एक दिन तो हद हो गई. उस समय मीनाक्षी गुसलखाने में थी. नन्हा बिस्तर पर खेल रहा था. रोहित सो रहा था. उस का बिस्तर अलग लगा था. उस ने बहाना यह बनाया हुआ था कि बच्चे के रात में रोने व ज्यादा जगह लेने के कारण वह अलग सोता है. तभी बच्चे ने दूध उलट दिया. उसे खांसी भी आई और रोतेरोते वह बेहाल हो गया. मीनाक्षी किसी तरह उलटेसीधे कपड़े पहन कर बाहर निकली तो देखा रोहित कमरे में नहीं था. जी चाहा कि वह उस का हाथ पकड़ कर पूछे कि तुम तो इस से ऐसे कतरा रहे हो मानो मैं ने यह बच्चा नाजायज पैदा किया है. आखिर क्यों चाहा था तुम ने यह बच्चा? क्या सिर्फ अपने अहं की संतुष्टि के लिए? लेकिन वह ऐसा कुछ भी न कर सकी क्योंकि रोहित इसे स्वीकार न कर के कोई बहाना ही गढ़ लेता. बच्चा अपनी गोलमटोल आंखों से देखते हुए किलकारी भरता तो परायों का मन भी वात्सल्य से भर उठता. पर रोहित जाने किस मिट्टी का बना था, जो मीनाक्षी की कोख से पैदा हुए बच्चे को भी अपना नहीं रहा था. वह चाह कर भी बच्चे को प्यार न कर पाता. बच्चे को देखते ही उसे उस अनजान व्यक्ति का ध्यान हो जाता जिस का बीज मीनाक्षी की कोख में पड़ा था. जब भी वह बाहर निकलता तो बच्चे के चेहरे से मिलतेजुलते व्यक्ति को तलाशता. यह जानते हुए भी कि गर्भधारण तो बंबई में हुआ था और ज्यादा संभावना इसी बात की थी कि वह व्यक्ति भी बंबई का ही होगा.
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