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जब वंदना 5 मिनट पहले ब्रैडअंडे खरीदने दुकान में घुसी थी, तब उस के पिता राजेंद्रजी फुटपाथ पर अकेले खड़े थे. अब वह बाहर आईर् तो देखा उन के इर्दगिर्द 15-20 आदमियों की भीड़ इकट्ठी थी.

अपने पिता की ऊंची, गुस्से से भरी आवाज सुन कर उस ने समझ लिया कि वे किसी से झगड़ रहे हैं.

‘‘अंधा... बेवकूफ... गधा... इडियट... रास्कल...’’ राजेंद्रजी के मुंह से निकले ऐसे कई शब्द वंदना के कानों में पड़ गए थे.

उन से उलझ हुआ युवक मोटरसाइकिल पर बैठा था. वी हर वाक्य के बाद राजेंद्रजी के लिए बुड्ढे बुढ़ऊ और सठिया गया इंसान जैसे विशेषणों का प्रयोग कर उन के गुस्से को बारबार भड़का रहा था.

अपने पिता के सफेद कुरतेपजामे पर

कीचड़ के निशानों को देख वंदना झगड़े का कारण फौरन समझ गई, ‘‘राजीव,’’ वंदना ने मोटरसाइकिल पर बैठे युवक को पहचान कर जोर से डांटा, ‘‘इतनी बदतमीजी से बात करते हुए तुम्हें शर्म आनी चाहिए.’’

राजीव ने चौंक कर उस की तरफ देखा. एक सुंदर युवती को झगड़े में

हिस्सेदार बनते देख भीड़ की दिलचस्पी और ज्यादा बढ़ गई.

‘‘वंदना, तुम्हें इन के मुंह से निकलने वाली गालियों को भी सुनना चाहिए,’’ राजीव ने उत्तेजित लहजे में सफाई दी, ‘‘अरे, बारिश का मौसम है तो छींटें पड़ सकते हैं. ये बुढ़ऊ न हो कर कम उम्र के होते तो अब तक मैं ने इन के दांत तोड़ कर इन के हाथ में...’’

‘‘तुम जिन के दांत तोड़ने की बात कर रहे हो, वे मेरे पिता हैं.’’

‘‘अरे, नहीं,’’ राजीव का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया.

‘‘मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि तुम एक बुजुर्ग इंसान से इतनी गंदी तरह से बोल सकते हो.’’

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