आज की युवा पीढ़ी वक्त के साथ चलना जानती है, समस्याओं को परे रख जिंदगी का लुत्फ कैसे उठाते हैं, यह मैं बेटेबहू को देख अभिभूत हो रही थी. हम ने भी उन के साथ कदमताल मिला कर जीने का जो सुख लिया, जबां से क्या बयां करूं.
प्लेन लैंडिंग की घोषणा हुई तो मैं ने भी अपनी बैल्ट चैक कर ली. मुसकरा कर समर की तरफ देखा. वे भी उत्सुकता से बाहर देख रहे थे. मैं भी खिड़की से बाहर नजर गड़ा कर प्लेन लैंडिंग का मजा लेने लगी.
एक महीने के लिए बेटेबहू के पास दुबई आए थे. बच्चों से मिलने की उत्सुकता व दुबई दर्शन दोनों ही उत्तेजनाओं से मनमस्तिष्क प्रफुल्लित हो रहा था. एयरपोर्ट की औपचारिकताओं से निबट कर सामान की ट्रौली ले कर बाहर आए तो रिषभ प्रतीक्षारत खड़ा था. बेटे को देख कर मन खुशी से भर उठा. लगभग 6 महीने बाद उसे देख रहे थे. सामान की ट्रौली छोड़, दोनों जा कर बेटे से लिपट गए.
‘‘इशिता कहां है?’’ मैं ने पूछा.
‘‘वह घर में आप के स्वागत की तैयारी कर रही है,’’ रिषभ मुसकरा कर कार का दरवाजा खोलते हुए बोला.
‘‘स्वागत की तैयारी?’’ समर चौंक कर बोले.
‘‘हां पापा, आज शुक्रवार है न, छुट्टी के दिन क्लीनर आता है, तो इशिता सफाई करवा रही है.’’
‘सफाई करवाने का दिन भी फिक्स होता है बच्चों का यहां,’ मैं कार में बैठ कर सोच रही थी, ‘हफ्ते में एक दिन होती है न. अपने देश की तरह थोड़े ही, रोज घिसघिस कर पोंछा लगाती है आशा.’
थोड़ी देर में रिषभ की कार सड़क पर हवा से बातें कर रही थी. सुंदर चमचमाती 6 से 8 लेन की सड़कें, दोनों तरफ नयनाभिराम दृश्य और कार में बजते मेरे मनपसंद गीत… मैं ने आराम से सिर पीछे सीट पर टिका दिया.
‘‘मम्मी, गाने पसंद आए न आप को. सारे पुराने हैं आप की पसंद के,’’ मैं थोड़ा चौंकी कि यह कब कहा मैं ने कि मु झे सिर्फ पुराने गाने ही पसंद हैं. पर बच्चे अंदाजा लगा लेते हैं. मांबाप हैं, तो थोड़ी पुरानी चीजें ही पसंद करेंगे. मैं मन ही मन मुसकराई.
120-130 की स्पीड से दौड़ती कार आधे घंटे में घर पहुंच गई. डिसकवरी गार्डन में फ्लैट था. दुबई जैसे रेगिस्तान के समुद्र में इतनी हरीभरी कालोनी देख कर मन प्रसन्न हो गया. मात्र 5 मंजिल ऊंचे फ्लैट बहुत बड़े एरिया में कई स्ट्रीट में बंटे हुए थे. मैं सोच रही थी कि इतना सामान ऊपर कैसे जाएगा पर बिल्ंिडग के दूसरे रास्ते से आराम से सामान ड्रैग कर अंदर प्रवेश कर गए हम. वहां सीढि़यों के बजाय स्लोप बना हुआ था. किसी भी अच्छी सोसाइटी की ही तरह वहां भी मुख्य दरवाजे पर बिना एंट्री कार्ड को टच करे बिल्ंिडग के अंदर प्रवेश नहीं कर सकते. जैसे ही अंदर प्रवेश किया, अंधेरे कौरिडोर की लाइट्स जगमगाने लगीं. सभीकुछ औटोमैटिक था.
