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लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी

‘‘दीदी...दीदी सो रही हो क्या अभी तक?’’

‘अरे यह तो रामलाल की आवाज है,’ सोच जल्दी से उठ कर मेन दरवाजे की तरफ भागी.

दरवाजे पर रामलाल दूध वाला चिंतित सा खड़ा था. उसे ऐसे खड़ा देख हंसी आ गई, ‘‘क्या हुआ रामलाल ऐसे क्यों मुंह बनाए हो?’’

‘‘दीदी, आप ने तो मुझे डरा दिया. रोज तो मेरे आने से पहले दरवाजे पर खड़ी हो जाती थीं. आज आधे घंटे से दरवाजे पर खड़ा हूं.’’

‘‘हां, आज कुछ सिर भारीभारी लग रहा था. रविवार की छुट्टी भी है, इसलिए... अच्छा अब चलो जल्दी दूध दे दो.’’

सिरदर्द बढ़ने लगा तो रामलाल को जाने को बोल दिया नहीं तो वह अपनी रामकहानी शुरू ही करने वाला था.

‘‘अच्छा, दीदी मैं चलता हूं आप अदरक वाली चाय पी लो, आराम मिलेगा.’’

‘‘ठीक है रामलाल,’’ कहते हुए मैं ने दरवाजा बंद कर दिया.

‘देर तो हो ही गई है नहा कर ही चाय बनाऊंगी,’ सोचते हुए मैं बाथरूम की तरफ बढ़ गई.

चाय ले कर बालकनी में रखी और आरामकुरसी पर बैठ गई. शालीन के जाने के बाद आज पहली बार अकेलेपन और खालीपन का आभास हो रहा था, पर वह भी कब तक अपनी मां के पास रहता, एक न एक दिन उसे अपनी जिंदगी की शुरुआत तो करनी ही थी. पिछले सप्ताह शालीन ने कहा, ‘‘मां अब आप रिटारमैंट ले लो और मेरे साथ चलो.’’

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‘‘तू कहां जा रहा है और मैं क्यों रिटायरमैंट लूं?’’ मैं ने अचरज से उस की तरफ देखा.

‘‘मां पुलिस अधीक्षक ट्रेनिंग के बाद मेरी पहली पोस्टिंग बीकानेर में मिली है.’’

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