फोन की घंटी की आवाज सुन कर मिथिला ने हाथ का काम छोड़ कर चोगा कान से लगाया.
‘मम्मा’ शब्द सुनते ही समझ गईं कि भूमि का फोन है. वह कुछ प्यार से, कुछ खीज से बोलीं, ‘‘हां, बता, अब और क्या चाहिए?’’
‘‘मम्मा, पहले हालचाल तो पूछ लिया करो, इतनी दूर से फोन कर रही हूं. आप की आवाज सुनने की इच्छा थी. आप घंटी की आवाज सुनते ही मेरे मन की बात समझ जाती हैं. कितनी अच्छी मम्मा हैं आप.’’
‘‘अब मक्खनबाजी छोड़, मतलब की बात बता.’’
‘‘मम्मा, ललित के यहां से थोड़ी मूंगफली मंगवा लेना,’’ कह कर भूमि ने फोन काट दिया.
मिथिला ने अपने माथे पर हाथ मारा. सामने होती तो कान खींच कर एक चपत जरूर लगा देतीं. यह लड़की फ्लाइट पकड़तेपकड़ते भी फरमाइश खत्म नहीं करेगी. फरमाइश करते समय भूल जाती है कि मां की उम्र क्या है. मां तो बस, अलादीन का चिराग है, जो चाहे मांग लो. भैयाभाभी दोनों नौकरी करते हैं. कोई और बाजार दौड़ नहीं सकता. अकेली मां कहांकहां दौडे़? गोकुल की गजक चाहिए, प्यारेलाल का सोहनहलवा, सिकंदराबाद की रेवड़ी, जवे, कचरी, कूटू का आटा, मूंग की बडि़यां, पापड़, कटहल का अचार और अब मूंगफली भी. कभी कहती, ‘मम्मा, आप बाजरे की खिचड़ी बनाती हैं गुड़ वाली?’
सुन कर उन की आंखें भर आतीं, ‘तू अभी तक स्वाद नहीं भूली?’
‘मम्मा, जिस दिन स्वाद भूल जाऊंगी अपनी मम्मा को और अपने देश को भूल जाऊंगी. ये यादें ही तो मेरा जीवन हैं,’ भूमि कहती.
‘ठीक है, ज्यादा भावुक न बन. अब आऊंगी तो बाजरागुड़ भी साथ लेती आऊंगी. वहीं खिचड़ी बना कर खिला दूंगी.’