ये भी पढ़ें- कंजूस: आखिर क्या था विमल का दर्दभरा सच
फ्लैट के दरवाजे पर पहुंच कर घंटी बजाने पर इशिता जैसे प्रतीक्षारत ही बैठी थी. क्षणभर में ही दरवाजा खुल गया और हम दोनों उस से भी लिपट गए. जान है हमारी इशिता. उस की भोली सूरत व मीठी बातें सुन कर तो जैसे लुत्फ ही आ जाता है जीने का. चमकता साफसुथरा फ्लैट देख कर दिल खुश हो गया. बच्चों की छोटी, प्यारी सी गृहस्थी उन के सुखी दांपत्य जीवन की कहानी बिना कहे भी बयान कर रही थी. प्रेमविवाह किया था दोनों ने.
दुबई का समय भारतीय समय से डेढ़ घंटा पीछे है. इसलिए अभी वहां पर दो ही बज रहे थे. बैडरूम में जा कर, सामान इधरउधर रख कर आराम से बिस्तर पर पसर गए.
‘‘ममा, खाना लगा दूं?’’ इशिता ने पूछा.
‘‘खा लेंगे अभी,’’ मैं ने इशिता को पास खींच लिया.
शुक्रवार और शनिवार दुबई में छुट्टी होती है. इसलिए बच्चे आराम वाले मूड में थे. ‘‘पापा, खाना खा कर थोड़ा रैस्ट कर लीजिए. फिर बाहर चलते हैं,’’ रिषभ बोला.
शाम को हम चारों बाहर गए. चारों तरफ जगमगाती रोशनी में नहाया दुबई, समतल सड़कों पर फिसलती कारें और मेरा मनपसंद संगीत…कार में बैठने का लुत्फ आ जाता है.
‘‘रिषभ, आज तेरी कार में बैठी हूं. याद है न, जब मैं ड्राइव करती थी और तू बैठता था,’’ मैं रिषभ को छेड़ते हुए बोली.
‘‘हां ममा, याद है, बहुत बैठा हूं आप की बगल में. आजकल तो काफी कहानियां छप रही हैं आप की. मेरी रौयल्टी तो अब तक खूब जमा हो गई होगी,’’ रिषभ बचपन वाला लाड़ लड़ाता हुआ बोला.
‘‘हां, हां, इस बार तेरी पूरी रौयल्टी दे कर जाऊंगी,’’ मैं हंसते हुए बोली. रिषभ जब छोटा था तो मेरी हर कहानी के छपने पर 20 रुपए लेता था. उस के बचपन की वह मधुर सी याद जेहन को पुलकित कर गई. आज कितना बड़ा हो गया रिषभ. तब मैं उसे संभालती थी, अब वह हमें संभालने वाला हो गया.
‘‘रिषभ, तु झे याद है, तू मु झे बचपन में मेरे जन्मदिन पर अपनी पौकेटमनी से पेपर और पेन ला कर दिया करता था लिखने के लिए. मु झे तेरी वह आदत अंदर तक छू जाती थी.’’
‘‘हां, याद है. पता नहीं कैसे सोच लेता था उस समय ऐसा कि आप लिखती हैं तो पेपरपेन से ही खुश होंगी,’’ रिषभ ड्राइव करते हुए पुरानी यादों में लौटते हुए बोला.
‘‘और अब बड़े हो कर तू ने ममा को लैपटौप ला कर दे दिया,’’ समर ठहाका मारते हुए बोले.
इशिता भी हंस पड़ी. रिषभ ने हंसते हुए कार धीमी की. हम अपने गंतव्य तक पहुंच गए थे. घूमघाम कर रात पता नहीं कितने बजे तक घर पहुंचे. हमें समय भी पता नहीं चल रहा था. खाने में भी काफी कुछ खा चुके थे, इसलिए डिनर करने का किसी का मन नहीं था. रोशनी से दमकते दुबई ने तो जैसे दिनरात का फर्क ही भुला दिया था.
