रजाई छोड़ कर उठे लेकिन फिर तुरंत ध्यान आया कि बगल के कमरे में बहू लेटी है, उस का हुक्म है कि जब ताजा पानी बहुत धीमा आ रहा हो तो उसी समय भर लेना चाहिए इसलिए मन और शरीर के साथ न देने पर भी वह उठ कर रसोई की ओर चल दी.

धीमी धार के नीचे बालटी लगा कर मालती खड़ी हो गई. पानी की धार के साथसाथ ही उस के विचारों की शृंखला भी दौड़ने लगी. वह सोचने लगी कि किस तरह उस की बहू ने बड़ी चालाकी और होशियारी से उस के घर और बेटे पर पूर्ण अधिकार कर लिया और उसे खबर भी न होने पाई.

राजीव उस की इकलौती संतान है. विवाह के 10 वर्ष बाद जब राजीव ने जन्म लिया तो मालती और उस के पति सुधीर की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा. दोनों अपने बेटे को देख कर खुशी से फूले न समाते थे. धीरेधीरे राजीव बड़ा होने लगा. जब वह स्कूल जाने लगा तो मालती के आंचल में मुंह छिपा कर कहता, ‘मां, मैं इतनी देर तक स्कूल में तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा, मुझे तुम्हारी याद आती है.’

उस की भोली बातें सुन कर मालती को हंसी आ जाती, ‘स्कूल में और भी तो बच्चे होते हैं, राजू, वे भी तो अपनी मम्मियों को छोड़ कर आते हैं.’

‘आते होंगे, उन की मम्मियां उन से प्यार ही नहीं करती होंगी.’

‘अच्छा, तो क्या दुनिया में आप की मम्मी ही आप से प्यार करती हैं और आप अपनी मम्मी को,’ कह कर मालती प्यार से राजीव को अपने आंचल में समा लेती.

फिर जब राजीव की नौकरी लगी तो उसे एक ही रट लगी रहती कि अब तू जल्दी से शादी कर ले. वह चाहती थी कि जल्द से जल्द घर में बहू आ कर उस के सूनेपन को भर दे लेकिन राजीव सदा ही इनकार कर देता. जब मालती के लाए सभी रिश्तों के लिए वह मना करता गया तो उसे कुछ शक हुआ. उस ने पूछा, ‘देख, अगर तू ने खुद ही कोई लड़की देख ली है तो बता दे, मैं बेकार ही बहू ढूंढ़ने की परेशानी उठाती फिर रही हूं.’

आखिर राजीव ने उसे अपने मन की बात बता दी कि वह लड़की उस के साथ ही आफिस में काम करती है.

‘कब से जानता है तू उसे?’

‘यही कोई 6-7 महीने से.’

‘दिखने में कैसी है?’

‘बहुत सुंदर है मां, और बहुत ही अच्छी,’ राजीव बोला, ‘तुम पापा से बात करो न.’

सुन कर मालती मुसकरा दी पर साथ ही हृदय में हौले से कहीं कुछ कचोट गया. जीवन में पहली बार उस के बेटे ने कोई बात उस से छिपाई थी पर क्षमा करने का अद्भुत गुण भी  था उस के भीतर. उस ने सुधीर से इस बारे में बात की तो वह भी इस रिश्ते के लिए तैयार हो गए. आखिर राजीव और ऋचा का विवाह संपन्न हो गया.

राजीव के विवाह के बाद मालती की प्रसन्नता का ठिकाना न था. ऋचा का स्वभाव भी ठीक था. मालती का जीवन बड़े ही शांतिपूर्ण ढंग से कट रहा था कि तभी सुधीर का हार्ट फेल होने से देहांत हो गया.

खुशियों की उम्र इतनी छोटी होगी उस ने सोचा भी न था. बेटे के प्रेम में वह कब पति को भूल गई थी इस का अनुभव उसे सुधीर से बिछड़ने के बाद हुआ. व्याकुल हो कर वह सुधीर की एकएक बात याद करती. उसे याद आता सुधीर हंस कर कहा करते थे, ‘हर समय बेटाबहू के आगेपीछे घूमती रहती हो, कभी दो घड़ी मेरे पास भी बैठ जाया करो. ऐसा न हो कि बाद में पछताती फिरो.’

मालती उन बीते हुए क्षणों को लौटा लेने के लिए विकल हो उठती मगर अब यह संभव नहीं था.

फिर ऋचा ने धीरेधीरे बड़ी चालाकी से उस से काम लेना शुरू किया, ‘मां, मैं नहाने जा रही हूं. आप जरा राजीव का टिफिन तैयार कर देंगी.’

सरल स्वभाव की मालती, ऋचा की बातों को समझ नहीं पाती. खुद ही कह देती, ‘तुम नहा लो, बहू, खाना मैं बना देती हूं.’

फिर उसे पता ही नहीं चला और रसोई की सारी जिम्मेदारी धीरेधीरे उस के ऊपर ही आ गई. सुबह नाश्ता बनाने से ले कर रात का खाना तक वही बनाती है. जब सुधीर थे तब परिस्थिति ऐसी कभी नहीं थी. काम तो वह तब भी करती थी पर कभी ऐसा प्रतीत नहीं हुआ कि वह किसी के अधीन है. पहले यहां जो कुछ था उस का अपना था. अब वह जो भी काम करती है उस में ऋचा जानबूझ कर मीनमेख निकाल कर उसे अपमानित करती रहती है.

जब से राजीव का प्रमोशन हुआ है तब से वह काम में अधिक व्यस्त रहने लगा है. मालती को बेटे से कोई शिकायत नहीं है. बस, है तो केवल यह दुख कि जो बेटा बचपन में उस से एक पल भी दूर नहीं रह पाता था, आज उसी के पास उस से बात तक करने का समय नहीं रह गया है. इस कमी को वह अपने 5 वर्षीय पोते रमन के साथ खेल कर पूरा कर लेती है लेकिन ऋचा को दादी का यह स्नेह भी अच्छा नहीं लगता.

जिस घर के बनने पर उस ने पति का हाथ थाम कर गृहस्वामिनी बन कर प्रवेश किया था आज उसी घर में उस की स्थिति एक नौकरानी जैसी हो गई है.

‘‘मां,’’ तभी ऋचा ने उसे आवाज दी और वह अतीत की यादों से वर्तमान में लौट आई. उस ने घबरा कर पानी भरना छोड़ चाय का पानी गैस पर रख दिया.

ऋचा का मायका उसी शहर में होने के कारण वह कभी अपने घर रहने नहीं जाती थी. यदि सुबह गई तो शाम तक वापस आ जाती थी. एक दिन उस की बूआ के बेटे की शादी का दिल्ली से निमंत्रणपत्र आया. ऋचा ने राजीव से कहा तो राजीव बोला, ‘‘मैं तो नहीं जा पाऊंगा, तुम रमन को ले कर चली जाओ.’’

‘‘ठीक है. फिर मेरा 2 दिन बाद का रिटर्न टिकट भी यहीं से करा देना.’’

अगले हफ्ते ऋचा, रमन को ले कर दिल्ली चली गई. ट्रेन में बिठा कर राजीव लौटा तो काफी रात हो गई थी. थका हुआ राजीव आ कर तुरंत सो गया.

मालती का प्रतिदिन का यह नियम है कि उसे सुबह ठीक साढ़े 5 बजे उठ कर पीने का पानी भरना होता था. अगले दिन सुबह उसी समय उस की आंख खुल गई लेकिन फिर उस ने आराम से रजाई में मुंह ढक लिया.

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