कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सरला और सविता ने फौरन उन्हें शांत किया. वंदना ने खामोशी की चादर ओढ़ ली.

‘‘राजीव के मन में जो अपराधबोध का भाव बैठ गया है, उसे जल्दी से हटाना बेहद जरूरी है, जीजाजी. उस की उदासी की जड़े गहरी हो कर उस के व्यक्तित्व को बिगाड़ती जा रही है,’’ सविता ने चिंतित लहजे में अपनी राय प्रकट करी.

‘‘तुम्ही सलाह दो कि  हम क्या करें,’’ सरला ने अपनी छोटी बहन की तरफ आशा भरी नजरों से देखा.

‘‘मेरे खयाल से हमें राजीव और उस के मातापिता को आज शाम को यहां खाने पर आमंत्रित करना चाहिए. पार्टी के माहौल में आप दोनों उस के मन की परेशानी जरूर दूर कर सकेंगे.’’

‘‘हां, यह ठीक सलाह दी है, तुम ने,’’ राजेंद्रजी ने सविता के प्रस्ताव को फौरन मंजूरी

दे दी.

किसी से कुछ भी कहे बिना वंदना वहां से उठ कर अपने कमरे में चली गई.

उस के ऐसा करने से घर का माहौल कुछ भारी ही बना रहा.

राजेंद्रजी ने फोन पर कैलाशजी को सपरिवार अपने घर रात का खाना खाने का निमंत्रण दे दिया. उन की आवाज में राजीव को ले कर व्याप्त चिंता व दुख को राजेंद्रजी ने साफ महसूस किया.

राजेंद्र, मीना और राजीव रात 8 बजे के करीब उन के घर आ गए. राजीव का मुरझाया चेहरा किसी की आंखों से छिपा नहीं रहा.

राजेंद्रजी के सामने आ कर राजीव कुछ कहता, उस से पहले ही उन्होंने उस से कहा, ‘‘बरखुरदार, तुम आज ‘माफी’ शब्द को अपनी जबान पर लाओगे ही नहीं. मेरा मन बिलकुल साफ है. तुम मुझे उस दिन की सारी घटना सदा के लिए भूल जाने का आश्वासन दो, तो यह मेरे लिए सब से अच्छा उपहार होगा.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...