घर पहुंच कर, चेंज कर मैं लौबी में आ गई. तीनों बैठे थे. मैं बोली, ‘‘खूब थक गए हैं, चाय पीते हैं. इशिता, तू पिएगी?’’
ये भी पढ़ें- उपहार: क्या मोहिनी का दिल जीत पाया सत्या
‘‘ममा, चाय?’’ इशिता चौंक कर अपनी बड़ीबड़ी आंखें झपकती मेरी तरफ देख कर आश्चर्य से बोली. अब चौंकने की बारी मेरी थी, कुछ गलत बात तो नहीं कह दी.
‘‘अच्छा, अगर आप का पीने का मन है तो मैं बना देती हूं,’’ इशिता उठ कर रसोई की तरफ जाते हुए बोली.
‘‘ममा, पता भी है, क्या टाइम हो रहा है, रात का डेढ़ बज रहा है. और भारत में इस समय 3 बज रहे होंगे. चाय पियोगे आप इस समय,’’ रिषभ हंसता हुआ बोला.
मैं ने घबरा कर मोबाइल देखा. घड़ी तो भारतीय समय बता रही थी. पर मोबाइल दोनों समय बता रहा था. ‘‘ओह, मु झे तो यहां की चकाचौंध भरी रोशनी में दिनरात का फर्क ही नहीं पता चल पा रहा.’’
तीनों को मुसकराते देख, मैं उन्हें घूरती हुई बैडरूम की तरफ भाग गई. इतने घंटे की नींद कम हो गई थी मेरी. सुबह मेरी नींद भारतीय समय के अनुसार खुल गई. लेकिन दुबई का समय डेढ़ घंटा पीछे होने की वजह से बच्चे तो गहन निद्रा में थे. समर भी अलटपलट कर फिर सो रहे थे. दिल कर रहा था खूब खटरपटर कर सब को जगा दूं. पर, मन मसोस कर सोई रही.
खाना बनाने के लिए कुक आता था. विदेशों में वैसे तो काम करने वालों की सुविधा भारत जैसी नहीं रहती, पर दुबई में इतनी दिक्कत नहीं है. वहां पर एशियन देशों से गए कामगार घर में काम करने के लिए मिल जाते हैं. वहां की मूल आबादी तो 12-13 प्रतिशत ही है, बाकी आबादी तो यहां पर दूसरे देशों से आए हुए लोगों की ही है. यहां पर घरों में काम करने वाले स्त्रीपुरुष, अधिकतर हिंदुस्तानी, पाकिस्तानी, बंगलादेशी और श्रीलंका के ही होते हैं. कई अन्य देशों की महिलाएं बच्चों की नैनी के रूप में यहां पर अपनी सेवाएं देती हैं.
ये भी पढ़ें- आखिरी बाजी: क्या दोबारा अपनी जिंदगी में जोहरा को ला पाया असद
अपने देशों में कुछ भी उपद्रव मचाएं पर यहां सब बहुत ही नियमसंयम से रहते हैं. टूटीफूटी इंग्लिश बोलतेबोलते अच्छी इंग्लिश बोलना सीख जाते हैं. घर में काम करने वाले भी इंग्लिश बोलते हैं पर अपनी भाषा भी बोलते हैं. जो बहुत सालों से रह रहे हैं, वे कोईकोई तो अरबी बोलना भी सीख जाते हैं.
‘‘ममा, यह पूरण है,’’ शाम को बेटे ने कुक से मिलवाया, ‘‘वैसे तो यह हमारे औफिस से आने के बाद आता है पर आजकल जल्दी आ कर खाना बना देगा ताकि औफिस से आ कर हम बाहर जा सकें.’’