स्कूल वैन का ड्राइवर कनुभाई शायद अपनी नींद पूरी न हो पाने की खी?ा गाड़ी का हौर्न बजाबजा कर उतार रहा था. सुबह के 6 बज कर 10 मिनट हो चुके थे, दांत किटकिटा देने वाली ठंड थी और अंधेरा छंटा नहीं था. किंतु पूर्व में क्षीण लालिमा सूर्य के आने पूर्व सूचना दे रही थी. आकाश गहरा नीला था जिस में चंद्रमा और हलके होते तारे अब भी देखे जा सकते थे.
इतना सुंदर दृश्य और ये हौर्न की कर्कश आवाज, सोचते हुए तनूजा गेट की ओर जाने लगी, तो फिर हौर्न की तेज आवाज कानों में पड़ी. वह वैन के पास पहुंचते ही बोली, ‘‘अरे कनुभाई, क्यों सुबहसुबह इतनी जोरजोर से हौर्न बजा रहे हो? आ रहे हैं बच्चे.’’ ‘‘क्या करूं मैडम. अभी 5 अलगअलग जगहों से बच्चों को लेना है और 7 बजे से पहले उन्हें स्कूल पहुंचना है. नहीं तो मेन गेट बंद हो जाएगा.’’
उस का कहना भी सही था. देर से आने वाले बच्चों को पूरा 1 पीरियड, सजा के तौर पर बाहर ही खड़े रहना पड़ता है. इस से तो बेहतर है कि हौर्न से कर्णभेदी ध्वनि पैदा की जाए जिस से चौंक कर उनींदे बच्चे भी दौड़ें. तनूजा के बच्चे तन्मयी व तनिष्क फुरती से दौड़ कर वैन में बैठ
गए.
‘‘बाय मम्मी.’
‘‘बाय बच्चो, हैव ए नाइस डे.’’
फिर हाथ हिलाते हुए तनूजा वैन के ओ?ाल हो जाने तक वहीं खड़ी रही.
तन्मयी और तनिष्क ने जब से स्कूल जाना शुरू किया है तभी से तनूजा के हरेक दिन का शुभारंभ यहीं से होता है. इस के बाद 45-50 मिनट की मौर्निंग वाक और फिर वापस घर. 6.20 हो गए थे, डीपीएस की स्कूल बस के आने का समय हो गया था.